NEET और JEE की परीक्षाओं को टालने की मांग के लिए छात्र-अभिभावकों ने सोशल मीडिया को हथियार बनाया है. करीब-करीब हर रोज इन परीक्षाओं को टालने से जुड़े हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं और इन्हें बड़े पैमाने पर नेताओं का भी समर्थन मिल रहा है. अब स्वीडन की क्लाइमेट चेंज एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने भी इन छात्रों के साथ खड़े होने की बात कही है. ग्रेटा ने अपने ट्वीट में लिखा है-
ये बिलकुल सही नहीं है कि कोरोना वायरस महामारी के दौर में भारत के छात्रों को एक नेशनल एग्जाम में बैठने के लिए कहा जाता है. और यहां लाखों लोग भीषण बाढ़ से भी प्रभावित हैं, मैं JEE-NEET परीक्षाओं को टालने में इनके समर्थन में खड़ी हूं.
कौन हैं ग्रेटा थनबर्ग?
साल 2019 की TIME's पर्सन ऑफ दी ईयर ग्रेटा थनबर्ग तब सुर्खियों में आई थीं जब पिछले साल सितंबर में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की क्लाइमेट एक्शन समिट में नेताओं पर अपनी पीढ़ी के साथ विश्वासघात करने का आरोप लगाया था. ग्रेटा ने नेताओं से कहा, ‘आपने अपनी खोखली बातों से मेरे सपने और बचपन छीन लिए, फिर भी मैं खुशकिस्मत लोगों में शामिल हूं. लोग त्रस्त हैं, लोग मर रहे हैं, पूरा पर्यावरण तबाह हो रहा है.’
राहुल, ममता, स्वामी ने की है परीक्षा टालने की मांग
नीट, जेईई 2020 परीक्षाओं को स्थगित करने की मांग करते हुए ममता बनर्जी पीएम मोदी को चिट्ठी लिख चुकी हैं, उन्होंने लिखा ता कि इससे लाखों छात्रों के जीवन को खतरा हो सकता है. इससे पहले राहुल गांधी ने भी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार से छात्रों के 'मन की बात' पर विचार करने और प्रवेश परीक्षाओं को स्थगित करने के मुद्दे को हल करने का आग्रह किया था. बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी भी प्रधानमंत्री को खत लिखकर NEET और JEE परीक्षाओं की तारीख आगे बढ़वाने की मांग कर चुके हैं.
इस पूरे मामले में, परीक्षाएं करवाने और स्कूल खोलने को लेकर कुछ बुनियादी सवालों के जवाब जानना जरूरी है. जैसे:
- कहा जा रहा है कि स्कूलरूम में तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो जाएगा. लेकिन सवाल उठता है कि स्कूल तक बच्चों के सुरक्षित पहुंचने की जवाबदेही कौन तय करेगा. स्कूल तक पहुंचने के लिए बहुत सारे बच्चों को ट्रांसपोर्ट का सहारा लेना पड़ेगा. ऐसी स्थिति में खतरा ज्यादा बढ़ जाएगा.
- भारत में कोरोना के कुल मामले 29 लाख का आंकड़ा पार कर चुके हैं, यह स्थिति भी तब है, जब हमारे देश में कड़ाई से लॉकडाउन लागू किया गया था. ऐसे में स्कूल बड़े मीटिंग कॉम्प्लेक्स के तौर पर बन सकते हैं, जहां कोरोना का खतरा किसी भी दूसरी जगह से ज्यादा होगा.
- यह तो हुई स्कूल की बात, लेकिन ऑनलाइन भी परीक्षा करवाना सही फैसला नजर नहीं आता. देश के बड़े हिस्सों में नेटवर्क की समस्या है, बहुत बड़ी आबादी के पास ऑनलाइन पेपर देने में इस्तेमाल होने वाले संसाधन (लैपटॉप, स्कैनर, तेज स्पीड इंटरनेट) तक पहुंच नहीं है.
- हाल में दिल्ली यूनिवर्सिटी में ओपन बुक एग्जाम करवाए गए, जिनमें हाथ से पेपर लिखकर, एक घंटे के भीतर स्कैन करने का विकल्प दिया गया था. कई लोगों ने शिकायत में कहा कि इतने कम वक्त में निजी स्कैनर न होने के चलते 20-25 पेज अपलोड करने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है. अपलोड को लेकर भी लोगों को दिक्कतें हुईं.
- ऑनलाइन परीक्षाएं करवाने में लेवल प्लेइंग फील्ड का ना होना भी कुछ छात्रों का दिक्कत भरा हो सकता है. जिन छात्रों को इंटरनेट तक पहुंच नहीं है, इस बात की संभावना कम है कि उन्होंने अपने सिलेबस का बहुत बेहतर ढंग से अध्ययन किया होगा.
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