यूपी (Uttar Pradesh) के चुनावी मुकाबले में उतरे दो बड़े पुलिस अफसरों ने कामयाबी हासिल कर राज्य में BJP की विजयी 255 उम्मीदवारों में अपनी जगह बनाई है. पूर्व IPS अधिकारी और कानपुर (Kanpur) पुलिस कमिश्नर असीम अरुण (Asim Arun) इसी साल नौकरी से VRS लेकर विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही बीजेपी (BJP) में शामिल हुए.
पूर्व प्रांतीय पुलिस अधिकारी और प्रवर्तन निदेशालय के ज्वाइंट डायरेक्टर राजेश्वर सिंह, भी नौकरी से इस्तीफा देकर इसी साल बीजेपी से जुड़े. वो लखनऊ के सरोजनी नगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़े, जहां से पहले बीजेपी की स्वाति सिंह लड़ती थीं.
ये पहली बार नहीं है जब एक अफसर या सरकारी अधिकारी ने नौकरी छोड़कर राजनीति का रुख किया. लेकिन सभी कामयाब नहीं हुए. यूपी पुलिस में एक वरिष्ठ अधिकारी दावा शेरपा, VRS लेकर राजनीति में उतरे. दार्जिलिंग गए और चुनाव लड़े पर नाकाम रहे. वो फिर से साल 2012 में DIG के तौर पर पुलिस में बहाल हो गए. बाद में उनका प्रमोशन इंस्पेक्टर जनरल और एडिशनल डायरेक्टर जनरल के तौर पर हुआ.
एस आर दारापुरी , 1972 बैच के IPS अफसर ने साल 2003 में नौकरी को बायबाय कहकर राजनीति में एंट्री की. उन्होंने साल 2014 और 2019 में रॉबर्ट्सगंज से लोकसभा चुनाव ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) के उम्मीदवार के तौर पर लड़े लेकिन जीत नहीं मिली. हालांकि असीम अरुण और राजेश्वर सिंह ने अपनी जीत हासिल कर ये पक्का कर लिया कि वो शेरपा और दारापुरी की कतार में नहीं हैं.
असीम अरुण-
कन्नौज सदर से पूर्व IPS अधिकारी असीम अरुण को चुनाव लड़ाने का बीजेपी का दांव कामयाब हुआ क्योंकि उन्होंने यहां से 3 बार के SP विधायक प्रत्याशी अरुण दोहारे को हराया. इस सीट पर दलितों और ब्राह्मणों का साल 2007 से कब्जा रहा है. अपनी पहली चुनावी जंग में यूपी के पूर्व डीजीपी श्रीराम अरुण के बेटे अरुण ने SP उम्मीदवार को 6090 वोटों के अंतर से हराया.
इत्र राजधानी के तौर पर मशहूर कन्नौज समाजवादी पार्टी का गढ़ रहा है. मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल यादव यहां से लोकसभा चुनाव जीतती रही हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए यहां से बाजी पलटना आसान नहीं था.
इत्र व्यापारियों के यहां छापे और समाजवादी पार्टी से उनके तार को लेकर बीजेपी ने पहले ही अपने पक्ष में हवा बना ली थी, पूर्व IPS अधिकारी को अपना उम्मीदवार बनाकर बीजेपी ने इस इलाके में कानून-व्यवस्था को मुद्दा बनाया और एक साफ सुथरी राजनीति का चुनावी कैंपेन तैयार किया. वोटबैंक मजबूत करने के लिए इलाके में प्रधानमंत्री मोदी ने की रैली भी की.
राजेश्वर सिंह
ED के पूर्व संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह भी चुनाव से बमुश्किल महीने भर पहले बीजेपी में शामिल हुए, बावजूद इसके उन्होंने पार्टी के उन नेताओं को निराश नहीं किया जिन्होंने राजेश्वर सिंह पर भरोसा किया. उन्होंने SP उम्मीदवार अभिषेक मिश्रा को 56,186 वोटों के भारी अंतर से हराया.
राजेश्वर सिंह को किस सीट से टिकट मिलेगा, इसको लेकर कई सीटों पर अटकलें गर्म थीं, लेकिन आखिर में उन्हें लखनऊ की सरोजनीनगर सीट से उम्मीदवार बनाया गया.
पार्टी इनसाइडरों की मानें तो पहले उन्हें उनके मूल निवास स्थान सुल्तानपुर से टिकट दिए जाने की चर्चा थी लेकिन बाद में लखनऊ की हॉट सीट सरोजनीनगर मिली, जिस पर कई कद्दावर बीजेपी नेता जैसे पूर्व मंत्री स्वाति सिंह और उनके पति दयाशंकर सिंह का दावा था.
राजेश्वर सिंह के लिए यहां मुकाबला आसान नहीं था. उनके पास चुनावी कैंपेन के लिए सीमित समय था, पार्टी में अंदरुनी कलह थी और जातीय समीकरण भी अनुकूल नहीं और राजनीति में आउटसाइडर होने का टैग भी लगा था.
चुनौतियां तब और बढ़ गईं जब विपक्ष ने उनकी पत्नी लक्ष्मी सिंह की लखनऊ रेंज IG पद पर तैनाती का मसला उठाया.
फिर भी राजेश्वर सिंह जल्द से जल्द पूरे निर्वाचन क्षेत्र में प्रचार करने निकल गए ताकि जितनी जल्दी संभव हो सके वो इलाके को जान समझ लें.
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