कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में अपने-अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है. इस लिस्ट से यह नतीजा निकालना मुश्किल है कि महागठबंधन में कांग्रेस के शामिल होने की संभावना खत्म हो गयी है. पर ये निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि कांग्रेस अपने दम पर चुनाव लड़ने के इरादे के साथ दो कदम और आगे बढ़ गयी है.
कांग्रेस के उम्मीदवारों की लिस्ट देखकर ये साफ है कि वह झुकने को तैयार नहीं है, भले ही उसे बीएसपी के साथ भी दो-दो हाथ क्यों न करना पड़े. हालांकि अभी बीएसपी की कोई लिस्ट सामने नहीं आई है.
SP ने दिखाया ‘संयत’ व्यवहार
समाजवादी पार्टी ने जिन 6 लोकसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की है, उनमें से मैनपुरी, बदायूं और फिरोजाबाद एसपी की सिटिंग सीट हैं, जबकि बहराइच, रॉबर्ट्सगंज और इटावा में वह दूसरे नम्बर पर रही थी. इसलिए इन नामों में कोई पंगा लेने वाला भाव नजर नहीं आता.
लेकिन समाजवादी पार्टी बहराइच जैसी सीटों पर समझौता करने को भी तैयार नहीं दिखती. वहीं कांग्रेस की लिस्ट में अमेठी और रायबरेली की सिटिंग सीट के अलावा कुशीनगर और सहारनपुर शामिल हैं, जहां वह 2014 में दूसरे स्थान पर रही थी.
कांग्रेस ने चौंकाया
कांग्रेस के उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में 2009 के लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन का आधार दिखता है. उन्नाव, फैजाबाद, धौरहरा, अकबरपुर और फर्रुखाबाद ऐसी सीटों में शामिल हैं, जहां पार्टी ने 2009 में जीत हासिल की थी. मगर पार्टी ने जालौन जैसी सीट पर भी उम्मीदवार दे दिया है, जो सीट 2009 में भी कांग्रेस जीत नहीं सकी थी.
बहराइच भी इसी किस्म की सीट है. दोनों ही सीटों पर कांग्रेस दलबदलू नेताओं के दम पर चुनाव मैदान में उतर रही है. बदायूं की सीट तो ऐसी है, जहां समाजवादी पार्टी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरने का कोई तर्क कांग्रेस के पास नहीं दिखता.
बदायूं, बहराइच, उन्नाव और फैजाबाद में SP से सीधा पंगा
सबसे पहले बात बदायूं की. यहां से समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव ने फिर से उम्मीदवार बनाया है, जबकि कांग्रेस ने भी इस सीट से सलीम इकबाल शेरवानी को उम्मीदवार बनाकर ताल ठोकी है. बदायूं में धर्मेंद्र यादव ने 2014 में भी 48 फीसदी वोट हासिल किया था, जबकि बीजेपी को 32 फीसदी वोट मिले थे. 2009 में भी इस सीट से धर्मेंद्र यादव ही सांसद थे.
ऐसे में कांग्रेस का इस सीट पर उम्मीदवार देना महागठबंधन की भावना के बिल्कुल खिलाफ कहा जा सकता है. या ये भी हो सकता है कि कांग्रेस इस बहाने समाजवादी पार्टी से मोलभाव करने की कोशिश में हो.
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बहराइच की सीट पर भी तनातनी है. यहां से कांग्रेस के लिए ट्रंप कार्ड है. इस सीट से पूर्व सांसद सावित्रीबाई फुले, जो बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आई हैं. हालांकि कांग्रेस ने इस सीट से उम्मीदवार तय नहीं किए हैं, लेकिन समाजवादी पार्टी ने शब्बीर वाल्मीकि को प्रत्याशी बनाने की घोषणा कर दी है. पार्टी 2014 में यहां नंबर दो पर थी.
एसपी का दावा इसलिए भी मजबूत है, क्योंकि पार्टी ने 2004 में इस सीट पर बीएसपी को शिकस्त दी थी, जबकि 2009 में बीएसपी ने एसपी को शिकस्त दी थी. इस बार एसपी को बीएसपी का भी समर्थन है. बहराइच पर रार मचनी तय है.
कांग्रेस ने उन्नाव में अन्नू टंडन और फैजाबाद में निर्मल खत्री को उम्मीदवार बनाया है, जहां 2009 के लोकसभा चुनाव में दोनों सांसद चुने गये थे. मगर 2014 में उन्नाव में कांग्रेस चौथे स्थान पर रही थी, जबकि समाजवादी पार्टी दूसरे स्थान पर. फैजाबाद में भी समाजवादी पार्टी पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर थी. इसके अलावा उसे बीएसपी का भी साथ है, जिसने 2004 में यहां से चुनाव जीता था.
कुशीनगर और सहारनपुर में कांग्रेस का स्वाभाविक दावा
कुशीनगर और सहारनपुर में कांग्रेस 2014 के आम चुनाव में दूसरे नंबर पर रही थी. पार्टी उम्मीदवार आरपीएन सिंह को कुशीनगर में करीब 84 हजार वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था. बीएसपी को तीसरा और समाजवादी पार्टी को चौथा स्थान मिला था. वहीं सहारनपुर में 65 हजार वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद चुनाव हार गये थे. एसपी-बीएसपी गठबंधन में जहां कुशीनगर की सीट एसपी के पास है, वहीं सहारनपुर की सीट बीएसपी के पास. सहारनपुर में बीएसपी को 2014 में 19.7 फीसदी वोट मिले थे.
धौरहरा-अकबरपुर में बीएसपी से दो-दो हाथ के मूड में कांग्रेस
धौरहरा और अकबरपुर में बीएसपी नंबर दो पर थी, मगर कांग्रेस ने इन सीटों पर भी 2009 में जीत के आधार पर उम्मीदवार देने की घोषणा की है. 2014 में धौरहरा में कांग्रेस चौथे स्थान पर थी, जबकि बीएसपी और एसपी दूसरे व तीसरे स्थान पर. ऐसे में एसपी समर्थित बीएसपी प्रत्याशी के सामने कांग्रेस का दावा मजबूत नहीं होता. मगर कांग्रेस को अपने उम्मीदवार जितिन प्रसाद पर भरोसा है.
इसी तरह अकबरपुर में कांग्रेस ने राजाराम पाल को मैदान में उतारा है और पार्टी को उम्मीद है कि वह 2009 वाला प्रदर्शन दोहराएगी. मगर, 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से बीजेपी ने करीब 2 लाख 79 हजार वोटों से बीएसपी को हराया था. बीएसपी का गढ़ कही जाने वाली इस सीट से 2004 में मायावती सांसद चुनी गयी थीं.
अखिलेश के ‘त्याग’ का भी नहीं दिखा सम्मान
फर्रुखाबाद और जालौन की सीट बीएसपी के लिए अखिलेश के त्याग का उदाहरण वाली सीटें हैं. मगर कांग्रेस इस त्याग का सम्मान करती नहीं दिखी. फर्रुखाबाद में समाजवादी पार्टी 2014 के चुनाव में दूसरे नंबर पर थी और बीएसपी तीसरे नम्बर पर. यह सीट 1999 और 2004 में एसपी के पास थी. फिर भी एसपी ने तालमेल में यह सीट बीएसपी को दे दी. मगर, कांग्रेस ने 2009 में मिली जीत के आधार पर यहां सलमान खुर्शीद को एक बार फिर चुनाव मैदान में उतार दिया है.
वहीं जालौन की सीट 2009 में समाजवादी पार्टी ने जीती थी. मगर पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर बीएसपी रही थी. लिहाजा बीजेपी को चुनौती देने के लिए एसपी ने बीएसपी को ही आगे करना उचित समझा और यह सीट तालमेल में बीएसपी को सौंप दी. मगर कांग्रेस 2014 में चौथे नंबर पर होने के बावजूद इसलिए इस सीट पर जीत की उम्मीद कर रही है क्योंकि पिछले चुनाव में बीएसपी के उम्मीदवार रहे ब्रजलाल खाबरी अब उनकी पार्टी में आ चुके हैं और उम्मीदवार भी हैं.
एक बात साफ है कि कांग्रेस किसी भी तरह से रन जुटाने की कोशिश में है. भले ही गेंद बल्ले से टच हो न हो. वह रनआउट का जोखिम भी झेलने को तैयार दिखती है. ऐसा लगता है मानो गेंद आखिरी हो और रन लेने की मजबूरी हो. बस दौड़ जाना है, किसी तरह रन चुराना है. ‘करो या मरो’ की परिस्थिति यही होती है.
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