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'डायबिटीज ने एक बार फिर मेरे परिवार में दस्तक दी, इस बार पिछली बार से 15 साल पहले'

Diabetes In Young People: 37 की उम्र में डायबिटीज, क्या डायबिटीज अब युवाओं की बीमारी बन गई है?

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Type 2 Diabetes In Family: (अपने शुगर स्मार्ट कैंपेन द्वारा, फिट डायबिटीज से जूझ रहे व्यक्तियों और समुदायों की कहानियां बता रहा है. क्या आपके पास डायबिटीज विशेषज्ञ के लिए कोई प्रश्न है? हमें अपने सवाल fit@thequint.com पर भेजें, और डॉक्टर से उत्तर प्राप्त करें.)

15 दिन पहले शांतनु ने किसी दूसरी वजहों से अपना ब्लड टेस्ट कराया. ब्लड सैंपल लेने आए व्यक्ति ने ब्लड टेस्ट का एक पैकेज लेने की सलाह दी, जो हमने मान ली. अगली सुबह रिपोर्ट में कई हेल्थ प्रॉब्लम सामने उभर कर आए, उनमें से एक टाइप 2 डायबिटीज भी था. ये थी डायबिटीज से मेरी तीसरी मुलाकात.

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डायबिटीज से मेरी पहली मुलाकात

डायबिटीज के बारे में मैं बचपन से सुनते-समझते आ रही हूं. जब से मुझे याद है मैंने अपने छोटे दादा को इन्सुलिन की मदद से अपने डायबिटीज को कंट्रोल करते देखा था. बच्चों के साथ खेलने और किसी को भी बैठा कर गणित के सवाल हल करने देना उन्हें बहुत पसंद था. 

एक और बात थी जिसके लिए वो आज भी बहुत याद आते हैं, वो है मुकेश, मोहम्मद. रफी और लता मंगेशकर के गाने जो हमेशा उनके रूम में रखे एक पुराने टेप रिकॉर्डर पर चलते रहते थे. गाने सुनना जितना उन्हें पसंद था, उतना ही गाना गाना भी. उनके इस शौक ने संगीत की समझ अपने बाद की पीढ़ी में भी बांट दी.

जब मैं आखिरी बार उनसे मिली थी वो तब भी गाने सुनते हुए एक बच्चे को गणित का सवाल हल करने दे रहे थे.

समय के साथ कठिनाइयां बढ़ती गईं और जब मैं अपना स्कूल खत्म कर कॉलेज के लिए फॉर्म भरने की तैयारियों में लगी थी, तभी छोटे दादा दुनिया को अलविदा कह गए. उन्हें टाइप 1 डायबिटीज था.

टाइप 1 डायबिटीज, जहां जेनेटिक कारण की वजह से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को प्रभावित करती है वहीं टाइप 2 डायबिटीज खराब लाइफस्टाइल और असंतुलित डाइट की देन है.

उस समय डायबिटीज को ले कर इतनी जागरूकता नहीं थी और न तो छोटे दादा में नियम पालन करने का वो संयम. खाने के शौकीन थे खास कर मीठे के. जानते हुए भी कि डायबिटीज में खाने का परहेज कितना जरुरी है, वो नहीं कर सके.

डायबिटीज से मेरी दूसरी मुलाकात

मेरी शादी से पहले मुझे पता चला कि मां (सास) को डायबिटीज है, मन घबराया. जब पहली बार मैं उनसे मिली तो लगा क्या 50 साल की उम्र टाइप 2 डायबिटीज के लिए जल्दी नहीं है? 

शादी से पहले और शादी के कुछ समय बाद तक मैं अक्सर मां के डायबीटिक होने को लेकर परेशान रहती.

मुझे उन्हें खोने का डर परेशान किए रहता था शायद इसलिए भी उनके खाने -पीने पर हमेशा मेरी एक नजर रहती थी.

उन्हें अपनी बीमारी का एहसास था और वो खुद अपना ध्यान बखूबी रख लेती थीं मगर कभी-कभी उन्हें भी रोकने-टोकने की जरूरत पड़ ही जाती थी.

अच्छी बात ये है कि मां डायबिटीज और अपनी लाइफ को ले कर बेहद पॉजिटिव हैं. एक्सरसाइज को ले कर वो सजग थीं और आज भी हैं. डायबिटीज के साथ जीते हुए उन्हें 15 साल होने को हैं. वो स्वस्थ हैं और अपनी जिंदगी मजे से जी रही हैं.

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डायबिटीज से मेरी तीसरी मुलाकात

जैसा आर्टिकल के शुरू में मैंने बताया, डायबिटीज से मेरी तीसरी मुलाकात 15 दिनों पहले हुई, जब मेरे पति के ब्लड टेस्ट रिपोर्ट में इसका जिक्र आया और इस बार मैं इसके लिए तैयार नहीं थी. 

37 की उम्र में डायबिटीज? क्या डायबिटीज अब युवाओं की बीमारी बन गई है? कहां गलती हुई? क्या कुछ करके उसे बदला जा सकता है (ये जानते हुए भी कि डायबिटीज जीवन भर की बीमारी है)? इसके साथ और क्या बीमारी सामने आएगी? डायबिटीज के साथ जिंदगी कैसे होगी? सबसे डराने वाला सवाल था, डायबिटीज के साथ जिंदगी कब तक चलेगी?

टाइप 2 डायबिटीज का एक कारण स्ट्रेस भी है, जिसका लाइफ में न होना आज के जमाने में गुरुग्राम में बजट के अंदर मनपसंद प्रॉपर्टी मिल जाने जितना मुश्किल है.

इंटरनेशनल कंपनी में प्रोडक्ट हेड की जिम्मेदारी संभालते-संभालते उसे खुद की सेहत का ध्यान रखने का समय नहीं मिल पाया. ऐसा नहीं कि उसकी डाइट खराब या बहुत अधिक थी बल्कि वो अधिकतर हेल्दी फूड ही खाता था, बस सही समय पर नहीं खा पाता था.

अल्कोहल महीने में शायद 1 बार और सिगरेट पीना कॉलेज के साथ ही पीछे छूट गया था.

स्ट्रेस और भूखे रहना शांतनु और मां दोनों के डायबिटिक होने की कॉमन कड़ी है.

ये सच है कि शांतनु के पास एक्सरसाइज के लिए समय और मोटिवेशन की कमी थी जिसका असर उसकी सेहत पर पड़ा. वजन उम्र और लंबाई के मापदंड को छोड़ बहुत आगे निकल गया था. नतीजतन डायबिटीज के साथ-साथ पैनक्रियाज और हार्ट के पैरामीटर अपनी सही जगह पर नहीं हैं.

डायबिटीज भारत में एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती के रूप में उभरा है, जिससे प्रभावित व्यक्तियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. यह एक ऐसा रोग है, जो पूरे शरीर को बुरी तरह से प्रभावित करता है फिर वो चाहे बड़ों में हो या बच्चों में.
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रिपोर्ट आने के 2 दिन बाद तक मैं जिंदगी में पीछे जा कर शांतनु के डायबीटिक होने के कारणों को बदल देना चाहती थी. हर समय डायबिटीज से जुड़े नेशनल/इंटरनेशनल रिपोर्ट्स-डेटा चेक कर रही थी. डायबिटीज पर डॉक्टरों के साथ की गई अपनी वीडियो और आर्टिकल्स को बार-बार पढ़-समझ रही थी. 

खोज रही थी कि कहीं लिखा मिल जाए, डायबिटीज से छुटकारा पाया जा सकता है पर, ऐसा नहीं हुआ.

लैंसेट की एक नई स्टडी में ये पाया गया कि 11.4% भारतीय आबादी को डायबिटीज है जबकि प्रीडायबिटीज के शिकार भारत में 15.3% हैं.

हां, ये जरूर है कि डायबिटीज को समय के साथ मैनेज किया जा सकता है. फिर धीरे-धीरे मैंने अपने डर को समझा लिया और खुद को भरोसा दिलाया कि हम डायबिटीज को मैनेज कर लेंगे.

वहीं शांतनु ने इस बात से आसानी से समझौता कर लिया और ये सोचने की जगह की क्या किया जा सकता था, उसने अब क्या किया जाए इस पर फोकस करना शुरू कर दिया.

हमने अपने छोटे से बेटे को डायबिटीज की दस्तक के बारे में बताया. उसका सबसे पहला सवाल था,

“बाबा, क्या तुम मेरे बर्थडे पर केक नहीं खाओगे?” 
कार्तिक

शांतनु अब डॉक्टर और डाइटीशियन के बताए लाइफस्टाइल चेंजेस को फॉलो कर रहा है.

डाइट के साथ-साथ एक्सरसाइज ने एक नई उम्मीद दिखाई है, शायद बेटे के बर्थडे तक शांतनु केक का एक छोटा टुकड़ा बिना चिंता के खा सके.

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