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'पत्नी के साथ सेक्स रेप नहीं, भले ही जबरन हो' - छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के इस फैसले पर कई लोगों ने ट्विटर पर अपनी नाराजगी जाहिर की.

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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (Chhattisgarh High Court) ने 26 अगस्त को अपनी पत्नी के कथित रेप के आरोपी (Marital Rape) को ये कहते हुए बरी कर दिया कि "कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के साथ पति द्वारा यौन संबंध या कोई सेक्सुअल एक्ट रेप नहीं है, भले ही वो जबरन या उसकी इच्छा के विरुद्ध किया हो."

कोर्ट ने, हालांकि, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध) के तहत शख्स के खिलाफ लगाए गए आरोपों को बरकरार रखा.
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द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस एनके चंद्रवंशी ने IPC की धारा 375 के तहत एक अपवाद पर निर्भर होते हुए कहा "अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध या सेक्सुअल एक्ट, अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम नहीं है, तो रेप नहीं है. इस मामले में, शिकायतकर्ता आवेदक की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है, इसलिए, पति द्वारा उसके साथ यौन संबंध या कोई भी सेक्सुअल एक्ट रेप का अपराध नहीं होगा, भले ही वो जबरन या उसकी इच्छा के विरुद्ध था."

पत्नी ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया गया है कि शादी के कुछ दिनों बाद उसके साथ क्रूरता, दुर्व्यवहार किया गया और उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया. उसने ये भी आरोप लगाया है कि उसके पति ने उसके साथ अप्राकृतिक शारीरिक संबंध बनाए.

केरल हाईकोर्ट ने मैरिटल रेप को बताया था तलाक का आधार

केरल हाईकोर्ट ने 7 अगस्त को मैरिटल रेप पर अहम फैसला सुनाते हुए इसे तलाक का ठोस आधार बताया था. जस्टिस मोहम्मद मुस्ताक और कौसर एडप्पागथ की बेंच ने कहा था, "... पत्नी की स्वायत्तता की अवहेलना करने वाला पति का अवैध स्वभाव मैरिटल रेप है. हालांकि, इस तरह के आचरण को दंडित नहीं किया जा सकता है, यह शारीरिक और मानसिक क्रूरता के दायरे में आता है."

भारत में मैरिटल रेप कानूनी रूप से अपराध नहीं है और इसलिए इसके तहत सजा का प्रावधान नहीं है. फेमिनिस्ट और सोशल एक्टिविस्ट लंबे समय से इसे रेप के दायरे में लाने की मांग कर रहे हैं.

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छत्तीसगढ़ HC के फैसले की लोगों ने की आलोचना

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के इस फैसले पर कई लोगों ने ट्विटर पर अपनी नाराजगी जाहिर की. यूजर्स ने कहा कि मैरिटल रेप को अपराध बनाने कि दिशा में ये फैसला काफी पीछे ले जाता है. वहीं, कई यूजर्स ने कहा कि सेक्सुअल इंटरकोर्स में महिलाओं का कंसेंट अहम होता है और कोर्ट को इस बात को समझना चाहिए.

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