देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने सोमवार को मैरिटल रेप को लेकर एक विवादित बयान दिया है. उन्होंने कहा कि उनके ‘व्यक्तिगत विचार’ के मुताबिक भारत में मैरिटल रेप को अपराध का दर्जा दिया जाना सही नहीं है.
दीपक मिश्रा ने कहा कि मैरिटल रेप को क्रिमिनलाइज करने से परिवार में 'पूर्ण अराजकता' पैदा हो सकती है.
पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने ये बातें केएलई सोसायटी लॉ कॉलेज के एक छात्र के सवालों का जवाब देते हुए कहीं. उन्होंने कहा कि भारत में अगर पति, पत्नी को सेक्स के लिए बाध्य करता है, तो इसे किसी कानून में अपराध नहीं माना गया है.
महिला अधिकार संगठनों की दलील
भारत में पति का अपनी पत्नी से उसकी सहमति के बिना जबरन शारीरिक संबंध बनाने से जुड़ा कोई भी कानून नहीं है. महिलाओं के अधिकारों को लेकर आवाज उठाने वाले कई स्त्री अधिकार संगठन, वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में लाने की वकालत करती रही हैं. हालांकि सरकार ने पहले ही इस मामले पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है.
सरकार ने इसके लिए तर्क दिया था कि अगर मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया गया, तो विवाह नाम की संस्था टिक नहीं पाएगी और टूट जायेगी.
मैरिटल रेप पर केंद्र सरकार का पक्ष
2017 में मैरिटल रेप पर दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार ने अपना पक्ष स्पष्ट किया था. मौजूदा सरकार ने ये दलील दी थी कि मैरिटल रेप को क्रिमिनलाइज करने से इसका दुरुपयोग हो सकता है. इसके लिए सरकार ने हिंदू मैरिज एक्ट का भी हवाला दिया था, जिसके मुताबिक पति-पत्नी के बीच तय जिम्मेदारियों में सेक्स का अधिकार भी शामिल है.
कानून के मुताबिक वैवाहिक संस्था में सेक्स के लिए मना करना क्रूरता है और इस आधार पर तलाक मांगा जा सकता है.
ये पहला मौका नहीं है जब मैरिटल रेप को लेकर इस तरह के बयान सामने आये हैं. इससे पहले भी देश के कई नेताओं ने कल्चर और फैमिली वैल्यू के नाम पर वैवाहिक संस्था को स्थापित करने के लिए इसे बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया है. भारत दुनिया के करीब तीन दर्जन देशों में से एक है जहां मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है.
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