उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election Result 2022) नतीजों के बाद अब राजनीतिक पार्टियों में मंथन और जश्न चल रहा है. क्विंट हिंदी पर आप जिलावार विश्लेषण पढ़ रहे हैं कि किस पार्टी ने किस जिले में कैसा प्रदर्शन किया और उसके पीछे के कारण क्या रहे. इसी कड़ी में हम बात करेंगे पश्चिमी उत्तर प्रदेश (West UP) के अमरोहा (Amroha) जिले की. जहां 4 विधानसभा सीटें हैं. 2017 में बीजेपी (BJP) ने इस जिले की 3 सीटों पर कब्जा किया था जबकि एसपी (SP) को 1 सीट से संतोष करना पड़ा था. अमरोहा जिला राजनीतिक रूप से कई मायनों में अहम है, यहां से पूर्व क्रिकेटर चेतन चौहान बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ते रहे हैं. शहरी क्षेत्र में मुस्लिम आबादी का दबदबा है जो ग्रामीण इलाकों में कम हो जाता है.
यहां सैनी वोटर्स अच्छी खासी संख्या में हैं और दलितों की आबादी भी काफी है. बावजूद इसके बीएसपी ना 2017 में खाता खोल पाई थी और ना ही इस बार उसका खाता खुला जबकि इस चुनाव में चुनिंदा रैली करने वाली मायावती ने एक रैली अमरोहा में भी की थी. एक वक्त था जब अमरोहा में बीएसपी का दबदबा हुआ करता था. अभी भी अमरोहा से बीएसपी के दानिश अली सांसद हैं. सबसे महत्वपूर्ण यहां ओबीसी वोट बैंक होता है, जिसमें मुस्लिम व हिंदू ओबीसी शामिल होते हैं. इन्हें रिझाना जीत के लिए सबसे जरूरी होता है. बीजेपी इस वोट बैंक केा अपने पक्ष में पूरी तरह नहीं मोड़ पाई जिससे ही यहां उसका स्कोर 2-2 रह गया.
पार्टियों के प्रदर्शन और प्रत्याशियों की हार-जीत के कारणों पर भी आएंगे लेकिन पहले ये जान लीजिए कि अमरोहा की किस सीट पर किसे कितने वोट मिले.
अमरोहा विधानसभा सीट
अमरोहा से समाजवादी पार्टी के महबूब अली ने एक बार फिर जीत दर्ज की है, वो 2002 से लगातार विधायक हैं.
अमरोहा विधानसभा में किसे कितने वोट मिले?
महबूब अली (SP)- 1,28,735 वोट
राम सिंह सैनी (BJP)- 57,699 वोट
नावेद अयाज (BSP)- 34,585 वोट
अमरोहा विधानसभा में एसपी की बड़ी जीत का कारण?
अमरोहा में लंबे समय से महबूब अली का दबदबा रहा है और शुरू से ही वो सपाई हैं. इसकी मुख्य वजह है इस सीट पर जातीय और धार्मिक ताना-बाना. अमरोहा में कुल 3 लाख 12 हजार से ज्यादा मतदाता हैं और इनमें 2 लाख से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं. लेकिन ये समीकरण हमेशा से ऐसे नहीं थे पहले अमरोहा कांठ विधानसभा सीट का हिस्सा हुआ करता था. परिसीमन के बाद अमरोहा में ये तीसरा चुनाव था और महबूब अली ने फिर से जीत हासिल की. हालांकि कांठ सीट रहते भी महबूब अली यहां से जीते, लेकिन परिसीमन के बाद वजूद में आई अमरोहा(41) विधानसभा में मुस्लिम वोटरों की संख्या हावी हो गई.
जिसके बाद यहां चुनावी राजनीति ऐसे चलती रही कि ज्यादातर मौकों पर सिर्फ बीजेपी से हिंदू उम्मीदवार होता था और बाकी सब मुस्लिम उम्मीदवार फिर भी महबूब अली सीट निकालते रहे. हालांकि 2017 के चुनाव में उन्हें तुर्क बिरादरी की नाराजगी का सामना करना पड़ा क्योंकि अमरोहा के हिस्ट्रीशीटर शौकत पाशा की हत्या में शामिल होने का आरोप महबूब अली पर था, बावजूद इसके वो जीत गए.
अमरोहा में बीएसपी हमेशा दो नंबर की पार्टी रही है लेकिन इस बार दो नंबर पर बीजेपी उम्मीदवार ने जगह बना ली है. अमरोहा से महबूब अली की बड़ी जीत का कारण मुस्लिम मतदाताओं का बीएसपी को कम वोट करना रहा क्योंकि हर बार यहां मुस्लिम वोट एसपी और बीएसपी में लगभग आधा-आधा बंट जाता था लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. हालांकि कुछ गांव में बीजेपी को मुस्लिम वोट जरूर मिले लेकिन वो जीत दिलाने के लिए नाकाफी थे.
इस बार यहां मतदान कितना इकतरफा हुआ है इसका अंदाजा ऐसे लगाइए कि 2017 में महबूब अली को करीब 74 हजार कुल वोट मिले थे और इस बार लगभग इतने वोटों के अंतर से वो जीते हैं.
खास बात ये है कि 1993 में पहली बार जनता पार्टी के टिकट पर विधायक बनने वाले महबूब अली ने 2002 में राष्ट्रीय परिवर्तन दल के टिकट पर जेल में रहते हुए जीत दर्ज की थी और वो तब से हारे नहीं हैं.
धनौरा विधानसभा सीट के नतीजे
अमरोहा जिले की धनौरा विधानसभा से एक बार फिर बीजेपी के राजीव कुमार ने जीत दर्ज की है. उन्होंने एसपी के विवेक कुमार को हराया है.
राजीव कुमार (BJP)- 1,03,054 वोट
विवेक कुमार (SP)- 91,629 वोट
हरपाल सिंह (BSP)- 43,974 वोट
समर पाल सिंह (CONG)- 1,385
धनौरा विधानसभा में बीजेपी की लगातार दूसरी जीत का कारण?
धनौरा विधानसभा सीट भी 2008 के परिसीमन के बाद ही वजूद में आई थी, जो आरक्षित सीट है. 2012 में यहां पहली बार चुनाव हुए और तब ये सीट समाजवादी पार्टी ने जीती उसके बाद से लगातार दो बार लगातार बीजेपी के राजीव कुमार ने यहां से जीत दर्ज की है.
वैसे अमरोहा को मुस्लिम बहुल जिला माना जाता है लेकिन जब आप सीटवाइज वोटर देखते हैं तो समीकरण एकदम अलग हो जाते हैं. ये आरक्षित सीट है लेकिन जाटव मतदाताओं की संख्या यहां ज्यादा नहीं है, बीएसपी के लगातार आरक्षित सीट से हारने का एक ये कारण भी है और बीजेपी की जीत के कई कारण हैं. लेकिन सबसे बड़ा कारण हम आपको समझाते हैं, दरअसल धनौरा विधानसभा सीट परिसीमन से पहले गंगेश्वरी का हिस्सा हुआ करती थी.
राजीव कुमार के पिता तोताराम 1996 से 2002 तक गंगेश्वरी से विधायक रहे. तो उनका प्रभाव पहले से इस सीट पर था फिर राजीव कुमार ने भी निचले स्तर पर जाकर लोगों से संबंध बनाए, 2015 में जिला पंचायत लड़े और जीत गए फिर 2017 में विधायक बन गए और अब 2022 के चुनाव में भी धनौरा से राजीव कुमार को जीत मिली.
नौगावां सादात विधानसभा सीट
समाजवादी पार्टी के समरपाल ने यहां बीजेपी के देवेंद्र नागपाल को हराया है. 2017 में यहां बीजेपी के चेतन चौहान जीते थे.
समर पाल (SP)- 1,08,497 वोट
देवेंद्र नागपाल (BJP)- 1,01,957 वोट
शादाब खान (BSP)- 28,688 वोट
रेखा रानी (CONG)- 1613 वोट
नौगावां सादात बीजेपी से एसपी ने कैसे छीनी ?
नौगावां सादात सीट भी 2008 में परिसीमन के बाद वजूद में आई थी. तब एसपी के अशफाक अली खान ने यहां से जीत दर्ज की थी. उसके बाद 2017 में बीजेपी ने पूर्व क्रिकेटर चेतन चौहान को नौगावां से मैदान में उतारा और उन्होंने ये सीट जीत ली. चेतन चौहान की जीत में तीन बड़े फैक्टर थे, एक तो वो पूर्व क्रिकेटर थे, दूसरा नौगावां सादात में काफी संख्या शिया मुस्लिमों की भी है जिनका समर्थन चेतन चौहान को मिला था. इसके अलावा बीजेपी लहर भी थी.
लेकिन चेतन चौहान की बीच में मौत होने की वजह से यहां उपचुनाव हुए जिसमें चेतन चौहान की पत्नी ने जीत हासिल की. पर इस बार बीजेपी ने प्रत्याशी बदल दिया और पूर्व सांसद देवेंद्र नागपाल को मैदान में उतार दिया. जिससे चेतन चौहान के समर्थक भी नाराज हुए और शिया मुस्लिमों का साथ भी नहीं मिला. इस तरह एसपी ने फिर से नौगावां सादात अपनी झोली में डाल ली.
हसनपुर विधानसभा चुनाव 2022
हसनपुर विधानसभा सीट पर बीजेपी के महेंद्र ने जीत दर्ज की है. उन्होंने एसपी के मुखिया गुर्जर को हराया है.
महेंद्र खड़कवंशी (BJP)- 1,20,135 वोट
मुखिया गुर्जर (SP)- 97,753
फिरेराम (BSP)- 36,150
असीब साबरी (CONG)- 1,734
हसनपुर में बीजेपी ने कैसे दोहराई जीत ?
एकलव्य की जन्म और कर्मस्थली हसनपुर पहले गंगेश्वरी विधानसभा का हिस्सा था. 2008 के परिसीमन के बाद ये विधानसभा सीट बनी. हसनपुर में 2012 में एसपी ने जीत दर्ज की थी जबकि 2017 में बीजेपी के महेंद्र खड़कवंशी ने कमाल अख्तर को करीब 27 हजार वोट से हरा दिया.
ये सीट खड़कवंशी बहुल सीट है, और यहां सामान्य जाति के मतदाता काफी बड़ी संख्या में हैं. हसनपुर में त्यागी मतदाताओं का भी असर है इसके अलावा मुस्लिम मतदाता भी असर डालने लायक संख्या में हैं. लेकिन एसपी को अपना उम्मीदवार बदलने का दांव यहां उल्टा पड़ गया. अगर कमाल अख्तर को फिर से इस सीट से टिकट मिलता तो शायद समाजवादी पार्टी तो फायदा हो सकता था. क्योंकि वो लंबे समय से क्षेत्र में रहे हैं और उनकी अच्छी पकड़ भी है.
बीएसपी का गढ़ हुआ करता था अमरोहा?
अमरोहा एक जमाने में बीएसपी का गढ़ हुआ करता था, मायावती के करीबी रहे वीर सिंह इस इलाके में लगातार आते थे. मायावती के समय में ही अमरोहा जिला बना, लेकिन उसके बाद हालात बदलते चले गए. वीर सिंह की मायावती से दूरी बनने लगी और ये क्षेत्र भी बीएसपी के हाथ से जाता रहा. अब वीर सिंह एसपी के साथ हो गए हैं, इसका भी असर है. दूसरा मुस्लिम मतदाता बीएसपी से एकदम दूर हो गए तो बीएसपी के लिए समय मुश्किल होता चला गया.
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