वीडियो एडिटर: वरुण शर्मा
कोरोना वायरस के खिलाफ महीनों से दुनिया की जंग जारी है. इस लड़ाई में कौन सा देश कहां खड़ा है? भारत की क्या स्थिति है?
इस बारे में क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया ने अमेरिका के अल्ब्राइट स्टोनब्रिज ग्रुप के चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ. मेहुल मेहता से बात की. डॉ. मेहुल मेहता हार्वड समेत कई नामी यूनिवर्सिटी से भी जुड़े रहे हैं.
डॉ. मेहुल कहते हैं कि दुनिया इस समय वैसे वायरस से लड़ रही है, जो मानव शरीर के लिए नया है. ऐसे हालात में जिन देशों ने ज्यादा टेस्टिंग की और बीमारों को पहचान कर आइसोलेट किया, वो आगे निकले.
भारत में भी लॉकडाउन का मकसद कम्युनिटी स्प्रेड को रोकना है. लेकिन कम्युनिटी स्प्रेड हर जगह चालू है. वायरस कहीं बाहर से नहीं आ रहा. अब ये कम्युनिटी के अंदर है और वहां एक-दूसरे में फैल रहा है. ऐसे में कारगर तरीका यही है- लोगों को अलग करना ताकि वायरस को हमले के लिए होस्ट न मिले.
लॉकडाउन करने वाले देशों को भी टेस्टिंग पर जोर देना होगा. क्योंकि टेस्टिंग नहीं होने पर हॉटस्पॉट बढ़ेंगे. साथ ही ये भी ध्यान रखना होगा कि 1 बार टेस्टिंग पर्याप्त नहीं है. ज्यादा टेस्टिंग और कई बार टेस्टिंग फायदेमंद है. एक बार टेस्ट निगेटिव आना सुरक्षा की गारंटी नहीं है.
डॉक्टर मेहुल का कहना है कि भारत के पास मजबूत पब्लिक हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है, लेकिन एक बड़ा देश होने के नाते यहां कोरोना मामलों की संख्या कम है. इसके अलावा BCG जैसे वैक्सीन की वजह से भारत में कम नुकसान को लेकर भी चर्चा हुई. सिर्फ सरकार पर हेल्थकेयर की जिम्मेदारी नहीं छोड़नी चाहिए. सरकार को सोसायटी और निजी सेक्टर का साथ मिलना चाहिए. वेस्टर्न सॉल्यूशन से सबक लेकर उसे भारतीय तरीके से लागू करने की जरूरत है.
भारत ही नहीं दुनियाभर में लाइफसाइंस रिसर्च में भारी इन्वेस्टमेंट की जरूरत है. कोरोना से लड़ाई का श्रेय सिर्फ एक देश को नहीं दिया जा सकता.
साथ ही उन्होंने इस बात पर भी चर्चा की कि कोरोना वायरस से बदली स्थिति को देखते हुए ये साफ हुआ है कि हेल्थकेयर डिजिटल टेक्नोलॉजी पर निर्भर करने वाला है. जहां तक बात रही कोरोना से निपटने की तो कई पुराने ड्रग्स मेंकोरोना का इलाज ढूंढा जा रहा है. कई देश वैक्सीन बनाने में जुटे हुए हैं. कोरोना के एक नहीं, कई वैक्सीन हो सकते हैं.
देखिए ये पूरा इंटरव्यू.
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