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मजिस्ट्रियल पावर का गलत इस्तेमाल कर रही यूपी की कमिश्नरेट पुलिस?

ADJ सुनील प्रसाद ने 31 मई को एक पत्र गाजियाबाद पुलिस कमिश्नर अजय कुमार मिश्र को भेजा है.

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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के गाजियाबाद के एक जज ने पुलिस कमिश्नर को लिखे पत्र में CrPc की धारा 107, 116 और 151 जैसी हल्की और निरोधात्मक धाराओं में बंद कैदियों की तरफ ध्यान आकर्षित किया है. ADJ सुनील प्रसाद ने आरोप लगाया है कि जेल में बंद बंदियों से बातचीत के दौरान पता लगा कि कार्यपालक मैजिस्ट्रेट न्यायालय में कोई सुनवाई नहीं है और एक तरफा फैसला दे दिया जाता है.

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ADJ ने कहा कि बंदियों द्वारा यह भी बताया गया कि कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा अत्यधिक जमानत राशि तय कर दी जाती है, जिसको देने में वह सक्षम नहीं है.

48% मामूली धाराओं में बंद

डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी के सचिव अपर जिला जज (ADJ) सुनील प्रसाद ने 31 मई को एक पत्र गाजियाबाद पुलिस कमिश्नर अजय कुमार मिश्र को भेजा है. न्यायाधीश ने इस पत्र में बताया है कि जिले की डासना जेल में 1 मई से 29 मई 2023 तक 535 बंदी, धारा-107, 116 और 151 CrPc के तहत बंद हुए हैं. जबकि मई 2022 में इन धाराओं में सिर्फ 8 बंदी जेल में बंद हुए थे. उन 535 बंदियों के अलावा अन्य अपराध में 562 बंदी जेल में बंद चल रहे हैं. यानि करीब 48 फीसदी बंदी वे हैं, जो बेहद मामूली धाराओं में जेल की सलाखों के पीछे पहुंचे हैं.

यूपी के सात जिलों में कमिश्नरेट सिस्टम लागू

नवंबर 2022 में उत्तर प्रदेश सरकार ने गाजियाबाद, आगरा और प्रयागराज में पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली के लागू करने के आदेश दे दिए थे. उत्तर प्रदेश में अभी 7 ऐसे जिले हैं, जहां यह व्यवस्था लागू है. यह व्यवस्था लागू होने के बाद जिन लोगों का हल्की धाराओं में चालान होने के बाद सब डिविजनल मजिस्ट्रेट के न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता था, उन्हें अब असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस (डीएसपी रैंक का अधिकारी) न्यायालय में भेजा जाता है.

उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहां पर पुलिसिया अत्याचार को लेकर रोज घटनाएं आती हैं, वहां कमिश्नरेट के गठन और पुलिस को मिलने वाले मजिस्टेरियल पावर को लेकर कई वर्गों में आलोचना भी हुई थी. लेकिन सरकार ने एक के बाद एक 7 जिलों में कमिश्नरेट प्रणाली का गठन कर दिया है.

हल्की धाराओं में जेल, अत्यधिक जमानत राशि

न्यायाधीश सुनील प्रसाद ने बताया कि उन्होंने जेल में जाकर बंदियों से बातचीत की. बंदियों ने बताया कि कार्यपालक मजिस्ट्रेट कोर्ट में कोई सुनवाई नहीं होती. एक तरफा आदेश जारी कर दिया जाता है. जबकि नियम है कि पक्षकार को सुनवाई का पर्याप्त अवसर दिया जाए.

कुछ बंदियों ने न्यायाधीश को ये भी बताया है कि कार्यपालक मजिस्ट्रेट के द्वारा अत्याधिक राशि निर्धारित कर दी जाती है, जिसे देने में वे सक्षम नहीं हैं. इस वजह से भी बंदियों को जमानत मिलने में देरी हो रही है.

'जमानत में नरमी बरतें'

न्यायाधीश ने पुलिस कमिश्नर को सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग याद दिलाते हुए कहा है कि वे जमानत में इसका पालन करें और जमानत राशि निर्धारित करते वक्त बंदी की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को भी देखें. युक्ति युक्त मामलों में जमानत दाखिल करने का समय दें. जमानती के सत्यापन के लिए समय दें. जमानत की शर्तों में नरमी भी बरतें.

न्यायाधीश ने पुलिस कमिश्नर को ये बात भी याद दिलाई है कि धारा-107, 116 और 151 CRPC की कार्रवाई निरोधात्मक है, न कि दंडात्मक.
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वकीलों ने जताया था विरोध

पिछले दिनों गाजियाबाद कोर्ट के चार हजार वकील इसे लेकर हड़ताल पर भी रहे थे. उनका कहना था कि जब से गाजियाबाद पुलिस कमिश्नरेट बना है, तब से पुलिस न्यायालयों ने जमानत देनी बंद कर दी है.

CRPC 151 (शांतिभंग) जैसे मामूली अपराध में भी लोगों को 14-14 दिन के लिए जेल भेजा जा रहा है. जबकि इससे पहले सिविल अदालतों में ऐसे लोगों को पेशी के वक्त ही हाथोंहाथ जमानत मिल जाती थी.

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