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दिल्ली: 2015-19 तक केजरीवाल सरकार ने क्यों नहीं बनाया कोई अस्पताल?

ये अस्पताल अगर आज पूरी तरह से काम कर रहे होते, तो दिल्ली को 3 हजार अतिरिक्त बेड और मिल जाते.

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फैक्ट: अप्रैल 2015 और मार्च 2019 के बीच, दिल्ली सरकार ने एक भी नए अस्पताल का गठन नहीं किया.

फैक्ट: 2013 में दिल्ली सरकार के तहत 16 अस्पताल निर्माणाधीन थे, या लॉन्च किए गए थे. 2021 में आज भी कोई भी पूरी तरह से चालू नहीं है.

दिल्ली कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित शहरों में से एक है. राजधानी न सिर्फ कोविड से जूझ रही है, बल्कि ऑक्सीजन और ICU बेड की कमी भी देखी जा रही है. सोशल मीडिया पर मदद की गुहार लगाते सैकड़ों पोस्ट देखे जा सकते हैं. श्मशान घाटों और कब्रिस्तान में भी जगह कम पड़ रही है.

दिल्ली का ये हाल ज्यादा दुख इसलिए देता है क्योंकि यहां देश की बेस्ट मेडिकल सुविधाएं बताई जाती हैं. लेकिन अब लगता है कि इस पर सवाल उठाने का वक्त आ गया है.

क्या अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार ने 2013 में सत्ता में आने के बाद से हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर पर्याप्त काम किया है?

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राइट टू इंफॉर्मेशन (RTI) एक्टिविस्ट तेजपाल सिंह ने 2019 में RTI एप्लीकेशन डालकर सवाल किया था,

“अप्रैल 2015 से मार्च 2019 तक कितने नए अस्पतालों का निर्माण हुआ?”

इस RTI के जवाब में दिल्ली सरकार ने कहा, “DGHS (डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ हेल्थ सर्विस) के हॉस्पिटल सेल में मौजूद जानकारी के मुताबिक, ये बताया गया है कि अप्रैल 2015 से मार्च 2019 की अवधि के दौरान दिल्ली सरकार के अधीन कोई नया अस्पताल नहीं बनाया गया है.”

लेकिन सवाल यहीं खत्म नहीं होता.

डायरेक्टोरेट ऑफ हेल्थ सर्विस की 2013-14 और 2014-15 की सलाना रिपोर्ट के माध्यम से द क्विंट द्वारा एक्सेस किया गया डेटा बताता है कि 2013 में दिल्ली सरकार के तहत कम से कम 16 अस्पताल निर्माणाधीन थे, या उनकी नींव रखी जा चुकी थी.

इनमें से कोई भी अस्पताल आज, 2021 में, पूरी तरह से काम नहीं कर रहा है.

यहां उन अस्पताल के नाम, उनके स्थान और उनमें बिस्तरों की संख्या बताई गई है:

  • मदिपुर में 208 बेड का अस्पताल
  • सरिता विहार में 100 बेड का अस्पताल
  • अंबेडकर नगर में 200 बेड का अस्पताल
  • द्वारका में इंदिरा गांधी में 700 बेड का अस्पताल
  • विकासपुरी में 200 बेड का अस्पताल
  • सीरसपुर में में 200 बेड का अस्पताल
  • ज्वालापुरी में में 200 बेड का अस्पताल
  • बुराड़ी में 200 बेड का अस्पताल
  • छतरपुर में 225 बेड का अस्पताल
  • द्वारका के बिंदापुर में 100 बेड का अस्पताल
  • द्वारका में मेडिकल कॉलेज के लिए जमीन
  • कोकिलाला बाग में 200 बेड का दीपचंद बंधू अस्पताल
  • दिल्ली के नारायणा में 100 बेड का अस्पताल
  • दींदरपुर में 100 बेड का अस्पताल
  • केशपुरम में 200 बेड का अस्पताल
  • दिल्ली के रघुबीर नगर में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के तहत विभिन्न कार्यालयों के लिए कार्यालय भवन का निर्माण
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ये अस्पताल अगर आज पूरी तरह से काम कर रहे होते, तो दिल्ली को 3 हजार अतिरिक्त बेड और मिल जाते. इससे कोविड की दूसरी लहर से बुरी तरह जूझ रही दिल्ली को काफी मदद मिलती.

ऊपर बताए गए 16 अस्पतालों में, केवल दो अस्पताल - एक बुराड़ी और दूसरा अंबेडकर नगर में, बस 2020 में बतौर कोविड-19 फैसिलिटी के तौर पर शुरू किए गए. इन अस्पतालों में कोई दूसरी मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं.

द क्विंट को पता चला है कि बुराड़ी में, अस्पताल की बिल्डिंग लगभग चार साल से तैयार है. सवाल ये है कि दिल्ली सरकार ने अब तक अस्पताल को चालू क्यों नहीं किया? कम से कम महामारी की शुरुआत में भी नहीं?

ये अस्पताल अगर आज पूरी तरह से काम कर रहे होते, तो दिल्ली को 3 हजार अतिरिक्त बेड और मिल जाते.
नई दिल्ली के द्वारका में इंदिरा गांधी अस्पताल की हाल की तस्वीर
(फोटो: क्विंट हिंदी)

एक और RTI जवाब से पता चलता है कि द्वारका का इंदिरा गांधी अस्पताल, जिसमें बेडों की क्षमता 700 है, इसे 2017 में ही बनकर चालू हो जाना था. यहां भी बिल्डिंग तैयार है, लेकिन अस्पताल पूरी तरह से चालू नहीं हुआ है. दिल्ली सरकार यहां जल्द ही कोविड सेंटर शुरू करने की तैयारी में है.

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प्रोजेक्ट में देरी का दिल्ली सरकार ने नहीं दिया जवाब

अपने जवाब में, दिल्ली सरकार ने द क्विंट की खबर को कंफर्म करते हुए कहा कि पिछले सात सालों में सरकार के तहत कोई नया अस्पताल बनाया नहीं गया है.

सरकार ने ये भी माना कि वो 2013 से अब तक, 16 निर्माणाधीन अस्पतालों में से एक को भी आज तक पूरी तरह से चालू करने में विफल रही है.

केवल तीन अस्पतालों को कोविड अस्पताल बनाया गया है.

“6 नए अस्पतालों (सिरसपुर, मादीपुर, बिंदापुर, ज्वालापुरी, सरिता विहार, और हस्तसल) के निर्माण के लिए प्रमुख विस्तार योजना चल रही है.”
दिल्ली सरकार के प्रवक्ता

दिल्ली सरकार ने कहा:

  • दिल्ली के 15 सरकारी अस्पतालों में नए ब्लॉक/क्षमता जोड़ने की योजना है, जिससे दो साल के भीतर 11,904 अतिरिक्त बेड जुड़ जाएंगे.
  • अप्रैल 2015 से, दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में बेडों की कुल संख्या 10,820 से बढ़कर 14,114 हो गई है.
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लेकिन दिल्ली सरकार ने ये नहीं बताया कि निर्माणधीन अस्पतालों को पूरा करने में ये देरी क्यों हुई.

“इसका उद्देश्य बेड, ओपीडी, ज्यादा डॉक्टरों और विभागों और अन्य सुविधाओं के साथ अस्पतालों को अच्छी तरह से बनाना था, ताकि दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों को कवर किया जा सके. हजारों लोगों को बेड, डॉक्टर मिल गए होंते अगर इलाज के लिए ये अस्पताल चालू होते तो.”
संदीप दीक्षित, पूर्व सांसद

दिल्ली हेल्थ डिपार्टमेंट की वेबसाइट के मुताबिक, राजधानी में 37 सरकारी अस्पताल हैं. लेकिन दिल्ली के अस्पतालों में न केवल शहर के लोगों का इलाज होता है, बल्कि दूसरे राज्यों के लोग भी बेहतर इलाज के लिए राजधानी का रुख करते हैं.

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दिल्ली की बढ़ती आबादी आबादी के बीच, नए अस्पताल के लिए चार साल का इंतजार काफी ज्यादा है. दिल्ली ऐसी स्थिति का सामना नहीं कर सकता जहां जहां 16 अस्पतालों के प्रोजेक्ट, जो साल 2013 में या तो लॉन्च किए गए थे, या निर्माणाधीन थे, वो साल 2021 में भी अधूरे हैं.

“और ज्यादा इंफ्रास्ट्रक्चर होना चाहिए, खासतौर से सेकेंड्री हेल्थकेयर में. मौजूदा महामारी की स्थिति में, हम देखते हैं कि मरीजों के लिए ऑक्सीजन बेड अक्सर इलाज के लिए पर्याप्त हैं. अस्पताल चालू हो जाते, तो इससे और बेड मिलते. मौजूदा अस्पताल अस्थायी तौर पर बेडों की व्यवस्था कर सकते हैं, लेकिन वो रातभर में डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ को काम पर नहीं रख सकते.”
डॉ. के श्रीनाथ रेड्ड, अध्यक्ष, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया

मीडिया से एक इंटरव्यू में, बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) कमिश्नर इकबाल सिंह चहल ने दिल्ली सरकार और केंद्रीय अधिकारियों के साथ एक बैठक का जिक्र किया, जिसमें उन्हें कोविड-19 संकट से निपटने में अपना अनुभव शेयर करने के लिए कहा गया था.

चहल ने बैठक में दिल्ली सरकार की ओर इशारा करते हुए कहा कि, “… किसी भी अस्पताल को बेड जोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए. अस्पतालों से SOS कॉल इसलिए आ रही हैं, क्योंकि उन्हें रातोंरात ऑक्सीजन वाले बेड बढ़ाने के लिए मजबूर किया जाता है, जिनमें ऑक्सीजन स्टोरेज की सुविधा नहीं है.”

दिल्ली, जिसे भारत की स्वास्थ्य सुविधाओं का केंद्र होना चाहिए था, बजाय इसके, वो कोविड महामारी के बोझ तले दब गया है, क्योंकि AAP सरकार मौजूदा स्वास्थ्य बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर को ठीक करने की बजाय, लोकलुभावन उपायों को प्राथमिकता दे रही थी

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