‘भारत कोकिला’ सरोजिनी नायडू एक बहुत ही ऊर्जावान महिला थीं. बात चाहे कविताओं के जरिए सामाजिक बुराइयों पर रोशनी डालने और महिलाओं को मताधिकार दिलाने की हो या फिर सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान सबसे आगे रहकर अंग्रेजों की लाठीचार्ज का सामना करने की हिम्मत रखने, आजादी, न्याय और सशक्तिकरण के लिए संघर्ष करने की हो, किसी भी मामले में वह पीछे हटने वाली महिला नहीं थीं.
एक बेहतर दुनिया के लिए लड़ने का साहस उनमें कूट-कूटकर भरा हुआ था, जिससे उन्होंने देश के कई बड़े-बड़े नेताओं का दिल जीत लिया. इसका नतीजा यह था कि 16 साल की उम्र में ही हैदराबाद के निजाम ने उनको विदेश में पढ़ाई करने के लिए स्कॉलरशिप दी तो वहीं महात्मा गांधी उन्हें अपने सबसे करीबी और वफादार साथियों में से एक मानते थे.
आज देश ‘भारत कोकिला‘ सरोजिनी नायडू, जिन्होंने एक बेहतर भारत बनाने में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी, उनको नमन करता है.
ब्रिटिश राज से भारत की आजादी के ऐतिहासिक संघर्ष में उनके अनंत योगदान उनके शब्दों और काम के जरिए देश की जनता को सशक्त बनाने में उनकी भूमिका को देखते हुए नायडू को तत्कालीन संयुक्त प्रांत की पहली महिला राज्यपाल बनाया गया था. इसके अलावा कांग्रेस पार्टी को लीड करने वाली वह पहली भारतीय महिला भी थीं.
एक कवयित्री
नायडू ने भावनात्मक कविताओं की अगुवाई की थी. केवल 12 साल की उम्र में नायडू ने फारसी में एक कविता ‘मेहर मुनीर’ लिखी और उसे अपने पिता को दिखाया. वह इस कविता से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने इसकी एक कॉपी हैदराबाद के निजाम को भेज दी. निजाम ने नायडू को इंग्लैंड के किंग्स कॉलेज और फिर कैम्ब्रिज में पढ़ाई करने के लिए स्कॉलरशिप दी.
यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करते हुए ही नायडू का लगाव धार्मिक कविताओं की तरफ हुआ, लेकिन जब वह थोड़ी और बड़ी हुईं और जिंदगी के कुछ और खट्टे-मीठे अनुभव हासिल किए तब उनकी कविताएं आम होने लगीं और लोगों को अपनी तरफ खीचने लगीं.
‘सॉल्स प्रेयर’, ‘लाइफ’, ‘टू इंडिया’ और ‘इंडियन वीवर्स’ वगैरह उनकी कुछ सबसे अच्छी कविताएं हैं और इन कविताओं में उन्होंने गहरे वाक्यों के जरिए जिंदगी, आजादी और प्रेम के असल मायने बयान किए.
आजादी की लड़ाई में नायडू का योगदान
जब नायडू कैम्ब्रिज से वापस भारत लौटी उस समय भारत पूरी तरह से आजादी की लड़ाई में तप रहा था. उन्होंने खुद को इस आग में झोंक दिया, जिसके बाद जनता के लिए वह तेजी से एक बड़े नेता के रूप में उभरीं.
वी. एस. नारावान ने अपनी किताब ‘सरोजिनी नायडू: हर लाइफ, वर्क एंड पोएट्री’ में जिक्र किया है कि सन 1905 में जब लॉर्ड कर्जन ने पहली बार बंगाल के विभाजन की घोषणा की थी, तब गोपालकृष्ण गोखले जैसी महान हस्तियों के साथ मार्च करते हुए युवा नायडू विरोध प्रदर्शन में सबसे आगे थीं.
कुछ साल बाद, बिपिन चन्द्र ने अपनी किताब ‘इंडियाज स्ट्रगल फॉर इंडिपेंडेंस: 1857-1947’ में लिखा कि उन्होंने महात्मा गांधी से जान पहचान बढ़ाई, अहिंसा और असहयोग आंदोलन में उनकी अनुयायी बन गईं.
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वेल्स के राजकुमार के भारत विजिट पर जब दंगे भड़क उठे थे उस समय नायडू कांग्रेस की रिप्रजेंटेटिव थीं और उन्हें हिंसाग्रस्त इलाकों का दौरा करने और हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देकर लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए कहा गया था.
चंद्र का कहना है कि 1924 में नायडू ने दक्षिण अफ्रीका की यात्रा की और एंटी-हिस्टोरिक बिल की समीक्षा करने के लिए पूर्वी अफ्रीकी कांग्रेस के एक सत्र की अध्यक्षता की. 1925 में उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. 1930 में, जब गांधी ने दांडी मार्च के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया, तो नायडू हमेशा की तरह जनता का नेतृत्व कर रही थीं.
बाद में जब गांधी की गिरफ्तारी हुई तब नायडू ने आंदोलन को नियंत्रित करने में सहयोग दिया. इस आंदोलन के बाद और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इन्हें भी पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि हर बार वह रिहा हो गईं और केंद्र मे वापसी करके खुलकर नेतृत्व किया.
महिला सशक्तिकरण में उनकी भूमिका
सरोजिनी नायडू के मुताबिक जिन महिलाओं ने आजादी की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी उन महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए वह सबसे आगे थीं. नारावान की रिपोर्ट के अनुसार, 1917 में नायडू ने एनी बेसेंट, जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे प्रसिद्ध नामों में से एक है और जिन्होंने 'विमेंस इंडिया एसोसिएशन' की स्थापना की थी, के साथ मिलकर काम किया.
यह वह समय था जब महिलाओं के मताधिकार की मान्यता के लिए उनकी लड़ाई शुरू हुई और उसी वर्ष उन्होंने इसे अमल में लाने के लिए तत्कालीन विदेश मंत्री एडविन मोंटेगू से मिलने के लिए प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया.
सन 1918 में, नायडू ने बॉम्बे में कांग्रेस की एक बैठक के दौरान महिलाओं के मताधिकार की महत्व की बात कही. सन् 1919 में उन्होंने होम-रूल लीग मूवमेंट को रिप्रजेंट किया, इसमें वह और बेसेंट एक साथ थे. इस मूवमेंट को बाल गंगाधर तिलक जैसे लोगों का भी समर्थन मिला. नारावान अपनी किताब में लिखते हैं कि नायडू ने इंग्लैंड का दौरा किया और वहां पर भी महिलाओं को मताधिकार दिलाने की बात कही.
जागरूकता अभियान और महिला शिक्षा और उनके अधिकारों के अभियान के एक हिस्से के रूप में, उन्होंने बड़े पैमाने पर देश के सभी भागों की यात्रा की.
औपनिवेशिक भारत की सीमा के भीतर और बाहर इस देश को और इस देश की महिलाओं की आजादी की लड़ाई में मदद करने के लिए नायडू एक मिशन पर थीं.
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