इसरो चंद्रयान-2 को चांद की सतह पर लैंड कराने के बाद इतिहास रचने जा रहा है. शनिवार तड़के चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम की चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग होगी. भारत का यह दूसरा चंद्र मिशन चांद के अब तक अनदेखे दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर प्रकाश डाल सकता है. यहां अभी तक किसी भी देश ने अपना लैंडर नहीं उतारा है. इसरो के अधिकारी लगातार इस बेहद खास मिशन पर नजर बनाए हुए हैं. पीएम मोदी ने ट्टिटर पर कई ट्वीट कर देश के लोगों के ऐतिहासिक पल का गवाह बनने के लिए बधाई दी है.
चुनौती से भरी होगी सॉफ्ट लैंडिंग
चांद पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ भारत के दूसरे चंद्र मिशन की सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अब से पहले इस प्रक्रिया को कभी अंजाम नहीं दिया है.
इसरो के मुताबिक चांद का दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र काफी दिलचस्प है क्योंकि यह उत्तरी ध्रुव क्षेत्र के मुकाबले काफी बड़ा है और अंधकार में डूबा रहता है. चांद पर स्थायी रूप से अंधकार वाली जगहों में पानी मौजूद होने की संभावना है. इसके अलावा चांद पर ऐसे गड्ढे हैं जहां कभी धूप नहीं पड़ी है. इन्हें ‘कोल्ड ट्रैप’ कहा जाता है और इनमें पूर्व के सौर मंडल का जीवाश्म रिकॉर्ड मौजूद है.
'विक्रम' होगा चांद की सतह पर लैंड
चंद्रयान-2 के लैंडर ‘विक्रम’ को शुक्रवार और शनिवार की रात एक बजे से दो बजे के बीच चांद की सतह पर उतारने की प्रक्रिया की जाएगी और यह रात डेढ़ से ढाई बजे के बीच चांद पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करेगा. वैज्ञानिक प्रयोगों से जुड़े उपकरणों को सुरक्षित रखने के लिए ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ काफी जरूरी होती है. इसमें लैंडर को आराम से धीरे-धीरे सतह पर उतारा जाता है, ताकि लैंडर और रोवर तथा उनके साथ लगे अन्य उपकरण सुरक्षित रहें. ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ इस मिशन की सबसे मुश्किल प्रक्रिया है और यह इसरो वैज्ञानिकों की ‘दिलों की धड़कनों’ को थमा देने वाली होगी.
लैंडर के चांद पर उतरने के बाद सात सितंबर की सुबह साढ़े पांच से साढ़े छह बजे के बीच इसके भीतर से रोवर ‘प्रज्ञान’ बाहर निकलेगा और अपने वैज्ञानिक प्रयोग शुरू करेगा. इसरो अगर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करवाने में सफल होता है तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा और चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा.
चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर का जीवनकाल एक साल का है. इस दौरान यह चंद्रमा की लगातार परिक्रमा कर हर जानकारी पृथ्वी पर मौजूद इसरो के वैज्ञानिकों को भेजता रहेगा. वहीं, रोवर ‘प्रज्ञान’ का जीवनकाल एक चंद्र दिवस यानी कि धरती के 14 दिन के बराबर है. इस दौरान यह वैज्ञानिक प्रयोग कर इसकी जानकारी इसरो को भेजेगा.
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