दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) और एलजी के बीच फिनलैंड में टीचर्स की ट्रेनिंग को लेकर विवाद हो रहा है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी ट्वीट करते हुए कहा- हम दिल्ली सरकार के स्कूली शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए विदेश भेजते रहे हैं, और इसने दिल्ली की शिक्षा क्रांति में बहुत योगदान दिया है, उन्हें प्रशिक्षण के लिए विदेश जाने से रोकना सही नहीं है. आखिरी फिनलैंड के एजुकेशन सिस्टम में ऐसा है क्या है जिसके लिए केजरीवाल इतने परेशान हैं. हम आपको बताते हैं कैसा है फिनलैंड मे एजुकेशन मॉडल?
फिनलैंड का एजुकेशन सिस्टम क्या है?
रटने से दूरी कॉन्सेप्ट पर फोकस
आमतौर पर हमारे देश में बच्चों को रटने पर जोर दिया जाता है, बच्चे रटकर एक्जाम में लिख देते हैं और उनका कॉन्सेप्ट बिल्कुल क्लियर नहीं होता, लेकिन फिनलैंड इस मामले में बिल्कुल जुदा है, वहां स्टूडेंट को कॉन्सेप्ट समझाने पर ज्यादा जोर दिया जाता है. 2012 के बाद फिनलैंड ने अपने देश के एजुकेशन सिस्टम में कई बदलाव किए, जिससे ये देश एजुकेशन के मामले में कई देशों से आगे आ पहुंचा.
होमवर्क का बोझ नहीं
फिनलैंड के बच्चों के ऊपर होमवर्क का बोझ भी नहीं है. जहां भारत में स्कूल में पढाई के बाद बच्चों को ढेर सारा होमवर्क दिया जाता है और अक्सर बच्चों को उसे पूरा करने के लिए महंगे ट्यूशन भी लेने पड़ते हैं, लेकिन फिनलैंड एक ऐसा देश हैं, जहां ट्यूशन का कल्चर भी नहीं हैं. और ना ही बच्चों को स्कूल में भारी-भरकम स्कूल बैग ले जाने की जरूरत पड़ती है.
2016 में फिनलैंड ने अपने नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क में बदलाव किए, जिसमें मल्टीडिसिप्लिनरी एजुकेशन और तथ्यों पर बेस्ड शिक्षा पर जोर दिया जाने लगा. इसके अंतगर्त एक सब्जेक्ट की पढाई की जगह किसी टॉपिक को अलग-अलग सब्जेक्ट के साथ समझना. इससे बच्चों के समझने की क्षमता बढ़ने लगी.
9 साल में एक एग्जाम
बच्चों पर परीक्षा का टेंशन नहीं है
फिनलैंड में 16 साल की उम्र तक बच्चे को कोई एग्जाम नहीं देना पड़ता है.अपर सेंकेंड्री स्कूल के आखिर में नेशनल मैट्रिक्यूलेसन एग्जाम होता है. जहां भारत में साढ़े तीन साल का होते ही बच्चों को स्कूल भेजने का दवाब पैरेंट्स पर पड़ने लगता है, वहीं फिनलैंड में बच्चों को स्कूल भेजने की उम्र 7 साल है. बच्चों को स्कूल में केवल 9 साल तक ही पढाई करनी होती, तब तक उनके एग्जाम नहीं होते.
मैट्रिक का पाठ्यक्रम तीन साल का होता है. हालांकि क्लास 9 के बाद बच्चों को विकल्प मिलता है कि वो क्या करना चाहते हैं. वो कॉलेज करेंगे या प्रोफेशनल कोर्स में जाएंगे. अगर बच्चा कॉलेज की उच्च शिक्षा के लिए जाना चाहता है, तो फिर उसका दाखिला अपर सेकेंड्री स्कूल में होता है, जहां उसे तीन साल तक मैट्रिक की पढाई करनी होती है. फिर वो यूनिवर्सिटी में जाते हैं.
अगर कोई बच्चे वोकेशनल स्कूल में जाना चाहता है, तो उसे इंट्रेस्ट के मुताबिक 3 साल का कोर्स करना होता है.
बच्चों को दिए जाते हैं कई ब्रेक
फिनलैंड के स्कूलों में बच्चों के लिए माहौल काफी तनावमुक्त रहता है, वहां लगातार क्लासेज करनी वजाय बच्चों को बीच-बीच में ब्रेक दिया जाता है. उन्हें खाने को दिया जाता है और दूसरी एक्टिविटी करवाई जाती है, जिससे बच्चे बोर ना हो.
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