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राजस्थान में गहलोत, MP में कमलनाथ का CM बनना करीब तय

मध्यप्रदेश में कांग्रेस जीत तो गई लेकिन पार्टी में सबका दिल कैसे जीतेगी?

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कांग्रेस ने छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत का परचम लहरा दिया है. लेकिन इन तीन राज्यों में कांग्रेस के नाव के खैवेया को लेकर असमंजस बना हुआ है. मतलब इन राज्यों में कौन होगा कांग्रेस का सीएम? चुनाव से पहले कांग्रेस ने किसी भी राज्य में सीएम के उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं किया था. अब ऐसे में कांग्रेस के सामने चुनती है कि इन तीनों राज्यों में बिना पार्टी में खींचतान के मुख्यमंत्री चुने.

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मध्यप्रदेश में कांग्रेस जीत तो गई लेकिन पार्टी में सबका दिल कैसे जीतेगी?

बता दें कि मध्यप्रदेश की 230 सीटों पर आए नतीजों के बाद कांग्रेस 114 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. हालांकि फाइनल रिजल्ट से पहले ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को पत्र लिखकर सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए मिलने का वक्त मांगा है.

साथ ही आज शाम में कांग्रेस ने अपने नए विधायकों की बैठक बुलाई है. यह बैठक भोपाल में प्रदेश कांग्रेस के दफ्तर में बुलाई गई है. जिसमें प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह, समेत कांग्रेस के सीनियर लीडर शामिल होंगे.

कमलनाथ या सिंधिया, मुख्यमंत्री कौन?

कांग्रेस के लिए असली टेस्ट मुख्यमंत्री का चेहरा तय करना है. कांग्रेस में सीएम की रेस में सीनियर लीडर कमलनाथ हैं तो दूसरी ओर युवा ज्योतिरादित्य सिंधिया. बता दें कि नतीजों से पहले ही कमलनाथ के समर्थकों ने कई जगह उनके सीएम उम्मीदवार होने के पोस्टर तक लगा दिए. जानकारों की मानें तो कमलनाथ का पलड़ा भारी दिख रहा है. अब कांग्रेस विधायक दल के नेता का चुनाव बुधवार को मध्य प्रदेश के सुपरवाइजर ए के एंटोनी की मौजूदगी में होगा. जिसमें सीएम को लेकर भी चर्चा होगी.

मध्यप्रदेश में कांग्रेस जीत तो गई लेकिन पार्टी में सबका दिल कैसे जीतेगी?
मप्र में कमलनाथ और सिंधिया कांग्रेस का चेहरा

राजस्थान में भी मुश्किलें कम नहीं, सचिन और अशोक गहलोत आमने-सामने

राजस्थान में कांग्रेस को 200 विधानसभा सीटों में से 99 पर जीत हासिल हुई है. यहां भी युवा सचिन पायलट और अनुभवी अशोक गहलोत के बीच मुकाबला है. दो बार राजस्थान के सीएम रहे अशोक गहलोत सिर्फ अनुभवी ही नहीं बल्कि उनके पास लॉयल वोट बेस भी है. साथ ही OBC समाज का वोट कांग्रेस की तरफ लाने की ताकत भी. लेकिन अशोक गहलोत अकेले सिकंदर बन जाएं ये भी आसान नहीं है. क्योंकि उनके सामने राजस्थान के इस रण में दूसरे खिलाड़ी सचिन पायलट हैं.

सचिन पायलट युवा है पिता राजेश पायलट का नाम है और मजबूती के साथ पार्टी के बुरे दौर में भी लोगों के बीच में उनका गुस्सा झेलने का क्रेडिट भी. साथ ही अपने गढ़ को छोड़ कहीं और से चुनाव जीतने का सेहरा भी अब उनके सर पर सज चुका है. ये फैक्टर उनके साथ है. ऐसे में राजस्थान में भी कांग्रेस के पास सीएम चुनने में मुश्किल हो सकती है.
मध्यप्रदेश में कांग्रेस जीत तो गई लेकिन पार्टी में सबका दिल कैसे जीतेगी?
अशोक गहलोत(बाएं) और सचिन पायलट(दाएं)
(फोटो: The Quint)

बता दें कि जयपुर में आज 12 बजे के करीब कांग्रेस विधायक दल की बैठक होनी है, जिसमें विधायक दल नेता चुनने पर चर्चा होगी. इसके बाद पार्टी आलाकमान को सबका फैसला बताया जाएगा. फिर शाम को दोबारा बैठक होगी जिसमें मुख्यमंत्री का नाम तय हो सकता है.

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छत्तीसगढ़ में 3 खिलाड़ी रेस में

छत्तीसगढ़ में 15 साल बाद जबरदस्त तरीके से कांग्रेस ने वापसी की है. कांग्रेस को करीब 68 सीटें मिली हैं. जबकि बीजेपी सिर्फ 15 सीटों पर सिमट गई है. कांग्रेस की जीत के बाद सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर कौन बनेगा यहां मुख्यमंत्री. इस रेस में तीन नाम हैं.

ओबीसी नेता भूपेश बघेल, छत्तीसगढ़ राज्य के सबसे अमीर विधायक टीएस सिंह देव और अति पिछड़ा वर्ग से आने वाले ताम्रध्वज साहू. 

भूपेश बघेल का नाम पहले नंबर पर

भूपेश बघेल साल 2000 में हुए मध्य प्रदेश विभाजन से पहले दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री रह चुके हैं. बघेल ने कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए राज्य का पैदल दौरा किया था. और छत्तीसगढ़ की आबादी में करीब 36 फीसदी हिस्सेदारी ओबीसी की है.

मध्यप्रदेश में कांग्रेस जीत तो गई लेकिन पार्टी में सबका दिल कैसे जीतेगी?
छत्तीसगढ़ कांग्रेस के अध्यक्ष भूपेश बघेल
(फोटोः @Bhupesh_Baghel)

वहीं टीएस सिंह देव रगुजा स्टेट के राजपरिवार से ताल्लुक रखते हैं. देव ठाकुर परिवार से आते हैं. वो राज्य विधानसभा के अंदर और बाहर कांग्रेस के सबसे जाने-माने नेता हैं.

तीसरे नंबर पर हैं. ताम्रध्वज साहू. वह ओबीसी वोटरों, खासकर साहू समुदाय में प्रभावशाली नेता हैं. उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का करीबी माना जाता है. साहू दुर्ग से सांसद हैं और पार्टी की ओबीसी सेल के प्रमुख हैं. जातीय समीकरणों की मानें तो सूबे की 20 फीसदी यानी 18 सीटों पर साहू समुदाय निर्णायक भूमिका की स्थिति में है. ऐसे में कांग्रेस के लिए बीजेपी को हारने के बाद भी अपने नेताओं का दिल जीतना और सबको साथ लेकर चलना आसान नहीं है.

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