लॉकडाउन का दूसरा फेज लागू करने के के बाद, गृह मंत्रालय ने नई गाइडलाइंस जारी कर बताया कि 20 अप्रैल के बाद किन-किन सेक्टर्स को छूट मिलेगी. हालांकि, इसे लेकर ई-कॉमर्स और उत्पादकों में कंफ्यूजन की स्थिति बनी हुई है. कंपनियों का कहना है कि सरकार की गाइडलाइंस में कई बातें साफ नहीं हैं.
सरकार की नई गाइडलाइंस ने देशभर में कड़े प्रतिबंधों के साथ कंपनियों को खोलने के लिए प्लान तैयार किया है. हालांकि, राज्य और स्थानीय प्रशासन द्वारा जिन इलाकों को कंटेनमेंट जोन घोषित किया गया है, वहां पर किसी भी तरह की एक्टिविटी को अनुमति नहीं दी जाएगी.
अमेजन और फिल्पकार्ट जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों को ऑपरेशन की अनुमति तो मिल गई है, लेकिन ये बात साफ नहीं है कि वो अभी की तरह जरूरी सामान की डिलीवरी जारी रखेंगे, या गैर-जरूरी सामान (टीवी, मोबाइल) की भी डिलीवरी कर सकते हैं.
EY इंडिया में कंज्यूमर लीडर पिनाकी रंजन मिश्रा ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, "एक्सपर्ट्स का कहना है कि गाइडलाइंस में गैर-जरूरी सामान को लेकर स्पष्टता नहीं है. अगर कंपनियां सोशल डिस्टेंसिंग और सुरक्षा प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करें, तो सही से काम पूरा होने की संभावना ज्यादा है. कुछ प्रोडक्ट जो विशेष रूप से जरूरी सामान की लिस्ट में नहीं हैं, लेकिन वो जरूरी सामान हो सकते हैं, जैसे स्टेशनरी, घर की सफाई और किचन का सामान, इन्हें भी अब बेचने की अनुमति होनी चाहिए."
लॉकडाउन के बाद से ही, ऑनलाइन ग्रॉसरी स्टोर की काफी मांग देखने को मिली है. बिग बास्केट, ग्रॉफर्स से लेकर अमेजन के पास हफ्तों के पेंडिंग ऑर्डर चल रहे हैं. पेटीएम मॉल के सीनियर वाइस-प्रेसीडेंट श्रीनिवास मोती ने BS से कहा, "हम इलेक्ट्रॉनिक्स, छोटे उपकरण, कपड़े, मोबाइल फोन, और दूसरे सामान सहित अपनी ज्यादातर कैटेगरी खोलने की उम्मीद कर रहे हैं."
निर्माण कंपनियों ने भी सरकार से मांगी सफाई
बड़ी निर्माण कंपनियों ने भी सरकार से नई गाइडलाइंस के कुछ नियमों और छूट को लेकर सफाई मांगी है. सरकार ने अपनी गाइडलाइंस में साफ किया है कि रेड या कंटेनमेंट जोन में कंपनियों को खोलने की इजाजत नहीं दी जाएगी. ऐसे में, अधिकतर कंपनियां इस बात को लेकर परेशान हैं कि अगर उनके वेंडर्स इन जोन में आते हैं, तो वो पूरी तरह से निर्माण कैसे चालू करें.
ऑटोमोबाइल कंपनी मारुति सुजुकी के चेयरमैन आरसी भार्गव ने BS से कहा, "हम ये अच्छे से चेक कर रहे हैं कि हमारे कितने डायरेक्ट और इनडायरेक्ट वेंडर्स रेड जोन में हो सकते हैं, जहां फैक्टरी नहीं खोली जा सकती है. अगर ऐसा है, तो क्या हमारे पास दूसरे सप्लायर हैं? आखिरकार, हम किसी भी एक हिस्से के बिना कार नहीं बना सकते."
सुजुकी जैसी ऑटोमोबाइल कंपनियां सिर्फ वेंडर्स और प्लांट खोलने की परेशानी का सामना नहीं कर रही हैं, बल्कि डीलरशिप की परेशानी भी इनके सामने है. निर्माण के बाद बेचने के लिए डिलर्स का काम करना भी जरूरी है.
सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) के एक अधिकारी का कहना है कि उनके अधिकतर सदस्य और सप्लायर्स इंडस्ट्रियल एस्टेट या टाउनशिप में नहीं हैं. ऐसे में, अगर कंपनी इंडस्ट्रियल एस्टेट में OEM (ओरिजनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर) है और वेंडर्स नहीं हैं, तो प्रोडक्शन कैसे शुरू किया जाएगा.
कई लोग गाइडलाइंस में बदलाव करने पर जोर दे रहे हैं, ताकि उत्पादन जल्द शुरू हो सके.
गृह मंत्रालय ने गाइडलाइंस में कहा है कि जिन उद्योगों को अनुमति दी गई है, वो अपने परिसर या आस-पास की बिल्डिंग में कर्मचारियों के ठहरने की व्यवस्था करें ताकि वो सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन कर सकें.
सरकार की ये गाइडलाइन भी निर्माण कंपनियों के सामने एक मुश्किल खड़ी करती दिख रही है. वॉक्सवैगन ग्रुप इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर गुरप्रता बोपाराई के मुताबिक, फैक्टरी या इसके आस-पास मजदूरों के ठहरने की व्यवस्था करना मुमकिन नहीं है, क्योंकि बडे़ प्लांट में करीब 5 से 6 हजार मजदूर काम करते हैं.
उन्होंने बिजनेस स्टैंडडर्ड से कहा, "हम जैसी बड़ी फैक्टरियों में, और ये फैक्ट कि इनमें से अधिकांश इलाकों, जैसे कि चाकन में बहुत ज्यादा आवासीय जगह नहीं है. फैक्टरी में मजदूरों को रखना संभव नहीं है. और ये नियम कि सभी मजदूरों को पुलिस से वेरिफाई कराना पड़ेगा, इसमें हफ्ते लग सकते हैं और फैक्टरी खोलने में देरी होगी. अगर कंपनी को उन्हें वेरिफाई करने की अनुमति दे दी जाए, तो ये आसान रहेगा."
कई कंपनियां इसपर ध्यान दे रही हैं कि कैसे 20 अप्रैल के बाद काम शुरू किया जा सकता है.
(बिजनेस स्टैंडर्ड के इनपुट्स के साथ)
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