कोविड-19 के चीन, अमेरिका में बढ़ते मामलों के बीच AIIMS के विशेषज्ञों की टीम ने एक स्टडी में कोविड संक्रमण के बाद पुरुषों के सीमेन क्वालिटी (semen quality) में गिरावट की बात कही है. कोविड पॉजिटिव पुरुषों के सीमेन/स्पर्म पर ये स्टडी क्यों की गयी? क्या कहती है ये स्टडी? क्या कहते हैं इस स्टडी के प्रमुख डॉक्टर? इस स्टडी में अब आगे क्या करने वाले हैं एक्सपर्ट्स? इन सब सवालों के जवाब हम इस स्टडी के विशेषज्ञों से यहां जानते हैं.
कोविड संक्रमित पुरुषों के सीमेन/स्पर्म की स्टडी क्यों की गयी?
"जब कोविड का पहला वेव शुरू हुआ था तब मैं पटना एम्स (AIIMS) में था. हमें एक स्पेशल फंड मिला था, कोविड पर रिसर्च करने के लिए. उस समय मुझे ये ख्याल आया कि जैसे दूसरे वायरस स्पर्म क्वालिटी को प्रभावित करते हैं, वैसे ही क्या कोविड वायरस भी स्पर्म क्वालिटी को प्रभावित कर सकते हैं? कुछ ना कुछ जेनेटिक बदलाव भी हो सकते हैं या कोई दूसरा बुरा प्रभाव भी हो सकता है. ये सोच कर मैंने इस विषय पर रिसर्च शुरू की."डॉ. सतीश दीपंकर, एडिशनल प्रोफेसर एंड हेड- डिपार्टमेंट ऑफ फिजियोलॉजी, AIIMS, मंगलगिरी, आंध्रप्रदेश
डॉ. सतीश दीपंकर ने फिट हिंदी को बताया कि ये स्टडी देश में अपने तरह की पहली स्टडी है.
"ये भारत में अपने तरह की पहली स्टडी है पर इसे पब्लिश होने में समय लगा. 1 साल तक एक अमेरिकन पब्लिकेशन के पास ये स्टडी पड़ी रह गई. फिर एक महीने पहले दूसरे अमेरिकी जर्नल ‘क्यूरियस मेडिकल जर्नल’ ने इसे प्रकाशित किया.डॉ. सतीश दीपंकर, एडिशनल प्रोफेसर एंड हेड- डिपार्टमेंट ऑफ फिजियोलॉजी, AIIMS, मंगलगिरी, आंध्रप्रदेश
क्या कहती है स्टडी?
स्टडी पटना AIIMS में की गई है.
क्यूरियस जॉर्नल ऑफ मेडिकल में प्रकाशित AIIMS की इस स्टडी रिपोर्ट के अनुसार, पहले सैंपलिंग में 30 में से 12 (40 %) पुरुषों का स्पर्म काउंट कम पाया गया. 10 सप्ताह के बाद जब दूसरी बार जांच की गई तब भी 3 पुरुषों के सीमेन की गुणवत्ता काफी कमजोर पाई गई. पहले टेस्ट में 30 में से 10 पुरुषों का सीमेन कमजोर पाया गया. चौंकाने वाली बात यह रही कि स्टडी में हिस्सा लेने वाले 30 पुरुषों में से 26 के सीमेन की थिकनेस, 29 में स्पर्म काउंट और 22 पुरुषों का स्पर्म मूवमेंट प्रभावित पाया गया. 75 दिनों बाद की गई दूसरी जांच में स्थिति में सुधार पाया गया, लेकिन विशेषज्ञों ने बताया कि कोरोना संक्रमितों के सीमेन की गुणवत्ता 10 सप्ताह बाद भी पूर्व के स्तर तक नहीं पहुंच सकी थी.
क्या कहना है इस स्टडी के प्रमुख डॉक्टर का?
डॉ. सतीश दीपंकर फिट हिंदी से कहते हैं, "ये स्टडी 2020 के मार्च-अप्रैल में शुरू की गई थी. स्टडी में 30 पुरुष शामिल थे. सारे टेस्ट उन 30 पुरुषों पर, कोविड पॉजिटिव और कोविड नेगेटिव होने के दौरान पर किए गये हैं".
"जब हमने स्टडी शुरू कि तो कई दुष्प्रभाव दिखे. जैसे कि लो सीमेन क्वालिटी, लो स्पर्म काउंट और सीमेन वॉल्यूम भी घट गया था. काउंट कम हुआ था, मोटिलिटी पर भी असर पड़ा था. सीमेन में हमें डब्ल्यूबीसी यानी वाइट ब्लड सेल्स बहुत सारे मिले थे. एग्लूटिनेशन हो रहा था सीमेन का. सीमेन एग्लूटिनेशन ग्रेड 3- ग्रेड 4 लेवल तक का मिला था. जिसके कारण स्पर्म फ्री नहीं हो पाते, एक जगह जकड़ के रहते हैं. इस वजह से फर्टिलिटी संभव नहीं है.डॉ. सतीश दीपंकर, एडिशनल प्रोफेसर एंड हेड- डिपार्टमेंट ऑफ फिजियोलॉजी, AIIMS, मंगलगिरी, आंध्रप्रदेश
डॉ. सतीश दीपंकर आगे कहते हैं कि पहले टेस्ट के 75 दिनों बाद मरीजों का दोबारा टेस्ट किया गया, माइल्ड इम्प्रूवमेंट थी पर समस्या अभी भी बनी हुई थी.
एक स्पर्म साइकिल 75 दिनों में पूरा होता है. मतलब पुराने स्पर्म के खत्म होने और नए स्पर्म बनने की प्रक्रिया में 75 दिन लग जाते हैं.
स्टडी कम लोगों पर की गई है
“ये स्टडी पोस्ट कोविड इफेक्ट्स देखने के लिए की गई थी. कोविड संक्रमित होने के बाद इंसान के शरीर में बहुत सारे बदलाव देखे गये हैं. 2020 में मेडिसिन की दुनिया के लिए कोविड नया था. सांस संबंधी समस्या सबसे ज्यादा देखने को मिल रही थी. कोविड के कारण हेल्थ में बहुत सारे बदलाव देखे गए. मेल पोटेंसी (male potency) पर इसके असर को देखने के लिए ये स्टडी की गई.”डॉ. संजीव कुमार, एचओडी- कार्डियोथोरेसिक सर्जरी और नोडल ऑफिसर कोविड 19, AIIMS पटना
डॉ. संजीव कुमार आगे कहते हैं, "ये स्टडी बहुत कम लोगों पर की गई है. इसलिए अभी किसी निर्णय पर आना संभव नहीं है. इस स्टडी को हम पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लेंगे और हो सकता है कि इस स्टडी को बड़ी संख्या पर टेस्ट किया जाए. हम देखेंगे कि कोविड वायरस के कारण बॉडी की इम्युनिटी कम हुई है, तो क्या उसी वजह से सीमेन काउंट भी कम हुआ है? क्या दोनों में कोई कनेक्शन है?"
“इस स्टडी को करने में लिमिटेशन्स बहुत थीं. कोविड के दौरान कोई सैंपल देता नहीं था. कोविड में अधिकतर लोग कमजोर रहते हैं. लॉकडाउन के बीच घर-घर जा कर सैंपल इकट्ठा करना काफी मुश्किल था और लोगों को इस स्टडी के लिए सैंपल देने के लिए मनाना आसान नहीं था. इसलिए एक स्टडी के लिए कम से कम जीतने लोग/सैंपल चाहिए होते हैं हम उतना कर सके.”डॉ. सतीश दीपंकर
अब आगे क्या?
डॉ. सतीश दीपंकर अब AIIMS मंगलगिरी, आंध्रप्रदेश में हैं. वहां भी वो इस स्टडी पर काम कर रहे हैं.
"हम इस पर काम कर रहे हैं और आगे देखेंगे कि इसमें और भी कुछ बदलाव मिलते हैं या नहीं. स्पर्म में डीएनए चेंज पर भी नजर रखनी है."डॉ. सतीश दीपंकर
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