भारत और चीन के जवानों के बीच गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद देशभर में तनाव है. इस मामले को लेकर हर कोई कुछ न कुछ कह रहा है, कोई शहीद हुए 20 जवानों का बदला लेने की बात कर रहा है तो कोई सरकार को अपना रुख साफ करने की सलाह दे रहा है. लेकिन राजनीतिक बयानबाजी से अलग इस बड़े विवाद को लेकर एक्सपर्ट्स क्या कह रहे हैं और उनका पूरे मामले को लेकर क्या रुख है? जानिए कुछ बड़े एक्सपर्ट्स की राय.
मशहूर लेखक, विचारक और प्रोफेसर अमिताभ मट्टू ने भारत और चीन के बीच पैदा हुए इस विवाद को लेकर ट्वीट किया है. उन्होंने लिखा,
"हम सभी को हमारे लिए 21वीं सदी की सबसे बड़ी चुनौती और खतरे का मुकाबला करने के लिए एक विशाल राष्ट्रीय स्तर की तैयारी करनी चाहिए. साल 1962 की लड़ाई के दौरान मेरी दो दादियों ने अपनी शादी के गहने लड़ाई के लिए इस्तेमाल होने वाले फंड में दे दिए. क्या न्यू इंडिया इसके लिए तैयार है?"
रणनीतिक विचारक और लेखक ब्रह्म चेलानी ने भी चीन और भारत के बीच इस विवाद को लेकर अपने विचार रखे. उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि,
“जैसा कि गलवान घाटी और इसके आसपास की ऊंचाइयां एलएसी की तरफ थीं और इनमें चीन की तरफ से 1962 की लड़ाई के बाद से कोई भी घुसपैठ नहीं हुई थी. भारत ने एक बड़ी गलती कर दी कि उन चोटियों को नजरअंदाज कर छोड़ दिया. जिससे भारत के डिफेंस और फॉर्वर्ड बेस को जाने वाले नए हाईवे पर नजर रखी जा सकती है.”ब्रह्म चेलानी, णनीतिक विचारक और लेखक
पूर्व नौसेना प्रमुख रहे अरुण प्रकाश ने भी ट्विटर पर भारत और चीन के सीमा विवाद को लेकर अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि, "पीएलए का ये विश्वासघात, आश्चर्य और बर्बरता सुन च्यू की प्ले बुक से आए हैं. जैसा कि राजनेता जवाब देने के लिए अंधेरे में कुछ न कुछ टटोलते रहते हैं, हमें जरूरत है कि सबसे खराब स्थिति से निपटने के लिए योजना बनाएं और तैयारी करें. जवानों को ऐसी झड़प को लेकर क्लियर कट निर्देश दिए जाने चाहिए और अगर रेड लाइन क्रॉस होती है तो एक्शन लेने की भी छूट होनी चाहिए."
भारतीय सेना के पूर्व प्रमुख जनरल वेद प्रकाश मलिक की तरफ से भी चीन की सीमा पर हुई इस हिंसक झड़प को लेकर ट्वीट आया. उन्होंने कहा, "अनुकरणीय कर्तव्य और प्रतिबद्धता, कर्नल संतोष बाबू पीएलए की तरफ से दिए गए डिसइंगेजमेंट के भरोसे से चले गए. उनका काम था कि वो गलवान घाटी में किसी भी तरह के सीमा उल्लंघन को रोकें. जब वो पेट्रोलिंग पार्टी को लीड कर रहे थे तब घात लगाकर उन्हें मार दिया गया. बहादुर को सलाम, परिवार के प्रति संवेदना."
चीन में भारत के पूर्व एंबेसडर गौतम बंबावले ने भी इस मुद्दे को लेकर काफी विस्तार से अपनी बात रखी. मई की शुरुआत में ही चीन की पीएलए (पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी) ने एलएसी पर अपनी ग्राउंड पोजिशन को बढ़ाना शुरू कर दिया था. लेकिन हम उनसे सहमत नहीं थे, इसीलिए मई में भारतीय सैनिकों ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया.
कई हफ्तों से ये तनातनी चल रही थी. जब दोनों देशों की सेनाओं के जवान आमने-सामने होते थे. ऐसे में हमेशा इस बात के चांस रहते हैं कि कुछ गलत हो जाए या फिर मामला और ज्यादा बढ़े. 15 और 16 जून की रात को यही हुआ.
बंबावले ने कहा कि ये काफी गंभीर हालात हैं, क्योंकि 35-40 सालों में पहली बार ऐसा हुआ है जब दोनों तरफ से सैनिकों की जान गई है. भारत को चीन के प्रति अपनी नीति पर दोबारा विचार करना होगा और हमें अपनी एक पहले से तैयार नीति, विदेश नीति और रक्षा नीति को किसी भी हाल में चीन को लेकर लागू करना होगा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)