उत्तर प्रदेश के हजारों मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए बसों का इंतजार खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. प्रियंका गांधी की तरफ से हजार बसें देने के प्रस्ताव को आखिरकार मंजूरी नहीं मिली, यूपी सरकार की तरफ से इसे लेकर कई तर्क दिए गए. जिसके बाद खुद प्रियंका ने सामने आकर कहा कि अगर बसों को मंजूरी मिल जाती तो अब तक 90 हजार से ज्यादा मजदूर घर पहुंच गए होते. इसी बस विवाद को लेकर ट्विटर पर भी बहस जारी है. कई नेताओं और अन्य लोगों ने इस मुद्दे पर ट्वीट किए हैं.
प्रियंका गांधी, जिन्होंने खुद 16 मई को ये बस का ऑफर दिया था. उन्होंने सोशल मीडिया पर वीडियो मैसेज के जरिए बताया कि यूपी सरकार ने किसी भी बस को आगे नहीं जाने दिया, बसें यूपी बॉर्डर पर ही खड़ी रह गईं. जिसके बाद 4 बजे बसों को वापस भेज दिया गया. उन्होंने कहा- "कितना दुखद है, दिल भारी है. सारी बसें खाली वापस जा रही हैं."
प्रोफेसर और कॉलमनिस्ट दिलीप मंडल ने भी ट्विटर पर इस मुद्दे को लेकर अपनी बात रखी. उन्होंने योगी सरकार पर आरोप लगाया कि वो जानबूझकर बसों में कमियां निकाल रही है. दिलीप मंडल ने ट्विटर पर लिखा,
“1000 बस छोडि़ए, आप RTO यानी अथॉरिटी वालों के पास एक सबसे फिट बस भेजिए, अगर वे उसमें पांच कमी न निकाल दे तो मेरा नाम बदल दीजिए. बात नीति की नहीं, नीयत की है. सवाल ये है कि 44 डिग्री टेंपरेचर में झुलस रहे इन बच्चों को घर भेजना है या नहीं?”प्रोफेसर दिलीप मंडल
मशहूर कवि इमरान प्रतापगढ़ी ने इस बस विवाद को एक कविता की ही तरह समझाया. उन्होंने यूपी सरकार की जिद को बसों के खड़े रहने की वजह बताया. ट्विटर पर लिखा, "यूपी सरकार ज़िद पर अडी रह गई, बस खडी थी खड़ी की खड़ी रह गई!"
इसके अलावा प्रतापगढ़ी ने एक और ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने लिखा-
“मजदूर साथियों! याद रखना कि तुम एक तरफ धूप में परेशान खड़े थे, दूसरी तरफ कांग्रेस की लगाई हुई बसें खडी थीं, बीच में यूपी सरकार का अहंकार था.”
वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी ने भी इस बस विवाद पर ट्वीट किया. उन्होंने सिर्फ एक लाइन में लिखा - "राफेल का बदला बस से...."
वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम ने भी ट्विटर पर बसों पर चल रहे इस संग्राम को लेकर अपनी राय रखी. उन्होंने कहा कि क्यों आखिर इतना बवाल किया जा रहा है, अगर चाहें तो बसों की जांच सीबीआई से करवा लें. उन्होंने लिखा,
"सदी के सबसे बड़ा घोटाला और सदी की सबसे बड़ी जांच. अब बसों की जांच का ये मामला CBI और NIA को संयुक्त रूप से सौंप देना चाहिए. गजब खेल चल रहा है. अरे भाई किसी ने बस ऑफर की आपदा की घड़ी है. मजदूर मर रहे हैं, जितनी बसें ठीक हैं ले लीजिए. इतना बवाल करके मजदूर को क्या दे रहे हैं."
कांग्रेस के ही प्रवक्ता राजीव त्यागी ने भी बसों के इस विवाद पर ट्वीट किया है. उन्होंने लिखा, "मजदूर हारते नहीं मजदूर हारा नहीं करते, योगी जी आप बस चलाओ या मत चलाओ. मजदूर मजबूर नहीं है राष्ट्र सृजन करता है और अत्याचारीयों का विध्वंस करता है."
वहीं कांग्रेस की बागी विधायक अदिति सिंह ने भी मौका देखते हुए अपनी ही पार्टी को जमकर घेरा. रायबरेली से कांग्रेस की बागी विधायक ने ट्विटर पर बसों को एक फर्जीवाड़ा करार दिया. उन्होंने ट्विटर पर लिखा,
“आपदा के वक्त ऐसी निम्न सियासत की क्या जरूरत, एक हजार बसों की सूची भेजी, उसमें भी आधी से ज्यादा बसों का फर्जीवाड़ा, 297 कबाड़ बसें, 98 आटो रिक्शा व एबुंलेंस जैसी गाड़ियां, 68 वाहन बिना कागजात के, ये कैसा क्रूर मजाक है. अगर बसें थीं तो राजस्थान,पंजाब, महाराष्ट्र में क्यूं नहीं लगाई.”अदिति सिंह, कांग्रेस विधायक
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने भी बस विवाद पर बयान दिया. उन्होंने कहा, "यदि वह (प्रियंका गांधी) वास्तव में यूपी सरकार के ऊपर ध्यान केंद्रित कर रही हैं तो उन्हें देखना चाहिए कि यूपी में 300 ट्रेनें पहुंचीं जबकि छत्तीसगढ़ में 5-7 भी नहीं आईं. मैं इसका राजनीतिकरण नहीं करना चाहती क्योंकि सभी प्रवासी मजदूर भारतीय हैं. इस स्थिति में हम सबको एक साथ काम करना चाहिए."
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