बिहार विधानसभा चुनाव शुरू हो चुका है. इस बार भी बिहार की आधी आबादी बढ़-चढ़कर चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा ले रहीं हैं. बिहार में पिछले चार विधानसभा चुनावों में, महिला मतदाताओं में लगातार वृद्धि देखी गई है. 2015 में 53.32% पुरुषों की तुलना में 60.48% महिलाओं ने मतदान किया.
पोल पैनल के मुताबिक, राज्य में 7.29 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें 3.85 करोड़ पुरुष और 3.4 करोड़ महिला मतदाता और 1.6 लाख सर्विस वोटर हैं.
ऐसे में सवाल ये है कि इस बार बिहार की महिलाएं क्या सोच कर वोट डालने निकल रही हैं. महिलाओं का मेनिफेस्टो क्या है? क्विंट ने बिहार विधानसभा चुनाव कवरेज के दौरान राज्य के अलग-अलग हिस्सों से महिलाओं के मन की बात जानी.
ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमेन एसोशिएशन की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी क्विंट से बातचीत में कहती हैं
“जो पूरे बिहार का सवाल है ,वही सवाल महिलाओं का भी सवाल है. रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सबसे जरूरी है. लेकिन महिलाओं के साथ बढ़ती हिंसा बड़ा प्रश्न है. ये चारों सवाल महिलाओं को परेशान कर रहे हैं. लड़कियां शिक्षित हो रही हैं लेकिन रोजगार नहीं है, मानदेय वाले रोजगार हैं लेकिन सीमित संख्या में और मामूली राशि वाले हैं. सरकारी योजनाओं के तहत स्वास्थ्य बीमा या राशि देने की बात होती है, उसकी जगह हर पंचायत में एक स्वास्थ्य केंद्र खुल जाए तो राशि की जरूरत नहीं पड़े. इसके अलावा महिलाओं को घर के बाहर भी और भीतर भी चिंतामुक्त माहौल मिले. सत्ता का संरक्षण पाने वाले सबसे ज्यादा महिलाओं के खिलाफ हिंसा कर रहे हैं. पुलिस और प्रशासन में महिलाओं के लिए न्याय, संवेदनशीलता दूर-दूर तक नहीं है. महिलाओं के प्रति इस उपेक्षापूर्ण रवैये में सुधार की जरूरत है.”
बिहार में रोजगार, महिला सुरक्षा, हिंसा से मुक्ति जैसे मुद्दे हैं लेकिन महिलाओं के लिए स्थिति और मुश्किल हो जाती है क्योंकि इसे एक पिछड़े राज्य का तमगा मिला हुआ है.
1. महिला सुरक्षा
दरभंगा यूनिवर्सिटी में लॉ स्टूडेंट अंकिता कहती हैं-''लड़कियां अपनी मर्जी से जिंदगी नहीं जी सकतीं क्योंकि सबके बाहर निकलने पर पाबंदियां हैं. इसके पीछे वजह है सुरक्षा. हर लड़की घर से डेडलाइन लेकर निकलती है कि उसे 6 या 8 बजे तक घर वापस आ जाना है. कानून का सख्ती से पालन नहीं होता जिसकी वजह से लोग शिकायत नहीं कर पाते.''
स्टूडेंट अपूर्वा कहती हैं कि -
छेड़खानी को नार्मलाइज कर दिया गया है. घूरना, सीटी बजाना बहुत ही आम बात हो गई है. इस वजह से ज्यादातर लड़कियां बाहर नहीं निकलना चाहतीं.
वहीं सिंगर दीपाली सहाय बताती हैं कि कैसे रोजगार के लिए पुरुषों का पलायन महिलाओं की सुरक्षा की भावना को कमजोर करता है. एक भोजपुरी गीत का उदाहरण देती हैं-
“हंसि-हंसि पनवा खियऔले बेइमनवा कि अपना बसे रे परदेस...” ये गीत एक महिला का दर्द बयां करता है कि कैसे पुरुष महिला को ब्याह कर ले आता है, उस नई दुलहन को पान खिलाता है और फिर एक दिन कमाने परदेस चला जाता है” ये बयां करता है कि रोजगार के लिए पलायन महिला की जिंदगी को प्रभावित करता है, उनसे घर-परिवार से मिलने वाली सुरक्षा की भावना को प्रभावित करता है.''
2. हिंसा से मुक्ति
बिहार में मुजफ्फरपुर बालिका गृह रेप केस हुआ लेकिन इस चुनाव में उस मुद्दे पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई. शानू कहती हैं कि बिहार में महिलाओं के खिलाफ अपराध और हिंसा के मामलों में भी जाति का एंगल ढूंढ लिया जाता है, जबकि न्याय, हिंसा से मुक्ति प्राथमिकता होनी चाहिए.
3. महिलाओं को मिले रोजगार के समान अवसर
महिलाओं की बातों को गंभीरता से नहीं लिया जाता. उन्हें समान अवसर नहीं मिलते. अपना फूड प्रोसेसिंग यूनिट रन कर रहीं पटना की जनक किशोरी बताती हैं कि कैसे उन्हें शुरुआती दिनों में दिक्कतें हुईं. मशरूम उगाना शुरू किया तो लोग कहने लगे कि “पटना से पढ़कर आई है पागल है...इसे पता ही नहीं कि खेती खेत में होती है घर में नहीं.”
फुटवियर डिजाइनर रश्मि ने बताया कि लोन लेने के लिए बैंक गईं तो उनसे सवाल किया गया कि “हम आपको लोन क्यों दें, आपकी तो शादी हो जाएगी?”
महिलाएं चाहती हैं कि उनके काम को गंभीरता से लिया जाए, समान मौके मिलें.
कई अन्य महिलाओं ने रोजगार को लेकर अहम सुझाव भी गिनाएं.
शिक्षा, सुरक्षा, रोजगार के अलावा इन मुद्दों पर गौर करने की जरूरत.
4. खुले में शौच से मुक्ति
5. प्राइवेट महिला कर्मचारियों को भी मिले पीरियड लीव
6. ट्रांस कम्युनिटी को फ्री आवास, स्वास्थ्य
7. अवैध शराब पर रोक
बिहार में 2016 में शराबबंदी लागू हुई. लेकिन रिपोर्ट बताते हैं कि बिहार में अवैध तरीके से शराब उपलब्ध है. शराबबंदी के बाद अवैध शराब और नशीले पदार्थ जैसे चरस और भांग की बिक्री में बढ़त महिलाओं के लिए बड़ी समस्या है. इंडियास्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक पटना के एक नशामुक्ति केंद्र के 2 सेंटरों पर 2017-18 और 2018-19 के बीच 9,628 रजिस्ट्रेशन हुए - जिनमें 36% से कम- 3,444 लोग शराब के आदी थे वहीं 4,427 वीड, चरस और भांग के गिरफ्त में थे जो कि शराबबंदी से पहले के आंकड़े का 3 गुना आंकड़ा है. शराबबंदी से पहले के एक साल में ये आंकड़ा 14.5% था जो बढ़कर 46% हो गया.
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