अभी कुछ ही समय पहले की बात है. नसीरुद्दीन शाह दिल्ली में थे. यूं तो उनका दिल्ली आना-जाना लगा रहता है, लेकिन उस दिन वो मेघदूत थिएटर में नाटक करने आए थे. मेघदूत थिएटर नसीर के गुरु रहे इब्राहिम अल्काजी ने बनाया था. नसीर बताते रहे हैं कि इस मंच के लिए उन्होंने मिट्टी भी उठाई है.
मेघदूत थिएटर नसीर के लिए जिआरत की जगह है. उन्होंने रंगमंच की दुनिया में इसी थिएटर से चलना सीखा है.
खैर, नसीर साहब ने नाटक से एक दिन पहले एक छोटे से इंटरव्यू की मेरी गुजारिश को मान लिया.
मेरा पहला सवाल था, ‘आपके थियेटर प्रेम पर आपके पिता जी का क्या रुख था?’
नसीर चमकती आंखों से वो किस्सा याद करते हैं. कहते हैं:
मेरे वालिद ने मेरा कोई नाटक नहीं देखा था. पहली बार जब वो मेरा नाटक देखने आए, तो वो नाटक मेघदूत थिएटर में ही हो रहा था. जो इकलौता नाटक उन्होंने देखा, वो था ‘सुल्तान रजिया’.नसीरुद्दीन शाह
अब्बा की बात चल रही है, तो नसीर साहब एक बड़ा मजेदार और खूबसूरत किस्सा बताते हैं. आपको जानकर ताज्जुब होगा कि नसीरुद्दीन शाह को अपने जन्मदिन की असल तारीख नहीं पता. नसीर साहब के शब्दों में:
अम्मी तक को भी मेरा जन्मदिन ठीक से याद नहीं. वो कहती थीं कि तुम रमजान में पैदा हुए थे. अब सिर्फ इस बात से जन्मदिन का पता कैसे चलेगा. खैर बाद में अब्बा ने जब स्कूल में एडमिशन कराया तो, मेरा जन्मदिन 16 अगस्त 1950 लिखाया गया.नसीरुद्दीन शाह
वो बचपन, वो यादें...
नसीरुद्दीन शाह के पांच भाई थे. बदकिस्मती से तीन ही बचे. उनके अब्बा की ख्वाहिश थी कि एक बेटी भी हो, लेकिन वो ख्वाहिश पूरी नहीं हुई. 1947 में जब देश की आजादी के बाद बंटवारा हुआ, तो उनके कई रिश्तेदार पाकिस्तान चले गए. लेकिन नसीर के अब्बा ने हिंदुस्तान में रहने का फैसला किया. वो प्रोविंसियल सिविल सर्विसेस में तहसीलदार के पद पर थे.
मैंने उनके अब्बा के पाकिस्तान न जाने की वजह पूछी, तो आंखों को हल्के से भींचकर कुछ याद करते हुए नसीर साहब ने कहा:
अब्बा ने तय किया था कि वो यहीं हिंदुस्तान में रहेंगे और बाद में एक लम्हें के लिए भी कभी उन्हें इस बात का पछतावा नहीं हुआ. न ही मुझे और मेरे बाकी घरवालों को.नसीरुद्दीन शाह
नसीरुद्दीन शाह जैसी शख्सियत से बातचीत हो रही हो, तो किस्से सुनने का मजा ही अलग है. ऐसे किस्से, जो किसी सर्च इंजन पर नहीं मिलते.
मैंने पूछा, ‘ नसीर साहब, आपका बचपना कैसा था?’
फिल्म स्क्रीन पर सीन के हिसाब से दी जाने वाली अपनी नपी-तुली मुस्कान के साथ नसीर कहते हैं:
मेरे स्कूल में ‘स्पोर्ट्स डे’ के इनाम बंटने थे. अचानक किसी ने मुझे धक्का दिया और कहा कि मेरा नाम पुकारा गया है. उस धक्के के साथ मैं स्टेज पर पहुंचा. इनाम लिया और नीचे आ गया. ये अलग बात है कि मुझे आज तक नहीं पता कि वो इनाम मुझे क्यों मिला था. हुजूर, हमारी हालत तो ऐसी थी कि मान लीजिए कि क्लास में पचास बच्चे होते थे, तो आप सोच सकते हैं कि मेरी पोजीशन क्या होती थी- पचासवीं.नसीरुद्दीन शाह
इसी दौरान बचपन में सिगरेट पीने की लत और क्रिकेट की दीवागनी पर भी वो थोड़ी बातें करते हैं.
कैसे लगा एक्टिंग का ‘कीड़ा’?
नसीर की बाद की पढ़ाई अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में हुई. बचपन में एक बार रामलीला देखी थी, तो एक्टिंग का ‘कुछ कुछ’ नसीर को समझ आया था. अलीगढ़ में आकर वो ‘कुछ कुछ’ ‘बहुत कुछ’ में तब्दील हो गया. कुछ टीचरों ने भी हौसला अफजाई की. लिहाजा नसीर की जिंदगी में थिएटर आया. फिर थिएटर ही ‘सबकुछ’ हो गया, जब वो दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) पहुंचे. बचपन में हिंदी फिल्में न के बराबर ही देखी थीं. जो पहली हिंदी फिल्म नसीर ने देखी थी, वो थी ‘बहुत दिन हुए’.
ओम पुरी की यादें
एनएसडी की बात चली, तो मैंने अपने एक पुराने इंटरव्यू का हवाला देते हुए कहा, 'ओम पुरी आपको बहुत प्यार करते थे. गाली भी देते थे तो बड़े प्यार से.’
नसीर कहने लगे:
ओम का मेरी जिंदगी पर उतना ही हक है, जितना मेरा. मुझे फारूक (शेख) और ओम पुरी पर बहुत गुस्सा आता है. स्मिता (पाटिल), फारूक और ओम, तीनों ने अपना खयाल नहीं रखा. स्मिता का तो खैर मेडिकल हादसा था, लेकिन फारूक और ओम, दोनों ने अपनी सेहत के साथ सख्त लापरवाही की. उन दोनों को समझना चाहिए था कि उनकी कितनी जरूरत थी. दोनों ही मेरे बड़े अजीज थे. भाई थे. भाई से भी बढ़कर थे.नसीरुद्दीन शाह
ये किस्सा तो काफी लोगों को पता है, जब नसीर और ओम पुरी के एक दोस्त ने नसीर पर चाकू से हमला कर दिया था. ओम पुरी ने बीच में कूदकर नसीर की जान बचाई थी. ओम पुरी के संघर्ष को महान बताते हुए नसीर कहते हैं, ‘ओम पुरी इंसानी हिम्मत, इंसानी मेहनत और खुद पर यकीन का नतीजा था. ओम के संघर्ष की कहानियां कोई सुन ले, तो उसके रोंगटे खड़े हो जाएंगे.’
मेरा अगला सवाल था, ‘क्या आपको भी कभी संघर्ष करना पड़ा?’
नसीर कहते हैं, ‘मैं खुशनसीब था कि जब मैं इंस्टीट्यूट में था, तब ही मुझे मेरी पहली फिल्म मिल गई 'निशांत'. इस फिल्म के लिए मुझे दस हजार रुपये मिले थे.’
तमाम फिल्मों पर बातचीत के बाद मैं 'सरफरोश' का जिक्र करता हूं तो वो कहते हैं, ‘उस फिल्म में उनका रोल नहीं, बल्कि कहानी बहुत शानदार थी.’
सरफरोश के बहाने पाकिस्तान पर बातचीत शुरू हो जाती है. मैंने उन्हें बताया कि मैं चार बार पाकिस्तान गया हूं. वो तुरंत बोले, ‘और मैं तीन बार.’ नसीर को पाकिस्तान के लोग उनके नाटक ‘गालिब’ की वजह से पहचानते हैं, जिसे गुलजार साहब ने लिखा और डायरेक्ट किया था.
गालिब की शायरी गुनगुनाते नसीर
‘राजेश खन्ना एक्टर नहीं’
मेरे जेहन में एक मजेदार सवाल आया. इंटरव्यू सही चल रहा था, इसलिए पूछने में कोई हर्ज नहीं. मैंने पूछा, ‘नसीर साहब ये बताइए कि आप और टॉम ऑल्टर दोस्त थे. दोनों ने साथ में थिएटर भी किया है. टॉम कहते थे कि वो फिल्म इंडस्ट्री में राजेश खन्ना की वजह से आए, जबकि आप राजेश खन्ना को एक्टर ही नहीं मानते, तो आपका और टॉम ऑल्टर का झगड़ा नहीं होता था?’
पूरे इंटरव्यू में नसीर पहली बार खुल कर हंसे और बोले, ‘आखिरी दम तक टॉम अपनी बात पर अड़ा रहा और मैं अपनी. इससे ज्यादा और क्या कहूं.’
इंटरव्यू का समय खत्म हो रहा है. नसीर बात खत्म करने से पहले कहते हैं, ‘कल आएंगे ना आप नाटक देखने?’
मैंने कहा, ‘जी जरूर.’
अगले दिन मैं नाटक देखने गया भी. नसीर उसी मेघदूत थिएटर के मंच पर अपनी तैयारी कर रहे हैं. मैंने उन्हें डिस्टर्ब करना ठीक नहीं समझा. उनकी एक सहयोगी को पाकिस्तान पर अपनी एक किताब और शास्त्रीय संगीत कलाकारों के घरानों पर प्रकाशित एक कैलेंडर देकर आ गया.
तीन चार दिन बाद मेरे मोबाइल पर मैसेज आया, ‘किताब तो बाद में पढूंगा, लेकिन कैलेंडर बहुत खूबसूरत है.’
खास बात: नसीरुद्दीन शाह का जन्मदिन कुछ जगहों पर 16 अगस्त भी दर्ज है. जन्म की सही तारीख उन्हें भी नहीं पता, लेकिन कई सालों से 20 जुलाई चलन में है.
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