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कोरोना से जंग में रोड़ा है छद्म विज्ञान को बढ़ावा, नेता भी गुनहगार

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भारत में विज्ञान का कत्ल होना आम बात है. आए दिन हम विज्ञान का बेरहमी से कत्ल होते देखते रहते हैं. भारत के प्राचीन इतिहास पर नजर उठाकर देखें तो इस देश के लिए ये नया नहीं है. सदियों से इस देश ने वैज्ञानिक चिंतन और विमर्श को समुचित स्थान नहीं दिया है. यही वजह है कि आज भी बारिश नहीं होने पर मेढ़क और मेढ़की कि शादी कराने जैसा अंधविश्वास कायम है. पर हाल के वर्षों में अवैज्ञानिक विचारधारा को सत्ता का संरक्षण मिलना नई प्रवृति है. सबसे दिलचस्प पहलू ये है कि अवैज्ञानिकता को ऐसे पेश किया जाता है जैसे ये विज्ञान पर टिका हुआ हो.

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छद्म विज्ञान एक ऐसे दावे, आस्था या प्रथा को कहते हैं जिसे विज्ञान की तरह प्रस्तुत किया जाता है, पर जो वैज्ञानिक विधि का पालन नहीं करता है. अध्ययन के किसी विषय को अगर वैज्ञानिक विधि के मानदण्डों के संगत प्रस्तुत किया जाए, पर वो इन मानदण्डों का पालन नहीं करे तो उसे छद्म विज्ञान कहा जा सकता है.

छद्म विज्ञान ये लक्षण हैं: अस्पष्ट, असंगत, अतिरंजित या अप्रमाण्य दावों का प्रयोग; दावे का खंडन करने के कठोर प्रयास की जगह पुष्टि पूर्वाग्रह रखना, विषय के विशेषज्ञों ने जांच का विरोध और सिद्धांत विकसित करते समय व्यवस्थित प्रक्रिया का अभाव.

छद्म विज्ञान शब्द को अपमानजनक माना जाता है, क्योंकि ये सुझाव देता है कि किसी चीज को गलत या भ्रामक ढ़ंग से विज्ञान दर्शाया जा रहा है. इसलिए, जिन्हें छद्म विज्ञान का प्रचार या वकालत करते दिखाया जाता है, वे इसका विरोध करते हैं. विज्ञान एम्पिरिकल अनुसंधान से प्राकृतिक जगत के बारे में बताता है. इसलिए ये देव श्रुति, धर्मशास्त्र और अध्यात्म से बिलकुल अलग है.

छद्म विज्ञान के सहारे जनता को भ्रमित करने की कोशिश

आजकल भारत में सत्ता पक्ष भी छद्म विज्ञान के सहारे जनता को भ्रमित करने कि कोशिश हो रही है. देश के प्रधानमंत्री का वो बयान मीडिया की सुर्खियों में आया था जब उन्होंने कहा था कि गणेश का सर काटने के बाद उसकी जगह हाथी का सर लगा देना दुनिया कि पहली सर्जरी थी, अगर ऐसा था तो जब एकलव्य का अंगूठा कटा तो उसकी सर्जरी क्यूं नहीं हो पायी? त्रिपुरा के सीएम विप्लव देव ने कहा था कि महाभारत काल में इंटरनेट और सेटेलाइट था. पूर्व मानव संसाधन मंत्री के उस बयान ने भी मीडिया की खूब सुर्खियां बटोरी थीं जब उन्होंने प्रख्यात वैज्ञानिक डारविन के सिद्धांत को ही नकार दिया था. वर्तमान बीजेपी सरकार और इनसे जुड़े लोगों के ऐसे बयान अब आम हो गए हैं.

अभी कुछ दिन पहले जब प्रधानमंत्री ने कोरोना से लड़ने वाले लोगों को धन्यवाद के लिए थाली बजने और ताली बजाने कि बात की तो उसको छद्म विज्ञान के सहारे वैज्ञानिकता के जोड़ा जाने लगा और कहने लगे कि उत्पन्न ध्वनि से बीमारी भाग जाएगी. हद तो तब हो गयी जब पीएम मोदी ने लोगों से दीया जलाने का आग्राह किया. उसके बारे में भारत सरकार ने कहा कि दीया जलाना एक यौगिक क्रिया है.

बाद में जब इसकी आलोचना होने लगी तो उस ट्वीट को हटा लिया गया. पिछली सरकार में शिक्षा मंत्री रहीं स्मृति इरानी की वह तस्वीर मीडिया पर वायरल हुई थी, जिसमें वो एक ज्योतिषी को हाथ दिखा रही थीं. जब सरकार का मुखिया ही अन्धविश्वास को बढ़ावा दे रहा हो तो देश का भगवान ही मालिक है. तभी तो सोशल डिस्टेंस वाले दौर में लोग थाली बजाकर जुलूस निकालने लगते हैं.

मुश्किल में छोटे शहरों में छोटे अस्पताल

बीजेपी सरकार के 2014 सत्ता में आने के बाद देश की स्वास्थ्य सेवाएं भी बदहाल हुई हैं. नेशनल एक्रेडिशन बोर्ड ऑफ हॉस्पिटल ने अस्पतालों के लिए जो शर्तें निर्धारित की हैं उनसे बड़े अस्पताल तो पनपे लेकिन छोटे शहरों में छोटे अस्पताल मुश्किल में आ गए. नतीजा स्वास्थ्य सेवाओं का जो विस्तार होना था वो नहीं हो पाया. यही वजह है कि आज जब कोरोना से लड़ने के लिए PPE और वेंटिलेटर जैसी आवश्यक चीजें हर जगह उपलब्ध नहीं है. 2020 के बजट को ही देखें तो एम्स के बजट से 109 करोड़ कम कर दिए गए. केंद्रीय आयुष मंत्री श्रीपाद येशो नाईक ने कहा कि ब्रिटेन के प्रिंस चाल्स आयुर्वेदिक दवाओं से ठीक हुए. जाहिर सी बात है कि यह सरकार वैज्ञानिकता के खिलाफ है.

अभी पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है. दुनिया के सभी देशों के वैज्ञानिक इस बीमारी की दवा के लिए रिसर्च में लगे हैं. लेकिन भारत में सत्ता पक्ष के जुड़े लोग इस बीमारी के इलाज के लिए अजीब तरह कि बात कह रहे हैं केंद्रीय राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने कहा कि धूप में बैठने से कोरोना नहीं होता.

शुरूआती दौर में अजीब तरह कि बातें की जाती थीं. मसलन गोबर लेपने से कोरोना दूर होगा, गाय का पेशाब पीने से कोरोना भागेगा, कहीं किसी पेड़ से लिपटकर, कहीं किसी बाबा जी की ताबीज से कोई कोरोना का उपचार निकालने लगा. सोशल मीडिया पर इससे जुड़े काफी वीडियो भी वायरल हुए. और तो और इसे लोग वैज्ञानिकता से जुड़ा हुआ भी बताने लगे.

सबसे दिलचस्प पहलू तो ये है कि इस छद्म विज्ञान की आलोचना करने वालों का ही उलटे मजाक उड़ाया जाता है. सत्ता पक्ष की शह कि वजह से आज भारत में तार्किकता और वैज्ञानिकता का स्पेस कम होता जा रहा है और छद्म विज्ञान और अंधविश्वास ने उसकी जगह ले ली है. ऐसा होना लाजिमी भी है क्योंकि जब देश के प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री और चीफ मिनिस्टर ही अंधविश्वास के पक्ष में खड़े हों तो छद्म विज्ञान को ही विज्ञान माना जायेगा.

आज जब कोरोना के खिलाफ पूरी दुनिया में जंग तेज़ हो गयी है और धर्म बनाम विज्ञान की बहस चल पड़ी है, तो उम्मीद कि जानी चाहिए कि भारत को “ छद्म विज्ञान” और “छद्म वैज्ञानिकों “ से मुक्ति मिलेगी.

(लेखक डॉ उदित राज, पूर्व लोकसभा सदस्य एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं )

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