(पठान फिल्म में शाहरुख खान का डायलॉग है, 'ये मत सोचो देश ने तुम्हारे लिए क्या किया, बल्कि ये सोचो तुमने देश के लिए क्या किया.'' हॉकी के पूर्व खिलाड़ी टेक चंद यादव की कहानी सुनकर आपको शाहरुख खान के इस डायलॉग की याद आ जाएगी)
मैं टेक चंद यादव हूं. पूर्व हॉकी खिलाड़ी. मध्य प्रदेश के सागर में रहता हूं. मैं मेजर ध्यानचंद (Major Dhyanchand) का स्टूडेंट रहा हूं. हॉकी में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व भी किया है. मैं उस भारतीय टीम का हिस्सा था, जिसने 1961 में हॉलैंड (अब नीदरलैंड्स) को हराया था.
कुछ परिस्थितियों के कारण मैं झोंपड़ी में रह रहा हूं. मेरी पत्नी को क्षय रोग था और वह चल बसी. मेरी बेटी की मृत्यु तब हुई जब वह आठ महीने की थी.
"जीवन बस चल रहा है, मुझे जो कुछ भी मिलता है मैं खाता हूं और शहर में एक स्थानीय रसोईघर है जो मुझे दो वक्त का भोजन देता है, मैं वह खाता हूं और जीवित रहता हूं."टेक चंद, पूर्व हॉकी खिलाड़ी
"मेरे पास जितने भी प्रमाण पत्र थे, वे या तो बारिश के कारण हमारे घर में रिसाव के कारण या दीमक के कारण नष्ट हो गए. अब कुछ भी नहीं बचा है, मेरे पास कोई भी प्रमाण पत्र या दस्तावेज नहीं हैं."
मुझ पर बढ़ते आर्थिक दबाव के कारण मैंने हॉकी छोड़ दी, मुझ पर एक परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी थी.
"स्थिति ऐसी थी कि मुझे हॉकी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. मेरे परिवार की स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी, इसलिए मैं खेलना जारी नहीं रख सका."टेक चंद यादव, पूर्व हॉकी खिलाड़ी
'1961 में मेजर ध्यानचंद से मिले'
अपने चाचा से प्रेरित होकर मैंने स्कूल के समय से ही हॉकी खेलना शुरू कर दिया था.
"1960 में मैं मध्य प्रदेश के सागर में मेजर ध्यानचंद से मिला. मैं उन खिलाड़ियों में से एक था जिन्हें उन्होंने ट्रेंड किया था. उन्हें यहां ट्रेनिंग के लिए बुलाया गया था और तब हमारा सेना के साथ प्रैक्टिस मैच हुआ करते थे. हमें सलाह दी गई थी कि उनसे कोचिंग लें क्योंकि इससे हमें बेहतर ट्रेनिंग करने में मदद मिलेगी. उन्होंने हमें बहुत कुछ सिखाया, हमारा खेल बेहतर होता गया."टेक चंद यादव, पूर्व हॉकी खिलाड़ी
पिछले दिनों, मैंने विभिन्न प्रतियोगिताओं में अपने राज्य मध्य प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया.
'हॉकी को और पहचान चाहिए'
मैं चाहता हूं कि हॉकी को और ज्यादा पहचान मिले और युवा खिलाड़ियों को उचित कोचिंग दी जाए. हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है. हमारा खजाना है और मुझे आशा है कि लोग इस खेल के महत्व को समझेंगे. इस देश के खिलाडियों को सरकार या जनता ने कभी प्रोत्साहित नहीं किया. अगर उन्हें अच्छा प्रोत्साहन मिला होता तो हम यहां नहीं होते.
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