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बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने वंदेमातरम क्यों लिखा? जानना जरूरी है..

‘वन्दे मातरम’ आज तक राष्ट्र की संप्रभुता और एकता का शंखनाद करता है

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बांग्ला साहित्य के महान लेखक बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने हमारे राष्ट्रगीत की रचना की है, ये तो सभी जानते हैं. लेकिन उन्होंने क्यों इस गीत को लिखा, ये बात शायद बहुत कम लोगों को पता है. दरअसल जब इस गीत की रचना उन्होंने की, उस दौर में भारत पर ब्रिटिश राज कायम था.

उस वक्त ब्रिटिश सरकार ने अपने देश के एक गीत- "गॉड! सेव द क्वीन" को हर सरकारी समारोह में गाना अनिवार्य कर दिया था. बंकिमचंद्र तब सरकारी नौकरी में थे. अंग्रेजों के इस थोपे गए बर्ताव से बंकिम मन ही मन बेहद नाराज थे. इसी वजह से भारत की वन्दना और गुणगान करने के उद्देश्य से उन्होंने साल 1876 में 'वन्दे मातरम्' गीत की रचना की.

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हमारे देश के उन बड़े साहित्यकारों में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय सबसे पहले गिने जाते हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं के बलबूते पूरे भारत में स्वतंत्रा की जागृति का ऐसा मंत्र फूंका कि पूरा देश 'वंदे मातरम्' के जयघोष के साथ देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत हो उठा. भारत का राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम' उनकी ही रचना है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौर में क्रांतिकारियों का प्रेरणास्रोत बन गया था. आजादी के लिए संघर्ष के दिनों से लेकर 'वन्दे मातरम्' आज तक राष्ट्र की संप्रभुता और एकता का शंखनाद करता है. रवीन्द्रनाथ टैगोर के युग से पहले के बांग्ला साहित्यकारों में बंकिमचंद्र ऐसे पहले साहित्यकार थे, जिन्होंने आम जनमानस में अपनी पैठ बनाई.

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शुरुआती जीवन

बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 27 जून 1838 को बंगाल के उत्तरी चौबीस परगना जिले के कांठालपाड़ा में एक समृद्ध बंगाली परिवार में हुआ था. उनकी पढ़ाई हुगली कॉलेज और प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता में हुई. बीए के अलावा उन्होंने कानून की डिग्री भी हासिल की. इसके बाद डिप्टी मजिस्ट्रेट पद पर इनकी नियुक्ति हो गई. कुछ साल तक वे बंगाल सरकार के सचिव पद पर भी रहे. उन्हें रायबहादुर और सी.आई. ई. की उपाधियों से भी नवाजा गया. 1891 में वे सरकारी सेवा से रिटायर हुए.

बंकिमचंद्र ने अपने लेखन की शुरुआत अंग्रेजी उपन्यास- Rajmohan’s Spouse से की थी, लेकिन जल्द ही उन्हें इस बात का अहसास हो गया कि जब तक देश की भाषा में लेखन नहीं किया जाएगा, तब तक देशवासियों को आंदोलन के लिए प्रेरित नहीं किया जा सकता. लिहाजा, उन्होंने इस उपन्यास को आधा-अधूरा ही छोड़ दिया और अपनी बांग्ला भाषा में साहित्य रचना करने लगे.

साहित्य साधना से हुए मशहूर

27 साल की उम्र में बंकिमचंद्र ने अपना पहला उपन्यास 'दुर्गेशनंदिनी' लिखा. इस एतेहासिक उपन्यास से ही साहित्य में उनकी धाक जम गयी. फिर उन्होंने 'बंग दर्शन' नामक साहित्यिक पत्र का प्रकाशन शुरू किया. रवीन्द्रनाथ टैगोर इसी साहित्यिक पत्र में लिखकर ही साहित्य के क्षेत्र में कदम रखे. रवीन्द्रनाथ का कहना था कि बंकिम बांग्ला लेखकों के गुरु और बांग्ला पाठकों के मित्र हैं. इसके बाद बंकिमचंद्र के कई और उपन्यास प्रकाशित हुए, जिनमें 'कपाल कुंडलिनी', 'मृणालिनी', 'विषवृक्ष', 'कृष्णकान्त का वसीयतनामा', 'रजनी', 'चंद्रशेखर', 'इंदिरा', 'युगलांगुरिया', 'राधारानी' आदि प्रमुख हैं.

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लेखनी से देशभक्ति की अलख जगाई

बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने उपन्यासों के माध्यम से देशवासियों में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह की चेतना का निर्माण करने में अहम योगदान दिया था. राष्ट्रभक्ति के नजरिये से 'आनंदमठ' बंकिमचंद्र का सबसे लोकप्रिय उपन्यास है. इसी में सबसे पहले 'वन्दे मातरम्' गीत प्रकाशित हुआ था. ऐतिहासिक और सामजिक तानेबाने से बुने हुए इस उपन्यास ने देश में अंग्रेजी हुकूमत के जुल्मों को झेल रहे देशवासियों के अंदर राष्ट्रीयता की भावना जगाने में बहुत बड़ा योगदान दिया. 'वन्दे मातरम्' मंत्र ने देश के स्वतंत्रता संग्राम को नई चेतना से भर दिया. 'आनंदमठ', 'देवी चौधरानी' और 'सीताराम' जैसे उपन्यासों में अंग्रेजी हुकूमत के उस दौर की सटीक चित्र देखने को मिलता है.

बंकिमचंद्र की रचनाओं में समाज की विविधता झलकती है. शायद यही वजह है कि उनके उपन्यासों का भारत की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद किया गया. 8 अप्रैल 1894 को इस महान साहित्यकार ने दुनिया को अलविदा कह दिया. समृद्ध साहित्य और राष्ट्रीय गीत के रूप में उन्होंने भारत को जो अनमोल योगदान दिया है, उसके लिए वो हमेशा याद किये जायेंगे.

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