ADVERTISEMENT

Agnipath,किसान आंदोलन,CAA...मोदी काल के 7 बड़े आंदोलन, किनमें बैकफुट पर आई सरकार?

PM modi Tenure Protests Timeline: BJP सरकार कई आंदोलनों में बैकफुट पर आई लेकिन चुनाव में प्रदर्शन सुधर गया

Updated
भारत
5 min read
Agnipath,किसान आंदोलन,CAA...मोदी काल के 7 बड़े आंदोलन, किनमें बैकफुट पर आई सरकार?
i

रोज का डोज

निडर, सच्ची, और असरदार खबरों के लिए

By subscribing you agree to our Privacy Policy

"केंद्र सरकार के फैसले को लेकर पूरे देश में उग्र विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं" - यह वाक्य आपको मोदीराज में अखबारों में लगातार चस्पा मिलेगा. कभी नोटबंदी, कभी CAA, कभी कृषि कानून और अबकी बार सशस्त्र बलों में भर्ती को लिए जारी नई अग्निपथ योजना (Agnipath Scheme) - जनता बार बार केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ सड़क पर आई है.

ADVERTISEMENT

जहां एक तरफ पीएम मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार को कई मौकों पर सड़कों पर जनता का रोष झेलना पड़ा तो वहीं दूसरी तरफ पार्टी का प्रदर्शन चुनाव में शानदार रहा. बावजूद इसके कई ऐसे उदाहरण भी देखने को मिले जहां सरकार को अपने विवादस्पद योजनाओं/फैसलों/कानूनों पर वापस लौटना पड़ा और जनता के दबाव में उन्हें वापस लेना पड़ा.

आइए नजर डालते हैं ‘मोदी काल’ के 7 बड़े आंदोलनों पर और जानते हैं कि कब मोदी सरकार को जनता के दबाव में कितना झुकना पड़ा.

भूमि अधिग्रहण सुधार (2015)

भूमि अधिग्रहण अध्यादेश- 2014 में मिली जीत के बाद मोदी सरकार के उन पहले फैसलों में से एक था जिसपर उसे बड़े विरोध का सामना करना पड़ा था. केंद्र सरकार का दावा था कि इस अध्यादेश से भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास कानून, 2013 में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार में संशोधन किया जायेगा.

हालांकि भूमि अधिग्रहण अधिनियम में प्रस्तावित सुधार पर जल्द विरोध होने लगा. विपक्ष ने सरकार पर "गरीब विरोधी" नीतियों को लागू करने का आरोप लगाया.

भारी विरोध के बीच इस अध्यादेश को कानून में परिवर्तित करने के लिए फरवरी 2015 में लोकसभा में पेश किया गया था. मार्च 2015 में यह लोकसभा में पारित हो गया, लेकिन राज्यसभा में यह पारित नहीं हो सका. कई विफल कोशिशों और व्यापक विरोध के बीच केंद्र ने प्रस्तावित सुधारों को वापस लेने का फैसला किया और प्रधानमंत्री ने अगस्त 2015 के अपने 'मन की बात' प्रसारण के दौरान राष्ट्र को आश्वासन दिया कि अध्यादेश को समाप्त (लैप्स) होने दिया जाएगा.

ADVERTISEMENT

UGC 'रिफॉर्म'- रोहित वेमुला की मौत के खिलाफ आंदोलन

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने 2015 में बिना नेट वालों की फेलोशिप को समाप्त करने का निर्णय लिया, जिसके कारण भारत के केंद्रीय विश्वविद्यालयों के छात्रों ने बड़े पैमाने पर विरोध शुरू कर दिया. 2016 में दलित पीएचडी स्कॉलर रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद यह विवाद छात्रों और सरकार के बीच तीखी नोकझोंक और आंदोलन में बदल गया.

रोहित वेमुला जिस हैदराबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे वहां के और वैसे ही कई केंद्रीय यूनिवर्सिटी के छात्र सड़कों पर उतरे और शिक्षा प्रणाली में जातिगत भेदभाव के खिलाफ न्याय की मांग की. यही वह मौका था जब JNU के तत्कालीन अध्यक्ष कन्हैया कुमार और उमर खालिद जैसे छात्र नेता इस आंदोलन के चेहरे बनकर उभरे.

इस आंदोलन ने देश में 'लेफ्ट बनाम राइट विंग' के नैरेटिव को भी स्थापित किया और "एंटी-नेशनल" जैसे टर्म को जन्म दिया, जो आज तक हम सुनते हैं.

नोटबंदी पर बवाल, रूल बदलती रही सरकार

8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री मोदी टीवी पर आए और उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था से काले धन को बाहर करने के लिए 500 और 1,000 रुपये के नोटों को अमान्य घोषित करते हुए नोटबंदी ला दी. अगले दिन से पुराना नोट बदलवाकर नया नोट लेने पूरा देश एटीएम की लाइनों में खड़ा था. सरकार के इस फैसले का जमकर विरोध भी हुआ.

लोगों की बढ़ती परेशानियों के बीच सरकार जल्द ही नए नियमों के साथ आई, और फिर दूसरी बार नए नियम आए और फिर उसके बाद नए नियमों का एक और सेट आया. आगे रुक-रुककर आरबीआई और मोदी सरकार नियमों के नए सेट के साथ आती गयी, जिसको ट्रैक कर पाना आम आदमी के लिए मुश्किल रहा.

ADVERTISEMENT

आर्टिकल 370 का हटना

5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने जम्मू और कश्मीर राज्य को संवैधानिक रूप से दी गई विशेष स्थिति को हटाते हुए अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया. साथ ही इससे राज्य का दर्जा छीन कर इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया.

सरकार ने 4 अगस्त 2019 को ही जम्मू-कश्मीर में 4G इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी थी और कश्मीर घाटी के कई हिस्सों में तो फिर से इंटरनेट सेवाओं को बहाल करने में 18 महीने लग गए. घाटी में सख्त लॉकडाउन लगाकर विरोध प्रदर्शनों को रोका गया लेकिन देश के बाकी हिस्सों में प्रदर्शन हुए. छात्रों ने सरकार के इस फैसले के खिलाफ रैलियों में भाग लिया, विशेषकर अन्य राज्यों में पढ़ने वाले कश्मीरी छात्रों ने.

देश के अंदर और बहार, चौतरफा आलोचनाओं के बीच भी मोदी सरकार अपने इस फैसले पर अडिग रही और टस-से-मस नहीं हुई.

CAA-NRC के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन

मोदी सरकार नागरिकता संशोधन अधिनियम (2019) और NRC लेकर आई और शायद अपने कार्यकाल का सबसे बड़ा विरोध देखा. विवादास्पद CAA कानून पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के उत्पीड़ित गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान करता था और यह दिसंबर 2019 में संसद द्वारा पारित किया गया.

ADVERTISEMENT

CAA के पारित होने के बाद से ही अल्पसंख्यक समुदायों और नागरिक समाज के लोगों ने इसका जमकर विरोध किया. इनका कहना था कि CAA असंवैधिक है और अपने चरित्र में अल्पसंख्यक समुदायों के साथ भेदभाव करता है. शाहीनबाग में जब आंदोलन हुआ तो वह ऐतिहासिक हुआ. पहली बार अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं ने इस तरह आगे बढ़ कर मोर्चा संभाला था.

आगे ऐसे शाहीनबाग देश में और कई जगह उभरे और ‘कागज नहीं दिखाएंगे’ जैसे नारों में जनता का विरोध गूंजा. इस आंदोलन की खास बात थी कि इसमें विरोध के औजार के रूप में आर्ट का इस्तेमाल हुआ. आगे फरवरी 2019 के दिल्ली के दंगों और फिर कोविड -19 के लॉकडाउन के बीच CAA-NRC आंदोलन कमजोर हो गया.

मोदी सरकार एक बार फिर नहीं झुकी थी.

किसान आंदोलन

2020 में मोदी सरकार 3 विवादस्पद कृषि कानूनों को लेकर आई और इस बार देश के किसान सड़कों पर थे. विरोध प्रदर्शन 25 नवंबर 2020 को शुरू हुआ जब हजारों किसानों ने - मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा से - "दिल्ली चलो" के नारे के साथ राष्ट्रीय राजधानी की ओर मार्च किया.

ADVERTISEMENT

किसान तैयारी के साथ आये थे और उन्होंने दिल्ली के बॉर्डर पर ऐसा डेरा डाला कि सरकार हैरान थी. दिल्ली के बॉर्डरों पर मीलों तक फैले टेंट, ट्रैक्टरों में इन किसानों ने ठंड बिताई-बरसात बिताई लेकिन हटे नहीं, डटे रहे. यूपी चुनाव नजदीक आ रहा था और मोदी सरकार बैक-फुट पर थी. राकेश टिकैत और किसान यूनियन के नेतृत्व में किसानों का दबाव बढ़ता गया.

आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा. 19 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री मोदी ने कानूनों को निरस्त करने की ऐतिहासिक घोषणा की और कहा कि “शायद मेरी तपस्या में ही कोई कमी रह गयी होगी”. संसद के दोनों सदनों ने 29 नवंबर 2021 को कृषि कानून निरसन विधेयक, 2021 को मंजूरी दे दी और 9 दिसंबर 2021 को जीत के साथ किसान अपने अपने गांव को लौटे.

अग्निपथ

PM मोदी की कैबिनेट ने 14 जून 2022 को भारतीय युवाओं के लिए सशस्त्र बलों में सेवा देने के लिए एक भर्ती योजना- अग्निपथ को मंजूरी दी. चार साल के कार्यकाल के लिए ‘अग्निवीरों’ की इस भर्ती योजना ने एक बार फिर देश को विरोध-प्रदर्शन में झोंक दिया.

ADVERTISEMENT

बिहार, यूपी, हरियाणा से लेकर पंजाब, केरल और जम्मू-कश्मीर तक छात्रों का यह विरोध प्रदर्शन पहुंच गया है. कई जगहों पर पत्थरबाजी, ट्रेन-बसों में आगजनी की गयी है. छात्रों के उग्र होते विरोध को देखते हुए सरकार डैमेज कंट्रोल मोड में है और इसने विरोध को शांत कराने के लिए ये घोषणाएं कर दी हैं:

  • रक्षा मंत्रालय द्वारा कोस्ट गार्ड और राज्य द्वारा संचालित डिफेंस फर्मों में 10 प्रतिशत नौकरियां अग्निवीरों के लिए आरक्षित

  • गृह मंत्रालय द्वारा केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPF)और असम राइफल्स में 10 प्रतिशत नौकरियां अग्निवीरों के लिए आरक्षित

  • अग्निवीरों के लिए CAPF और असम राइफल्स में भर्ती के लिए आयु सीमा में तीन साल की छूट

  • भारतीय नौसेना के अग्निवीरों के लिए मर्चेंट नेवी में रोजगार के अवसर

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×