रमजान का पाक महीना शुरू हो चुका है. 7 मई को रमजान का पहला रोजा रखा गया. रमजान के आखिरी दिन मुस्लिम धर्म का सबसे पड़ा त्योहार ईद-उल-फितर मनाया जाता है. इसे मीठी ईद भी कहते हैं.
इस्लामी कैलेंडर के नौवें महीने में रमजान मनाया जाता है. इसे मौसम-ए-बहार या नेकियों का महीना नाम से भी जाना जाता है.
रोजा रखने के लिए सूर्योदय से पहले सेहरी खाई जाती है और पूरे दिन ना कुछ खाया जाता है और ना ही पिया जाता है. सूरज ढलने के बाद मगरिब की आजान होने पर रोजा खोला जाता है, जिसे इफ्तार कहते हैं. जो लोग रोजा रखते हैं वे 5 वक्त की नमाज भी अदा करते हैं.
Ramzan का महत्व
रमजान के पवित्र महीने में ही पहली बार 'कुरान' मानव जाति के लिए प्रकट हुई थी. मुस्लिम धर्म में मान्यता है कि इस पूरे महीने में, शैतानों को नरक में जंजीरों में बंद कर दिया जाता है और आपकी सच्ची प्रार्थनाओं और भिक्षा के रास्ते में कोई नहीं आ सकता है.
जरूरी होती है नमाज
ऐसा माना जाता है कि जो लोग बिना नमाज के रोजा रखते हैं वह फाका कहलाता है. रोजा तभी कबूल होता है जब रोजदार से 5 वक्त की नमाज अदा करें.
जानें क्यों मनाया जाता है ईद-उल-फितर
मुस्लिम धर्म में ऐसा माना गया है कि पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र के युद्ध में विजय हासिल की थी और इसी खुशी में ईद उल-फितर या मीठी ईद मनाई जाती है. पहली बार ईद उल-फितर 624 ईस्वीं में मनाई गई थी. इस दिन मीठे पकवान खास तौर से मीठी सेवाइयां बनाई जाती हैं. दान देकर अल्लाह को याद किया जाता है और इस दान को ही फितरा कहा जाता है.
लोग गले मिलकर एक-दूसरे को ईद की शुभकामनाएं देते हैं. इस दिन खासतौर पर मुस्लिम लोग नए कपड़े पहनते हैं. लोग नमाज पढ़ते हैं और अल्लाह से सुख-शांति, बरकत के लिए दुआएं मांगते हैं.
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