ADVERTISEMENTREMOVE AD

कैंसर, HIV, कोरोना: पतंजलि ने बिना सबूत कई बार किए इलाज के दावे

पतंजलि ने 23 जून को कोरोना वायरस के लिए दवा का ऐलान किया था

Published
भारत
7 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

एक तरफ दुनियाभर के डॉक्टर, साइंटिस्ट, रिसर्चर्स और एक्सपर्ट कोरोना वायरस की दवा-वैक्सीन ढूंढने में संघर्ष कर रहे हैं, इस बीच पतंजलि ने 23 जून को कोरोना वायरस के लिए दवा का ऐलान कर दिया. कोरोनिल और श्वासरि नाम की दवाओं का ऐलान बाबा रामदेव ने कोरोना वायरस के इलाज के तौर पर कर दिया. हालांकि, नेशनल चैनल पर हुए इस 'लॉन्च' के महज कुछ ही घंटों के भीतर आयुष मंत्रालय ने कंपनी को दवा की बिक्री और विज्ञापन रोकने के लिए कह दिया.

प्रेस रिलीज के मुताबिक, मंत्रालय ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड से कहा कि इस ड्रग के कंपोजिशन, स्टडी से आए नतीजे, ट्रायल और दूसरी जानकारियों को विज्ञापन से पहले मंत्रालय से साझा करें.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

लाइसेंस में नहीं किया कोरोना का जिक्र

उत्तराखंड आयुर्वेद डिपार्टमेंट के लाइसेंस ऑफिसर ने इस मामले को लेकर कहा,“पतंजलि की एप्लीकेशन के मुताबिक हमने उन्हें लाइसेंस इशू किया. लेकिन उन्होंने इस एप्लीकेशन में कहीं भी कोरोना वायरस का जिक्र नहीं किया था. हमने सिर्फ इम्युनिटी बूस्टर, कफ और फीवर के लिए लाइसेंस अप्रूव किया था. हमने उन्हें एक नोटिस जारी किया है और पूछा है कि कैसे उन्हें कोरोना किट बनाने की इजाजत मिली?”

लेकिन ये पहली बार नहीं है जब पंतजलि कंपनी किसी दावे और बिना सबूत के इलाज को लेकर विवादों में फंसी है. कई बार ऐसा हो चुका है.

इस कंपनी और इसके को-फाउंडर योगगुरु बाबा रामदेव का इतिहास है कि कभी उन्होंने कैंसर के 100 फीसदी इलाज, कभी HIV और होमोसेक्सुएलिटी के ‘इलाज’ का भी दावा किया था.
0

इतना ही नहीं बाबा रामदेव के करीबी सहयोगी और पतंजलि आर्युवेद के 94 फीसदी के स्टेकहोल्डर आचार्य बालकृष्ण का भी विवादों से नाता रहा है. उनकी हाई स्कूल और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की डिग्री कथित तौर पर रिकॉर्ड में मिली ही नहीं.

बालकृष्ण पर धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश के जरिए फेक डिग्री और इंडियन पासपोर्ट हासिल करने के भी आरोप लग चुके हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कैंसर से लेकर होमोसेक्सुएलिटी- रामदेव का पास सबका इलाज

रामदेव इससे पहले कैंसर और एचआईवी एड्स जैसी खतरनाक बीमारियों का इलाज करने का दावा भी कर चुके हैं. उनका कहना था कि योगा और दिव्य फार्मेसी या फिर पतंजलि आयुर्वेद की कुछ दवाओं के इस्तेमाल से इन बीमारियों को ठीक किया जा सकता है. लेकिन उनके इस दावे को भी नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने झूठा साबित किया था.

रामदेव ने कई बार ये भी दावा किया है कि होमोसेक्सुएलिटी को सिर्फ योग के जरिए ठीक किया जा सकता है. सिर्फ इतना ही नहीं योग गुरु रामदेव ने तो ये भी दावा किया है कि योग से महिला को लड़का पैदा करने में भी मदद मिल सकती है.

साल 2016 में क्विंट का एक रिपोर्टर बिना अपनी पहचान बताए होमोसेक्सुएलिटी के दावे की पड़ताल करने पतंजलि पहुंचा. इस पड़ताल में जो पता लगा वो काफी हैरान कर देने वाला था. वहां होमोसेक्सुएलिटी को एक दिमागी बीमारी के तौर पर बताया गया और पतंजलि ने इसके इलाज के लिए एक पूरा कोर्स तैयार किया था. जिसमें योगासन और दवाएं शामिल थीं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

भ्रामक विज्ञापन- अपने दावों के लिए टीवी का इस्तेमाल

दिसंबर 2016 में पतंजलि आयुर्वेद पर गलत और भ्रामक विज्ञापन को लेकर 11 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था. ये तब हुआ था जब पतंजलि का नमक, सरसों का तेल, बेसन, शहद और अन्य प्रोडक्ट क्वॉलिटी टेस्ट में फेल हो गए थे. इसी साल विज्ञापनों की निगरानी करने वाली संस्था एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) ने इस कंपनी को गुमराह करने वाले विज्ञापनों को लेकर फटकार लगाई थी.

  • अपने कच्ची घानी सरसों तेल के विज्ञापन के दौरान पतंजलि ने ये दावा किया था कि बाकी की कंपनियां न्यूरोटॉक्सिन के साथ गलत तरीके से बनाए गए मिलावटी तेल बेच रहे हैं. हालांकि इस दावे को वो कभी साबित नहीं कर पाए.
  • एक ऐसा ही दावा पतंजलि की तरफ से फ्रूट जूस को लेकर भी किया गया. जिसमें उन्होंने कहा कि बाकी की कंपनियां फलों का काफी कम पल्प इस्तेमाल कर इसे महंगे दामों में बेच रही हैं.

साल 2017 में एक बार फिर ASCI ने पाया कि पतंजलि के 33 में से 25 विज्ञापनों में ASCI नियमों का उल्लंघन हुआ है. लोकसभा में सरकार की तरफ से दिए गए डेटा के मुताबिक पतंजलि के 33 विज्ञापनों को लेकर अप्रैल 2015 से जुलाई 2016 तक कई शिकायतें दर्ज की गईं. इनमें कई तरह के प्रोडक्ट शामिल थे, जैसे- फूड, पेय, पर्सनल केयर और हेल्थ केयर प्रोडक्ट.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

पतंजलि प्रोडक्ट्स की खराब क्वॉलिटी

पतंजलि के प्रोडक्ट्स को लेकर कई बार शिकायतें आई हैं कि इनकी क्वॉलिटी काफी खराब है. साल 2017 में एक आरटीआई के जवाब में बताया गया कि 40 फीसदी आयुर्वेद प्रोडक्ट जिसमें बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि के प्रोडक्ट्स भी शामिल थे, उनकी क्वॉलिटी खराब पाई गई. हरिद्वार के यूनानी एंड आयुर्वेद ऑफिस से ये जानकारी दी गई थी. इसमें पतंजलि का दिव्य आंवला जूस और शिवलिंगी बीज शामिल था.

साल 2017 में वायुसेना के कैंटीन स्टोर्स डिपार्टमेंट (सीएसडी) से भी पतंजलि के आंवला जूस को हटा दिया गया था, क्योंकि पश्चिम बंगाल पब्लिक हेल्थ लेबोरेट्री में हुए क्वॉलिटी टेस्ट में ये फेल हो गया था.

इसी तरह जब देश में नूडल्स सप्लाई करने वाली सबसे बड़ी कंपनी नेस्ले की मैगी पर लेड और बाकी चीजों को लेकर बैन लगाया गया था तो पतंजलि ने अपना आटा नूडल्स लॉन्च किया. लेकिन जब फूड सेफ्टी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने मेरठ में इसके सैंपल टेस्ट किए तो उसमें पाया गया कि इसकी क्वॉलिटी ठीक नहीं है. इसके अलावा स्वाद के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पाउडर की मत्रा भी तीन गुना ज्यादा पाई गई थी.

कोरोना की दवा को लेकर पतंजलि के दावे

पतंजलि आर्युवेद के मैनेजिंग डायरेक्टर आचार्य बालकृष्ण ने खुद ये बात कही कि ये दवा क्लिनिकल ट्रायल के सभी मानकों पर खरी उतरी है. कंपनी की तरफ से जब इस दवा को लेकर ऐलान किया गया तो उसमें कई तरह के दावे किए गए.

  • पतंजलि ने दावा किया कि उनकी दवाई कोरोनिल से मरीज एक हफ्ते में 100 फीसदी रिकवर हो जाएंगे.
  • आर्युवेदिक तरीके से इलाज करने से पता चला है कि ऐसे मरीजों के इम्युनिटी सिस्टम में ओवर रिएक्शन नहीं होता है

एक हिंदी न्यूज चैनल इंडिया टीवी को दिए एक इंटरव्यू में बाबा रामदेव ने दावा किया कि कोरोनिल के अलावा कोरोना के इलाज के लिए किसी भी एलोपेथिक दवा की जरूरत नहीं है. लेकिन आखिर कौन सी वो बाते हैं जो पतंजलि के इस दावे पर शक करने को मजबूरत करती हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

1. 100 लोगों का ट्रायल सैंपल और उनका चयन

पतंजलि की तरफ से इस दवा को लेकर किए गए क्लिनिकल ट्रायल में कुल 100 लोगों को शामिल किया गया था. जिनमें से 95 लोगों को स्टडी किया गया. इनमें से एक मरीज फॉलो अप में कम हो गया और बाकी के चार बीच में ही इस ट्रायल को छोड़कर चले गए.

इस स्टडी में उन मरीजों को शामिल नहीं किया गया, जिन्हें कोरोना वायरस का सबसे ज्यादा खतरा होता है. जिनका इम्युनिटी सिस्टम खराब होता है. इसमें करीब 35 से 45 साल के लोगों को शामिल किया गया, जिनमें या तो लक्षण नहीं दिख रहे थे या फिर काफी कम लक्षण थे.

क्विंट ने इसके लिए कस्तूरबा हॉस्पिटल के मेडिकल सुप्रिटेंडेंट डॉक्टर एसपी कलांत्रि से बात की. उन्होंने बताया, इस स्टडी में जिन लोगों को शामिल किया गया था वो जवान थे. वो सभी हल्के लक्षण वाले और ऐसे लोग थे जिन्हें हार्ट या फिर फेफेड़ों की कोई समस्या नहीं थी. उन्होंने आगे कहा,

इस स्टडी में पूरी तरह से सामान्य और स्वस्थ कोरोना मरीजों को शामिल किया गया था. इसीलिए ये साफ बताता है कि लोगों का स्टडी के लिए चयन पूरी तरह से साफ नहीं था.

पतंजलि की तरफ से इस बात की कोई जानकारी नहीं दी गई थी कि रिसर्चर्स ने लोगों का चयन किस आधार पर किया था. जिससे ये पता चलता है कि अपनी सुविधा के मुताबिक अच्छे रिजल्ट के लिए लोगों को चुना गया.

2. ट्रायल में शामिल रिसर्चर्स की विश्वसनीयता

बताया गया है कि कोरोनिल नाम की इस दवा को अश्वगंधा, गिलॉय और तुलसी से बनया गया है. जयपुर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में पतंजलि की तरफ से इस दवा पर रिसर्च की गई. इसीलिए हमने इस संस्थान की वेबसाइट पर जाकर पता किया कि उन्हें ऐसी स्टडीज का पहले कितना अनुभव है. लेकिन हमने ये पाया कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन के साथ रजिस्टर ही नहीं है. डॉक्टर कलंत्रि ने भी यही मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा,

“जिन रिसर्चर्स ने ये ट्रायल किया है उन्हें पहले ऐसा करने का ज्यादा अनुभव नहीं है. इसके अलावा इस तरह के ट्रायल करने वाले हॉस्पिटल को सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन के साथ रजिस्टर होना जरूरी है. जो इस केस में नहीं था.”
डॉक्टर एसपी कलांत्रि

3. पर्याप्त आंकड़ों की कमी

कई एक्सपर्ट्स ने ये भी सवाल उठाया है कि पतंजलि के इस क्लिनिकल ट्रायल का इससे पहले कभी भी किसी साइंटिफिक जर्नल में कोई जिक्र नहीं हुआ था. यहां तक कि आयुष मंत्रालय और उत्तराखंड सरकार के आयुर्वेदिक डिपार्टमेंट ने भी खुद को इससे अलग कर दिया. इसके ठीक बाद पतंजलि ने इस सबको एक कम्युनिकेशन गैप करार दिया और कहा कि अब मामला पूरी तरह सुलझ चुका है.

यहां तक कि अब आयुष मंत्रालय के एक लेटर जिसमें पतंजलि की तरफ से दिए गए क्लिनिकल ट्रायल के आंकड़ों का जिक्र है उसे सोशल मीडिया पर शेयर कर बताया जा रहा है कि सब ठीक हो चुका है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कोरोनिल से पहले सरसों के तेल को बताया था कोरोना के खिलाफ हथियार

इस साल अप्रैल में बाबा रामदेव ने दावा किया था कि अगर अपनी नाक के जरिए सरसों के तेल का इस्तेमाल किया जाए तो ये कोरोना वायरस को खत्म करने में मदद कर सकता है, इससे पेट में मौजूद एसिड खत्म हो जाता है. इस दावे को कई मीडिया चैनलों और अखबारों ने पब्लिश किया था.

अगर जो वयस्क लोग हाईपरटेंशन, हार्ट की समस्या, अस्थमा जैसी बीमारियों से ग्रसित हैं और वो 30 सेकेंड तक अपनी सांस रोक सकते हैं. तो समझ लें कि उन्हें कोरोना नहीं है. वहीं जवान लोग अगर 1 मिनट तक सांस रोक सकते हैं तो ये साबित हो जाएगा कि उन्हें भी कोरोना नहीं है.
आज तक के साथ एक स्पेशल सेशन में बाबा रामदेव

क्विंट ने इस दावे की पड़ताल की और पाया कि ये एक झूठा दावा है. हमें इसे लेकर कोई भी स्टडी नहीं मिली. वहीं रामदेव के सरसों के तेल वाले दावे को लेकर हेल्थ केयर एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसका कोरोना वायरस पर किसी भी तरह का असर नहीं होता है.

पतंजलि के ऐसे आधारहीन दावों की अगर बात करे तो ये सिर्फ उसका एक हिस्सा हैं. लेकिन असली सवाल ये है कि भारत में ऐसी आयुर्वेद के नाम पर बिकने वाले प्रोडक्ट्स पर लोगों को इतना भरोसा क्यों हो रहा है? इसका जवाब है बाबा रामदेव की घरेलू या देसी अपनाओ वाली अपील.

योग गुरु से लेकर एक भ्रष्टाचार विरोधी शख्सियत और बाद में स्वदेशी के नाम पर एक बड़ा बिजनेसमैन बनने वाले बाबा रामदेव के पतंजलि ने भले ही क्वॉलिटी के मानकों को पूरा नहीं किया हो, लेकिन इसके बावजूद उनके प्रोडक्ट लोगों में लोकप्रिय हैं.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें