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करतारपुर कॉरिडोर भारत-पाकिस्‍तान के लिए इतना अहम क्‍यों? 

करतारपुर कॉरिडोर बनाने की घोषणा भारत और पाकिस्तान दोनों ने की है.

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करतारपुर कॉरिडोर बनाने की घोषणा भारत और पाकिस्तान दोनों ने की है. ये कॉरिडोर पाकिस्तान के करतारपुर और भारत के गुरदासपुर के मान गांव को जोड़ेगा. सिखों के पहले गुरु गुरुनानक देव की कर्मस्थली है करतारपुर. यहीं नानक देव ने अंतिम सांसें ली थीं.

इस कॉरिडोर का मकसद सिख श्रद्धालुओं के लिए गुरुनानक देव की पवित्र धरती तक पहुंच और आवाजाही आसान बनाना है. भारत में इसका उद्घाटन 26 नवम्बर को उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने किया. भारत की ओर से इस कॉरिडोर को बनाने की घोषणा 22 नवम्बर को की गई.

पाकिस्तान में करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन 28 नवम्बर को हुआ. प्रधानमंत्री इमरान खान ने इसकी आधारशिला रखी. पाकिस्तान के लिए करतारपुर कॉरिडोर पर्यटन की असीम सम्भावनाएं खोलेगा, जबकि भारत के लिए इसका मकसद है अपने नागरिकों के लिए तीर्थस्थल तक पहुंच बनाना. भारत और पाकिस्तान, दोनों ही सरकारों ने करतारपुर कॉरिडोर बनाने की पहल की है.

करतारपुर गुरुद्वारे के दर्शन के लिए सिख श्रद्धालु अब भारत में डेरा बाबा नानक से इस कॉरिडोर के जरिए सीधे करतारपुर गुरुद्वारे तक जा सकेंगे. इस दौरान श्रद्धालु भारत और पाकिस्तान की ओर से अलग-अलग बनाए गये कॉरिडोर से होकर गुजरेंगे.

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अद्भुत स्थान है करतारपुर गुरुद्वारा

करतारपुर में जिस जगह नानकदेव की मौत हुई थी, माना जाता है कि उसी स्थान पर यह गुरुद्वारा है. सिख और मुसलमान, दोनों धर्मों में इस स्थान की मान्यता है. यह गुरुद्वारा नारोवाल जिले के शकरगढ़ तहसील के कोटी पिंड में रावी नदी के पश्चिम में स्थित है.

करतारपुर के पास हरे-भरे खेत के बीच सफेद रंग की शानदार इमारत दूर से ही नजर आती है. इस गुरुद्वारे के अंदर एक कुआं है. मान्यता के अनुसार, यह गुरुनानक देव जी के समय से है. यहां सेवा करने वालों में सिख और मुसलमान दोनों शामिल हैं.

1920-29 के बीच इस गुरुद्वारे का पुनर्निर्माण महाराज पटियाला ने कराया था. तब इस पर 1 लाख 35 हजार 600 रुपये का खर्च आया था. इस पुनर्निर्माण की जरूरत रावी नदी में आयी बाढ़ के बाद हुए नुकसान के कारण महसूस की गयी थी. 1995 में भी पाकिस्तान सरकार ने इसके कुछ हिस्सों का निर्माण कराया.

दूरबीन से दिखता है गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर

गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर पाकिस्तान में भारतीय सीमा से महज 3 किलोमीटर दूर है. भारत सरकार ने भारतीय सीमा के पास एक बड़ा टेलिस्कोप लगाया है, जिसके जरिए तीर्थयात्री करतारपुर गुरुद्वारे के दर्शन किया करते हैं.

पाकिस्तान में सिखों के और भी धार्मिक स्थल हैं. भारत की सीमा से सटे ऐसे स्थलों में डेरा साहिब लाहौर, पंजा साहिब और ननकाना साहिब शामिल हैं.

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भारत में करतारपुर कॉरिडोर से जुड़ी अहम बातें

  • डेरा बाबा नानक से लेकर अंतरराष्ट्रीय सीमा तक गुरुद्वारा दरबार सिंह करतारपुर साहिब के लिए बन रहे कॉरिडोर का सारा खर्च केन्द्र सरकार उठाएगी.
  • गुरु नानकदेव जी के 550वें प्रकाश पर्व पर खास डाक टिकट और सिक्के जारी किए जाएंगे.
  • भारतीय रेलवे गुरु नानकदेव से जुड़ी स्थली तक ट्रेन चलाएगी.
  • दुनियाभर के भारतीय दूतावासों में प्रकाश पर्व पर विशेष समारोह कराए जाएंगे.
  • सुल्तानपुर लोधी को हेरि‍टेज सिटी बनाया जाएगा. इसका नया नाम होगा ‘पिंड बाबे नानक दा’
  • गुरु नानकदेव यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर इंटरफेथ स्टडीज का निर्माण किया जाएगा. ब्रिटेन और कनाडा की दो यूनिवर्सिटी में इसी नाम से सेंटर खोले जाएंगे.
  • नेशनल बुक ट्रस्ट विभिन्न भारतीय भाषाओं में गुरु नानकदेव जी की शिक्षा के बारे में जानकारी प्रकाशित करेगा.
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पाकिस्तान में करतारपुर कॉरिडोर से जुड़ी अहम बातें

  • करतारपुर सीमा श्रद्धालुओं के लिए खोली जाएंगी.
  • गुरद्वारे के आने के लिए अब वीजा की जरूरत नहीं होगी.
  • वहां तक आने के लिए रास्ता बनाया जाएगा.
  • दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु टिकट खरीदकर करतारपुरा पहुंच सकते हैं.
  • श्रद्धालु गुरुद्वारे पहुंचकर मत्था टेक सकते हैं.
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दोनों सरकारों को एकसाथ आया खयाल?

भारत सरकार ने जब 22 नवंबर को करतारपुर कॉरिडोर बनाने की घोषणा की, तो पाकिस्तान ने कहा कि वह पहले से ही इसकी घोषणा कर चुका है. पाकिस्तान की ओर से एक ट्वीट भी जारी किया गया, जिसमें विदेश मंत्री मोहम्मद कुरैशी ने 22 नवम्बर की तारीख है. इसमें उन्होंने प्रधानमंत्री इमरान खान के हाथों इसके उद्घाटन की तारीख 28 नवंबर का ऐलान किया.

भारत की ओर से वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कैबिनेट में लिए गये फैसले की जानकारी एक बयान जारी कर दी थी. इसमें बताया गया कि गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अगुआई में बनी कमेटी के सुझाव पर ये फैसला लिया गया.

यह संयोग आश्चर्यजनक है कि 22 नवंबर को ही भारत और पाकिस्तान के हुक्मरानों को करतारपुर कॉरिडोर के निर्माण की घोषणा का खयाल आया. दोनों देश इसका श्रेय ले रहे हैं.

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कॉरिडोर का सिद्धू कनेक्शन

करतारपुर कॉरिडोर का नवजोत सिद्धू कनेक्शन भी जानना जरूरी है. इसके बिना पूरी बात अधूरी रह जाती है. अगस्त के महीने में नवजोत सिंह सिद्धू अपने क्रिकेटर साथी इमरान खान की प्रधानमंत्री के तौर पर ताजपोशी से जुडे़ समारोह में शामिल होने के लिए पाकिस्तान गये थे. तब यह न्योता सिद्धू ने व्यक्तिगत स्तर पर पूरा किया था, लेकिन उन्हें प्रचंड विरोध का सामना करना पड़ा था. न्योता कपिलदेव और सुनील गावस्कर को भी था, लेकिन वे सरकार की मंजूरी का इंतजार करते रहे.

शपथ-ग्रहण समारोह में ही नवजोत सिंह सिद्धू की परेशानी तब बढ़ गयी थी, जब उनके बगल में पाक अधिकृत कश्मीर के प्रधानमंत्री को बिठा दिया गया. इतना ही नहीं, नवजोत सिंह सिद्धू से गले मिलने आ पहुंचे थे पाकिस्तानी सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा.

गले मिलती यह तस्वीर भी इस रूप में प्रचारित-प्रसारित हुई कि सिद्धू भारत के दुश्मन और भारतीयों की जान लेने वाली सेना के प्रमुख से गले मिल रहे हैं. मगर उसी वक्त यह बड़ा भरोसा सिद्धू को सेना प्रमुख ने दिया था कि वे करतारपुरा कॉरिडोर बनाने की पहल करने जा रहे हैं.

सिद्धू ने जब यह बात सोशल मीडिया पर ट्वीट की, तो लोगों को मानो यकीन नहीं हो रहा था. मगर सिखों का दिल इस खबर से गदगद हो गया और वे उस घड़ी की बाट जोहने लगे जब यह हसरत पूरी हो.

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वाजपेयी सरकार ने उठाया था करतारपुर का मसला

करतारपुर गुरद्वारे तक भारतीय सिख जाएं और अरदास कर सकें, इसके लिए भारत सरकार ने सबसे पहले 1998 में आवाज उठायी थी. तब अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री थे. भारत और पाकिस्तान के बीच यह मसला वाजपेयी सरकार ने ही उठाया था. मगर उसी साल परमाणु परीक्षणों के बाद नयी परिस्थितियां पैदा हो गयी थीं.

अब 20 साल बाद यह मसला एक बार फिर उठा, मगर सियासत अभी भी खत्म नहीं हुई है. न्योते पर भी सियासत देखने को मिली. भारत में हुए कॉरिडोर के शिलान्यास समारोह में पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व नहीं दिखा.

पाकिस्तान ने कॉरिडोर के उद्घाटन समारोह में भारत को न्योता भेजा. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने स्वास्थ्य संबंधी कारणों से खुद न जाकर प्रतिनिधियों को भेजने की घोषणा की. केन्द्रीय मंत्री हरसिमरत कौर और हरदीप सिंह पुरी को भेजा गया.

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह और पंजाब के कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू को भी न्योता भेजा गया. कैप्टन अमरिन्दर ने न्योता ठुकरा दिया, जबकि नवजोत सिंह सिद्धू ने आगे बढ़कर इस न्योते को कबूल किया.

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