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'रेगिस्तानी आंधी', जिसे 2 साल पहले काबू किया गया,अब इसके बवंडर में बदलने का खतरा

अशोक गहलोत और सचिन पायलट (Sachin Pilot) के बीच तनातनी फिर से काफी बढ़ गई है.

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भले ही महाराष्ट्र (Maharashtra) में सरकार के लिए संघर्ष दिन पर दिन गहराता जा रहा है, लेकिन राजस्थान (Rajasthan) में नया सियासी तूफान उठता दिख रहा है. पिछले कुछ दिनों में, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके पूर्व डिप्टी सचिन पायलट (Sachin Pilot) के बीच तनातनी फिर से काफी बढ़ गई है. दोनों तरफ से तीखी नोकझोंक बढ़ी है और राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा है कि सत्ताधारी कांग्रेस में दरार एक बड़ा सकंट बन सकती है.

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‘रेगिस्तानी आंधी’ जो दो साल पहले किसी तरह से कंट्रोल में किया गया था अब वो एक बड़ा चक्रवाती तूफान में बदलने वाला है.

विडंबना यह है कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की बिना सोची समझी टिप्पणी ने गहलोत और पायलट खेमे में शत्रुता फिर से जगा दिया है.

पिछले बुधवार को दिल्ली में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) मुख्यालय में पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ हाल में ED की पूछताछ पर अपने अनुभव को साझा करते हुए, राहुल ने बताया,

मैंने जिस धैर्य के साथ सवालों के जवाब दिए इसके बारे में ईडी के अधिकारियों ने मुझसे पूछा. मैंने उन्हें बताया कि मैं 2004 से कांग्रेस में हूं. हमारे अंदर सब्र है और पार्टी का हर नेता इसे समझता है.

' उन्होंने आगे कहा, "कांग्रेस पार्टी सब्र करना सिखाती है... सचिन पायलट यहां बैठे हैं, सिद्धारमैया जी यहां हैं."

स्नैपशॉट

• मैंने जिस धैर्य के साथ सवालों के जवाब दिए इसके बारे में ईडी के अधिकारियों ने मुझसे पूछा. मैंने उन्हें बताया कि मैं 2004 से कांग्रेस में हूं. हमारे अंदर सब्र है और पार्टी का हर नेता इसे समझता है. ' उन्होंने आगे कहा, "कांग्रेस पार्टी सब्र करना सिखाती है...सचिन पायलट यहां बैठे हैं, सिद्धारमैया जी यहां हैं.

• राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का सीकर में पायलट पर बयान के साथ ही एक बार फिर से राजस्थान में नेतृत्व की लड़ाई को लेकर कई अटकलें गरम हो गई हैं.

• गहलोत और उनके समर्थक इस बात से चिढ़ते हैं कि सचिन पायलट और उनका खेमा राहुल गांधी और गांधी परिवार से करीबी का प्रदर्शन करते रहते हैं. इससे राजस्थान में नेतृत्व में बड़े बदलाव की आशंका बढ़ती है.

• राजस्थान में मुश्किल से 16 महीने चुनाव के लिए बचे हुए हैं, कांग्रेस के आलाकमान को गहलोत-पायलट झगड़े को तुरंत सुलझाने की जरूरत है.

• गहलोत-पायलट में मनमुटाव किसी से छिपा हुआ नहीं है ..ऐसे में बीजेपी ..कांग्रेसी की मुश्किल का फायदा उठाने का कोई मौका नहीं हाथ से जाने देगी.

राहुल की टिप्पणी खासकर पायलट के बारे में दिया गया बयान, जल्द ही वायरल हो गया. राजस्थान में नेतृत्व की लड़ाई पर तेज अटकलें लगने लगीं. कई लोग हैरान थे कि क्या राज्य में कुछ बड़े बदलाव होने वाले हैं ?

'पायलट ने सुनहरा मौका गंवाया'

जहां राहुल का पायलट की तारीफ के असल मायने अभी निकाले ही जा रहे थे, गहलोत ने शनिवार को सीकर जिले में मीडिया से बातचीत में एक धमाका कर दिया. केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की हाल की एक टिप्पणी का हवाला देते हुए गहलोत ने कहा, "पायलट ने 2020 में राजस्थान में मध्यप्रदेश जैसी बगावत दोहराने का एक सुनहरा मौका गंवा दिया". गहलोत ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता पर अपनी सरकार को अस्थिर करने के लिए पायलट के साथ मिलीभगत करने का आरोप लगाया. गहलोत ने कहा, “आपने हमारी सरकार गिराने की साजिश रची और आपका सचिन पायलट का नाम लेना यह साबित करता है कि आप उनके साथ थे. ”

दो साल पहले राजस्थान कांग्रेस में बगावत को दबाने के लिए सुलह बनने के बाद अशोक गहलोत ने पहली बार ये गुस्सा बाहर निकाला था. मुख्यमंत्री गहलोत ने खुले तौर पर सचिन पायलट को अपनी सरकार गिराने का साजिशकर्ता बताया. दोनों खेमे में शीत युद्ध चलते रहने के बाद भी गहलोत और पायलट ने सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे का नाम लेने से परहेज किया था. अगले दिन, गहलोत के करीबी विश्वासपात्र और राज्य शहरी विकास आवास विभाग (यूडीएच) मंत्री, शांति धारीवाल ने भी इसी तरह की टिप्पणी की. उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री ने क्या गलत कहा है? हम भी ऐसा मानते हैं”, जाहिर सी बात है गहलोत के वफादारों ने पायलट पर गहलोत के तीखे हमले का समर्थन किया था.

आखिर पायलट ने अपनी चुप्पी तोड़ी. सोमवार को टोंक जिले में अपने चुनाव क्षेत्र की यात्रा के दौरान पलटवार किया. अपने ऊपर हो रहे हमलों को राहुल की प्रशंसा से जोड़ते हुए, पायलट ने कहा कि अगर राहुल गांधी ने उनके 'धैर्य' की प्रशंसा की तो लोगों को इसे सही भावना से लेना चाहिए, किसी को भी परेशान नहीं होना चाहिए.
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केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत के साथ मिलीभगत करने के अशोक गहलोत के आरोप को खारिज करते हुए पायलट ने कहा कि अतीत में भी गहलोत ने मेरे बारे में 'नकारा', 'निकम्मा' (बेकार, बेकार) जैसी कई बातें कही थीं. उन्होंने आगे कहा, "लेकिन मैं बयानों को अन्यथा नहीं लेता क्योंकि वो अनुभवी, बुजुर्ग, पिता जैसे हैं. "

हालांकि सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री पर कटाक्ष करने का मौका नहीं गंवाया. उन्होंने कहा कि गजेंद्र सिंह शेखावत केंद्रीय मंत्री इसलिए बने क्योंकि उन्होंने राज्य में कांग्रेस की सत्ता होने के बाद भी 2019 के लोकसभा चुनाव में जोधपुर से जीत हासिल की थी. उन्होंने इस हार को पार्टी के लिए बड़ी ‘चूक’ बताया. यहां ध्यान देने की बात ये है कि जोधपुर गहलोत का होमटाउन है. उनका बेटा वैभव गहलोत यहां से साल 2019 में चुनाव लड़े थे लेकिन वो शेखावत से हार गए.

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फिर से लौटा तीखी बयानबाजी का दौर

हालांकि सचिन पायलट अपनी प्रतिक्रिया में काफी सतर्क रहे, लेकिन उनके समर्थकों ने काउंटर अटैक करने में इसकी परवाह नहीं की. पायलट खेमे के विधायक इंदरराज गुज्जर ने ट्विटर पर लिखा , “जमीन पर बैठा हुआ शख्स कभी गिरता नहीं है ..लेकिन जो हवा महल बनाते हैं उन्हें जरूर चिंतित होना चाहिए’ वहीं एक और पायलट समर्थक आर्चाय प्रमोद कृष्णम ने संकेत दिया कि सचिन पायलट को राज्य में अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है.

कृष्णम ने ट्विटर पर लिखा:

“सचिन पायलट ने सियासी विष का प्याला पीया है. भगवान शिव ने भी जहर पीया था लेकिन उनका अभिषेक सावन (मॉनसून) में होता है. जैसे-जैसे सावन आएगा, राजनीतिक जहर पीने वाले का भी अभिषेक किया जाएगा.

फिर से शुरू हुई इस तीखी जुबानी जंग से पता चलता है कि राजस्थान कांग्रेस में कितनी गहरी दरार आ गई है. साल 2020 के बीच में पायलट के विद्रोह के बाद संघर्ष सुलह के बावजूद, दोनों गुट लगातार एक दूसरे पर निशाना साधते रहे हैं. गहलोत शायद ही कभी पायलट को शर्मिंदा करने के साथ-साथ अपने के खिलाफ हुए नाकाम बगावत के बारे में लोगों को याद दिलाने का मौका गंवाते हैं तो सचिन पायलट का फेवरेट टॉपिक 2013 में कांग्रेस का पतन है. और फिर राजस्थान में 2018 में कांग्रेस के पुनरुद्धार में उनकी अपनी भूमिका की बात करते हैं.

गौरतलब है कि गहलोत और उनके वफादारों को जो चीज परेशान करती है, वह है पायलट का गांधी परिवार के साथ अपनी निकटता का प्रदर्शन, जो राजस्थान कांग्रेस में बड़े बदलावों की अफवाहों को हवा देता है. यह विधानसभा उप-चुनावों के साथ-साथ हाल के राज्यसभा चुनावों में कई सफलताओं के बावजूद उन्हें तनाव में डाल देता है, जिसमें कांग्रेस ने बीजेपी समर्थित मीडिया मुगल सुभाषचंद्रा को हराकर राज्य में एक अतिरिक्त सीट जीती थी.
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बीजेपी के लिए मौका ?

राजस्थान में गहलोत-पायलट टकराव कोई सीक्रेट नहीं है. यह सबको मालूम है. इस मौके का फायदा पूरी तरह से बीजेपी को मिलता है. राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता जीसी कटारिया ने हाल ही में दावा किया था कि "पायलट के पास लोगों का समर्थन है ... और इसलिए, गहलोत उसे बाहर निकालना चाहते हैं ताकि एक मनमाना शासन कर सकें ". कटारिया के डिप्टी राजेंद्र राठौर ने कांग्रेस प्रतिद्वंद्वियों के बीच एक गहरी खाई खींचने की कोशिश करते हुए कहा,

"मैं सचिन पायलट को उनके धैर्य के लिए बधाई देना चाहता हूं, हालांकि उन्हें कभी-कभी बेकार या साजिशकर्ता कहा जाता है". राजस्थान में मध्य प्रदेश जैसा तख्तापलट की आशंका और पायलट के धैर्य की तारीफ करते हुए राठौर ने पायलट को 'नीलकंठ' (नीले गले वाला व्यक्ति) कहा, जो भगवान शिव का पर्याय है, जिन्होंने समाज के फायदे के लिए जहर का सेवन किया था.
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कांग्रेस नेतृत्व के लिए एक्शन का वक्त

अब राज्य में विधानसभा चुनाव में बमुश्किल 16 महीने बचे हैं. कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को गहलोत-पायलट के बीच दरार को तुरंत दूर करने की जरूरत है. अगर ऐसा नहीं हुआ तो राजस्थान कांग्रेस में गंभीर उथल-पुथल मच सकती है. अभी जैसे हालात अगर बने रहे तो दोनों ही ना सिर्फ बेनकाब हो जाएंगे बल्कि संदेश ये जाएगा कि केंद्रीय नेतृत्व भी प्रभावी नहीं है.

चतुर राजनीतिक पर्यवेक्षकों का सुझाव है कि पार्टी को राज्य स्तर पर कुछ सम्मान के साथ पायलट को थोड़ा शांत रखने की जरूरत है क्योंकि वह लगभग दो वर्षों से अशांत हैं. घर को व्यवस्थित करने और मामलों को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने के लिए, पार्टी आलाकमान को कुछ निपुणता और चतुराई से कदम उठाना होगा. अन्यथा, गहलोत-पायलट दरार कांग्रेस की संभावनाओं को एक बड़ा झटका दे सकती है और अगले चुनाव के बाद बीजेपी राजस्थान की नियति को 'पायलट' कर सकती है.

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