सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल, 2019 संसद के दोनों सदनों से पास हो चुका है. इस बिल पर लगातार आरोप लग रहे हैं कि यह आर्टिकल 14 का उल्लंघन करता है और संविधान की मूल भावना के खिलाफ है.
हालांकि गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है, ''किसी भी तरह से नागरिकता संशोधन बिल गैर संवैधानिक नहीं है. न ही ये आर्टिकल 14 का उल्लंघन करता है. आर्टिकल 14 में जो समानता का अधिकार है, उसके तहत रीजनेबल क्लासीफिकेशन (उचित वर्गीकरण) के आधार पर कानून बनाने से आर्टिकल 14 में कोई रोक नहीं है.''
मगर कानून के जानकार इस बिल को लेकर क्या सोचते हैं, चलिए इस पर एक नजर दौड़ाते हैं
प्रशांत भूषण
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण का कहना है, ''इस बिल में मनमाने तरीके से 3 देशों- पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान को चुन लिया गया है. तिब्बत, श्रीलंका और म्यांमार को बाहर रखने की कोई वजह नहीं बताई गई है. यह कई स्तर पर मनमाना है.''
इसके साथ ही उन्होंने कहा,
‘’यह धर्म के आधार पर भेदभाव करता है, इसलिए यह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है. धर्मनिरपेक्षता संविधान की बुनियादी भावना का हिस्सा है. इसलिए इस बिल को (कोर्ट में) चुनौती दी जाएगी, मुझे भरोसा है कि कोर्ट इसको (बिल) खारिज कर देगा.’’प्रशांत भूषण, वरिष्ठ वकील
सुब्रमण्यम स्वामी
सुब्रमण्यम स्वामी ने आर्टिकल 14 को लेकर कहा, ''कोर्ट में कई मामलों पर आर्टिकल 14 को लेकर समीक्षा हुई है. इसका एक बेहतर प्रजेंटेशन और सही मतलब एंटुले केस में सामने आया था, जब सरकार ने व्यक्ति विशेष के लिए स्पेशल कोर्ट बना दिया था. इसे (इस दलील के साथ) सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी कि यह आर्टिकल 14 का उल्लंघन है. तब 9 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था कि सिर्फ समान हकदारी वाले लोगों के लिए ही आर्टिकल 14 लागू होता है.''
उन्होंने SPG का उदाहरण देते हुए कहा, ''आज हमारे पास प्रधानमंत्री के लिए अलग से सिक्योरिटी फोर्स है. इसकी अनुमति मिली है क्योंकि प्रधानमंत्री अलग कैटिगरी में आते हैं.'' उन्होंने कहा कि आर्टिकल 14 कहता है कि आप (उचित वर्गीकरण के आधार पर) यह फर्क कर सकते हो.
स्वामी ने नागरिकता संशोधन बिल पर कहा, ''हमने यह फर्क किया है क्योंकि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में इन ग्रुप्स ( बिल में जिन 6 धर्मों का जिक्र है) के साथ गलत व्यवहार और उत्पीड़न हुआ है.'' इसके अलावा उन्होंने कहा, ''जहां तक अहमदी और शियाओं की बात है, वे ईरान जा सकते हैं, जो शिया देश है या फिर बहरीन जा सकते हैं जहां अहमदियों को मुस्लिम के तौर पर स्वीकार किया जाता है.''
संजय हेगड़े
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने कहा, ''वे (सरकार) उचित वर्गीकरण के अपने कॉन्सेप्ट पर पूरी तरह गलत हैं.''
हेगड़े ने आर्टिकल 14 के उस प्रावधान पर जोर दिया, जिसके तहत उचित वर्गीकरण के लिए वर्गीकरण के आधार और वर्गीकरण के उद्देश्य के बीच संबंध होना जरूरी होता है.
संजय हेगड़े ने कहा, ''यहां हम शरणार्थियों को धार्मिक आधार पर देख रहे हैं. अगर बिल का उद्देश्य ये है, तो धार्मिक उत्पीड़न की वजह से भागकर आने वाले सभी शरणार्थियों को मौका मिलना चाहिए.'' अगर आप शरणार्थियों को (नागरिकता) देना चाहते हैं तो आपको शरणार्थियों को केवल धर्म के आधार पर ही नहीं चुनना चाहिए.''
हरीश साल्वे
पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे ने इंडिया टुडे से बातचीत में कहा, ''मेरे हिसाब से यह (सिटिशनशिप अमेंडमेंट बिल) आर्टिकल 14 का टेस्ट पास करता है.''
इसके साथ ही उन्होंने कहा, ''अगर आप यह कहते हुए इस बिल को देखते हैं कि मैं 3 पड़ोसी देशों के ऐसे अल्पसंख्यकों को भारत में माइग्रेट करने की सुविधा दे रहा हूं, जिनका भारत के साथ एथनिक और सांस्कृतिक संबंध है और उन देशों में स्टेट रिलीजन हैं, मुझे नहीं पता कि ऐसे में अल्पसंख्यकों को जगह देना किस तरह से धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन है.''
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