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शरद पवार का राजनीतिक संन्यास या नयी राजनीतिक चाल?

Sharad Pawar ने कहा वे अब सत्ता में किसी भी प्रकार की जवाबदारी नहीं लेंगे- इस बयान का क्या अर्थ निकाले?

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महाराष्ट्र और दिल्ली की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार (Sharad Pawar) ने ठाणे में प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वे अब सत्ता में किसी भी प्रकार की जवाबदारी नहीं लेंगे. महाराष्ट्र और केंद्र की राजनीति में चल रहे घटनाक्रमों के संबंध में पत्रकार जानना चाहते थे कि वर्तमान राजनीतिक संदर्भों में वे किस प्रकार की भूमिका निभाएंगे.

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पवार ने कहा कि अब मेरी उम्र 82 वर्ष की है. पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी भाई का उदाहरण देते हुए कहा कि वे बड़े भाग्यशाली थे. 82 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बने थे. मोरारजी भाई की परंपरा चलाने की मेरी कोई इच्छा नहीं है.

पवार के इस बयान का क्या अर्थ निकलता है?

पवार के इस बयान के अलग-अलग अर्थ निकाले जा रहे हैं. इसका एक मतलब यह निकलता है कि वे वाकई प्रधानमंत्री पद पर अपनी राजनीतिक इच्छा को त्याग रहे हैं जबकि दूसरा अर्थ यह निकाला जा रहा है कि जब मोरारजी भाई 82 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बन सकते हैं तो मैं क्यों नहीं बन सकता?

विपक्ष में इस वक्त प्रधानमंत्री बनने की हसरत रखने वालों की लंबी फेहरिस्त है. इस सूची में सबसे बुजुर्ग नेता शरद पवार ही हैं. पवार के बारे में यह कहा जाता है कि वे जो कहते हैं वे करते नहीं और जो करते हैं उसके बारे में कभी कहते नहीं.

पवार की लंबी राजनीतिक यात्रा में इस बात के कई उदाहरण मिलते हैं. उनकी इस कथनी और करनी के बारे में पवार के जन्मदिन पर 2 साल पहले आयोजित एक सभा में केन्द्रीय मंत्री नितीन गडकरी ने कहा था कि एक बार मैंने विधानमंडल में अपने भाषण में कहा था कि पवार साहब जब घर से निकलते हैं और उनके पास दिल्ली का टिकट भी होगा तो भी जब तक विमान हवा में नहीं उड़ता तब तक यह कहना मुश्किल है कि पवार साहब दिल्ली जा रहे हैं या कलकत्ता.

उनके राजकीय कौशल्य की बात करते हुए गडकरी ने कहा था कि वे कब, किसके साथ राजनीतिक गठबंधन करेंगे और कब तोड़ेंगे यह बताया नहीं जा सकता. उन्होंने कहा कि पवार साहब न कभी कार्पोरेट सेक्टर के हुए, न कम्युनिस्ट हुए और न कभी समाजवादी. उसी सभा में गडकरी ने एक और किस्सा बताया कि एक बार राष्ट्रवादी कांग्रेस का एक कार्यकर्ता उन्हें मिला. उसने कहा कि साहब ने कहा है कि काम करना शुरू करो. मैंने पूछा कि इसका क्या मतलब है तो उसने कहा कि यही तो समझ में नहीं आ रहा है कि काम शुरू करने का क्या मतलब है-उस उम्मीदवार को जिताना है या हराना है.

शरद पवार ने दलबदल या तख्तापलट को खूबसूरत नाम दिया?

पवार के जिस राजनीतिक कौशल्य की बात 2019 में गडकरी ने कही थी उसे दूसरे शब्दों में पाला बदलना कहा जाता है. ठाणे के संवाददाता सम्मेलन में इस राजनीतिक चतुराई को पवार ने बहुत आकर्षक रूप दिया. उन्होंने कहा, "इस देश के सामान्य लोगों की यातना, समस्याओं का हल निकालने के लिए विभिन्न राजनीतिक विचारधारा के लोगों को मदद करना ही मेरा सूत्र है. मैं अब सत्ता की जवाबदारी नहीं लेने वाला हूं." दूसरे शब्दों में कहें तो अपनी लंबी राजनीतिक यात्रा में किए गये तमाम दल बदल, तख्ता पलट को उन्होंने जनता की भलाई के लिए किया काम बताया.

पवार ने एक तरह से देश में हुए आज तक के तमाम दलबदल सत्तापलट या तख्तापलट को खूबसूरत नाम दे दिया है और 1957 से लेकर आज तक यानी महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे-बीजेपी सरकार और बिहार में पिछले महीने बनी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल (यू) और लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनता दल के साथ बनी सरकारों को उचित व न्यायसंगत बना दिया है क्योंकि इस परिवर्तन में शामिल सभी लोगों ने जनता के कल्याण के नाम पर अपने निर्णय को सही बताया था.
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संभाजी बिग्रेड के पास पहुंचे उद्धव, महाविकास आघाडी में सब ठीक है?

महाराष्ट्र के बड़े राजनीतिक दलों में अभी भी राजनीतिक समीकरणों को लेकर असमंजस का माहौल है. सत्ता परिवर्तन के बाद राजनीतिक दल अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतित हैं. दूसरी तरफ राज्य में शिवसेना (ठाकरे) ने संभाजी बिग्रेड के साथ गठबंधन करने की घोषणा की है. इसे एक तरह से शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के महाविकास आघाडी के टूटने का संकेत माना जा रहा है.

पवार का गोलमोल बयान और शिवसेना (ठाकरे) का नया राजनीतिक गठबंधन यही बता रहा है कि "ऑल इज नॉट वेल इन महाविकास आघाडी". महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस में असंतुष्ट गुट सक्रिय है. कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर हुए घटनाक्रम का राज्य में भी असर हो सकता है.

स्थानीय संस्थाओं के चुनाव महाविकास आघाडी एक साथ लड़ेगी या नहीं इस बात पर भी संदेह का माहौल बना हुआ है. पवार का कहना है कि अभी यह तय नहीं हुआ है कि आगामी चुनाव हम एक साथ मिलकर लड़ेंगे या स्वतंत्र रूप से लड़ेंगे. हमारी पार्टी में इस पर विचार किया जा रहा है पर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है. लेकिन मेरा व्यक्तिगत विचार है कि समविचारी,समान कार्यक्रम पर विश्वास रखने वाले लोगों को एकजुट होकर काम करना चाहिए.

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पवार भले ही इनकार कर रहे हो किन्तु उनके इसी विचार में प्रधानमंत्री बनने की इच्छा छिपी नजर आती है. वे राज्य में अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए लगातार दौरा कर रहे हैं. जिस दल के ज्यादा सांसद रहेंगे उसका नेता ही तो प्रधानमंत्री पद का पहला बड़ा दावेदार होगा और पवार इस बात को अच्छी तरह जानते हैं.

(विष्णु गजानन पांडे लोकमत पत्र समूह में रेजिडेंट एडिटर रह चुके हैं. यह एक ओपिनियन पीस और यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. इनसे क्विंट का सहमत होना जरूरी नहीं है)

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