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World IVF Day 2022: आईवीएफ और सरोगेसी पर क्या है डॉक्टरों की राय?

वर्ल्ड एम्ब्रायोलॉजिस्ट डे पर डॉक्टरों से जानें इन्फर्टिलिटी की समस्या से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें.

अश्लेषा ठाकुर
फिट
Published:
<div class="paragraphs"><p>World IVF Day 2022: इन्फर्टिलिटी और सरोगेसी की बातें समझाते डॉक्टर्स&nbsp; &nbsp;</p></div>
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World IVF Day 2022: इन्फर्टिलिटी और सरोगेसी की बातें समझाते डॉक्टर्स   

(फोटो: विभूषिता सिंह/फिट हिंदी)

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World IVF Day 2022: आज 25 जुलाई यानी विश्व आईवीएफ दिवस और वर्ल्ड एम्ब्रायोलॉजिस्ट डे के दिन हम चर्चा करेंगे आईवीएफ और सरोगेसी से जुड़े महत्वपूर्ण सवालों के जवाबों पर. कई बार जानकारी के आभाव में व्यक्ति गलती कर बैठता है. ऐसी परिस्थिति का सामना करने से बेहतर है विशेषज्ञ की राय लेना.

आईवीएफ और सरोगेसी पर डॉक्टरों से जानते हैं इस समस्या का कारण और इलाज से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के बारे में.

देश में इन्फर्टिलिटी की समस्या क्यों बढ़ रही है?

ये सवाल जब फिट हिंदी ने सी. के. बिरला हॉस्पिटल की सीनियर गायनोकोलॉजिस्ट और ऑब्स्टट्रिशन डॉ. अरुणा कालरा से पूछा तो उनका जवाब था, "इन्फर्टिलिटी की समस्या तेजी बढ़ रही है. जिसकी वजह से दंपति माता-पिता नहीं बन पाते हैं. इसका कारण है महिला में एग/उसाइट का न बनना, एंडोमेट्रिओसिस, फैलोपियन ट्यूब में समस्या होना, उम्र ज्यादा होने की वजह से एग का कमजोर पड़ जाना, कीमोथेरपी, दवाओं का अधिक सेवन, खराब लाइफस्टाइल और कई बार ऑटोइम्यून बीमारियों की वजह से अंडों का मर जाना".

वहीं बिरला फर्टिलिटी एंड आईवीएफ की कन्सल्टंट डॉ प्राची बेनारा ने कहा,

"आजकल देखा गया है कि बांझपन की समस्या हमारे दुनिया में महामारी की तरह फैल रही है. जब हम छोटे थे, तब बांझपन की बात नहीं सुनी जाती थी और लोगों को प्रजनन क्षमता हासिल करने में बहुत कम या कोई समस्या नहीं होती थी. पर अब हाल ऐसा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बांझपन की समस्या 1:6 और शहरी क्षेत्रों में 1:4 अनुपात पर है."

डॉ प्राची आगे कहती हैं, "पढ़ाई, करियर और भविष्य की चिंता में हर कोई इतना बिजी है कि शादी करने की उम्र में देरी हो रही है. शादी के बाद गर्भधारण में भी देरी हो रही है. जैसे-जैसे महिलाओं की शादी और गर्भावस्था के लिए उम्र बढ़ती है, अंडे की मात्रा और गुणवत्ता घटती जाती है. इसमें इरेक्टाइल डिसफंक्शन, पुरुषों में एजक्यूलेशन संबंधी विकार जैसी समस्याएं शामिल हैं. उम्र के अलावा, आप जिस वातावरण में रहते हैं, वह भी इसे प्रभावित करता है. चाहे वह तनाव हो, प्रदूषण का स्तर हो या हमारे शरीर में जाने वाले कीटनाशकों की मात्रा हो. इन सभी कारणों से बांझपन में वृद्धि होती है".

इंडियन रिप्रोडक्टिव सोसाइटी द्वारा एक सर्वेक्षण में यह पाया गया कि 4 में से 1 जोड़े को गर्भधारण करने में कठिनाई होती है.

आईवीएफ (IVF) की प्रक्रिया

इसमें महिला के शरीर के बाहर एग और स्पर्म का फर्टिलाइजेशन होता है. एक महिला के मासिक धर्म के दूसरे दिन, उन्हें कुछ हार्मोन का इंजेक्शन लगाया जाता है. इन इंजेक्शनों के कारण महिला के शरीर में एक से अधिक अंडे का उत्पादन होता है. जिस क्षण ये सभी अंडे परिपक्व हो जाते हैं, तब महिला को एनेस्थीसिया के माध्यम से बेहोश कर वजाइना (vagina) के रास्ते एक सुई की तरह का उपकरण डाला जाता है और अंडों को ओवरी से निकाल दिया जाता है. साथ ही साथ महिला के साथी से एक माइक्रोस्कोप में स्पर्म का नमूना लिया जाता है. टेस्टीक्यूलर एस्पिरेशन की मदद से भी स्पर्म लिए जा सकते हैं. स्पर्म देने के बाद डॉक्टर लैब में स्पर्म को स्पर्म फ्लूइड से अलग करते हैं.

उसके बाद फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया शुरू होती है. अब पुरूष के स्पर्म को महिला के अंडों के साथ मिलाया जाता है और फर्टिलाइज किया जाता है.

इसके बाद भ्रूण को गर्भ में रखने की बारी आती है. अगर ग्रोथ ठीक रहती है, तो इसे कभी-कभी महिला के गर्भ में तुरंत डाल दिया जाता है, नहीं तो एग लेने के 3 से 5 दिन बाद ये प्रक्रिया की जाती है.

डॉक्टरों के अनुसार, भ्रूण रखने के बाद महिला नॉर्मल लाइफ जी सकती हैं. महिला गर्भवती हो जाती है, तो यह लगभग स्वाभाविक रूप से गर्भ धारण करने वाले बच्चे के बराबर होता है. हालांकि, ओवरी का आकार पहले से बड़ा हो जाता है, ऐसे में किसी भी असामान्य गतिविधि से बचने की कोशिश करनी चाहिए.

आईवीएफ के फायदे

डॉक्टर कालरा के अनुसार ये हैं आईवीएफ के फायदे:

  • आईवीएफ उपचार में स्वस्थ अंडे और स्पर्म का चयन किया जाता है, इसलिए गर्भधारण की संभावना अधिक होती है.

  • आईवीएफ उपचार करने से पहले फर्टिलिटी डॉक्टर पुरुष और महिला दोनों की विस्तृत जांच होती है. उसके बाद, पूरी सावधानी के साथ इलाज की प्रक्रिया शुरू की जाती है. इसी वजह है कि अक्सर आईवीएफ के बाद शिशु के स्वस्थ होने की संभावना अधिक होती है.

  • अगर पुरुष के स्पर्म की क्वालिटी खराब और संख्या कम है या महिला की ओवरी में स्वस्थ अंडे उत्पन्न नहीं हो रहे हैं, तो इस स्थिति में डोनर स्पर्म और अंडे (Donor sperm and egg) का इस्तेमाल कर सकते हैं.

  • आईवीएफ को सरोगेसी के लिए बेस्ट बिकल्प माना जाता है. अगर सरोगेसी के जरिए माता-पिता बनने का प्लान है, तो आईवीएफ उपचार एक बेहतर विकल्प है.

  • आईवीएफ उपचार के बाद गर्भपात का खतरा कम होता है. यह बांझपन का एक सुरक्षित और सफल इलाज है.

  • आईवीएफ आपको प्रेगनेंसी का समय तय करने की आजादी देता है. आप खुद इस बात का फैसला कर सकती हैं, आपको कब गर्भधारण करना है.

आईवीएफ के दौरान इन बातों का ख्याल रखना चाहिए

डॉ प्राची ने बताया कि सालों पहले और आज की आईवीएफ तकनीक में बहुत बड़ा फर्क हैं. यह पहले से कहीं अधिक कारगर और महिला को कम से कम दर्द का अनुभव देता है.

डॉ कालरा ने बतायी ये सावधानियां:

  • अगर आप आईवीएफ ट्रीटमेंट के जरिए मां बनने जा रही हैं, तो सबसे जरूरी है कि आप अपने डॉक्टर की सलाह मानें. डॉक्टर द्वारा बताए गए इंजेक्शन समय पर लेना बेहद जरूरी है.

  • कुछ महिलाएं वर्किंग होती हैं. ट्रीटमेंट के शुरुआती दिनों में खासकर जब इंजेक्शन दिए जा रहे हों, तो दो सप्ताह घर में रेस्ट करें.

  • शरीर को भरपूर आराम देना चाहिए. प्रतिदिन 7-8 घंटे की नींद लेनी चाहिए.

  • भ्रूण ट्रांसफर के बाद 15 दिन में रिजल्ट पॉजिटिव आ जाता है, तो जो दवाएं दो सप्ताह के लिए चल रही थीं, वे तीन महीने तक और चलती हैं. दवाओं का सेवन सही समय पर करना चाहिए. तीन महीने के बाद आयरन, फॉलिक एसिड खाने की सलाह दी जाती है. इनका सेवन जरूर करना चाहिए.

  • इसके बाद नॉर्मल प्रेगनेंसी की तरह आप ऑफिस जा सकती हैं, घर के काम कर सकती हैं.

  • स्मोकिंग, एल्कोहल के सेवन से बचना चाहिए.

  • प्रॉपर हेल्दी डाइट लेनी चाहिए.

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आईवीएफ के नुकसान

कई बार आईवीएफ के नुकसान भी हो सकते हैं लेकिन एक फर्टिलिटी डॉक्टर द्वारा बताई गई बातों का ध्यान रखकर इन् साइड इफेक्ट्स को कम किया जा सकता है.

  • शिशु में जन्मजात दोष

  • ओवेरियन कैंसर

  • गर्भपात का खतरा

  • एक्टोपिक प्रेगनेंसी

  • समय से पहले प्रसव

  • ओवेरियन हाइपरस्टिमुलेशन सिंड्रोम

पहले प्रयास में बच्चा होने की सफलता दर 50-60% है. बच्चा होने से पहले, उन चीजों पर चर्चा करना महत्वपूर्ण है, जो पहली बार नहीं होने पर बच्चे की सफलता दर को बढ़ा सकती हैं. विफलता के कारणों को जानने के लिए पहले सभी प्रकार के विश्लेषण किए जाने चाहिए. दूसरा प्रयास तुरंत नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसमें शारीरिक दर्द के अलावा भावनात्मक बोझ होता है.

क्या है एग डोनेशन की प्रक्रिया आईवीएफ में?

"अंडों की गुणवत्ता और मात्रा उम्र पर निर्भर करती है. कभी-कभी हमारे पास ऐसे जोड़े आते हैं, जिनमें अंडे की संख्या कम होती है. इससे एक सफल आईवीएफ बच्चा होने की संभावना कम हो जाती है. हम तब एक एग डोनर की सलाह देते हैं. यह ICMR के माध्यम से एक वैध प्रक्रिया है."
डॉ प्राची बेनारा

जोड़े और एग डोनर आपस में कभी नहीं मिल सकते हैं.

"ICMR ने कुछ एग डोनर एजेंसियों को प्रमाणित किया है, जो उन जोड़ों को एग डोनेट करते हैं, जिन्हें इस तरह से बच्चा पैदा करने की सलाह दी जाती है. इसके बाद जोड़ों के व्यक्तित्व और पसंद न पसंद जिसमें ऊंचाई, त्वचा का रंग, विशेषताएं, ब्लड ग्रुप की एक लिस्ट एजेंसियों को भेजी जाती है. फिर एजेंसी इन विशेषताओं से मेल खाने वाले अंडों की खोज करती है. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि डोनर हमेशा गुमनाम होता है".
डॉ प्राची बेनारा

जब डोनर आती है, तो उन्हें यह सुनिश्चित कराया जाता है कि उनके शरीर को कोई नुकसान नहीं होगा और साथ ही प्रक्रिया की पूरी जानकारी दी जाती है. अंडे की संख्या जानने और यह देखने के लिए कि डोनर कितनी स्वस्थ हैं, ब्लड टेस्ट के साथ एक अल्ट्रासाउंड भी किया जाता है.

आईवीएफ होने पर डोनर की प्रक्रिया शुरू की जाती है. डोनर के स्वास्थ्य के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए, सही समय पर सीमित मात्रा में एग का निर्माण किया जाए और निकाला जाए.

उसके बाद प्राप्तकर्ता पुरुष साथी के फ्रीज किए गए स्पर्म के नमूने को मिलाकर भ्रूण का निर्माण किया जाता है. फिर महिला प्राप्तकर्ता के गर्भाशय की परत को कुछ हार्मोनों को इंजेक्ट करके तैयार किया जाता है. भ्रूण को कमरे के तापमान पर लाया जाता है और एक बार उचित मोटाई के अस्तर पर आने के बाद इंप्लांट किया जाता है. इस गर्भावस्था की संभावना काफी अच्छी होती है (60%).

सरोगेसी के बारे में कुछ बातें 

कुछ मामले ऐसे होते हैं, जहां महिलाओं का गर्भवती होना उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है. तो इन मामलों में 9 महीने के लिए किसी दूसरी महिला की कोख उधार ली जाती है. सरोगेसी एक वैध प्रक्रिया है. यह उन महिलाओं को मां बनने की अनुमति देता है, जो स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण प्रजनन नहीं कर सकती हैं.

सरोगेसी द्वारा माता-पिता बनने वाले जोड़े सरोगेट मदर से मिल सकते हैं. वे खुद सरोगेट मदर को चुन सकते हैं. सरोगेट मदर परिवार में से भी हो सकती है, इसे कहते हैं परोपकार सरोगेसी.

बच्चे का रंग, कद, स्वभाव जैसी बातें स्पर्म और एग पर निर्भर करती है. सरोगेट मां केवल 9 महीने के लिए बच्चे को अपने गर्भ में रखती है. यदि प्राप्तकर्ता मां या पिता अपना एग या स्पर्म देने में सक्षम नहीं है, तो डोनर एग या स्पर्म लिया जाता है. किसी भी स्थिति में सरोगेट मदर के एग का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए.

"जब माता-पिता की बात आती है कि वे किस तरह का बच्चा चाहते हैं, तो डोनर एजेंसी को माता-पिता की पसंद और विशेषताओं का उल्लेख वाली एक लिस्ट भेजी जाती है. हम डोनर के अंडे की विशेषताओं को जोड़े के साथ मिलाने की कोशिश करते हैं.
डॉ प्राची बेनारा

क्या सरोगेसी के लिए कानून मौजूद है और क्या सरोगेट मदर बनने का कोई मापदंड है?

"आईवीएफ कानून को सरकार ने मंजूरी दे दी है, लेकिन सरोगेसी से संबंधित कानून को मंजूरी देनी बाकी है. सरोगेसी बोर्ड का गठन होना बाकी है, जिसके बाद भारत में सरोगेसी की जा सकती है. भारत सरकार द्वारा परोपकारी सरोगेसी का प्रस्ताव दिया गया है, लेकिन हम अभी भी अंतिम निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे हैं" ये कहना है डॉ प्राची बेनारा का.

"हमारे विशेषज्ञों के अनुसार, सरोगेसी के लिए एक निश्चित उम्र होनी चाहिए और उनका एक बच्चा होना चाहिए. यह शोषण को रोकता है क्योंकि बहुत सारे बिचौलिए और डोनर लाभ उठाते हैं. कई बार महिलाएं और परिवार इसे आर्थिक लाभ के लिए करना चाहते हैं. सरकार के नियम शोषण पर अंकुश लगाने में मदद कर रहे हैं और साथ ही व्यवस्था केंद्रीकृत होती जा रही है. यह समझना महत्वपूर्ण है कि न तो यह पेशा है, न ही किसी प्रकार का व्यवसाय."
डॉ प्राची बेनारा

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