ADVERTISEMENTREMOVE AD

केरल राज्यपाल ने क्यों 9 VC को इस्तीफे का आदेश दिया, क्यों छिड़ा सरकार से युद्ध?

Governor को क्या किसी राज्य के मंत्रियों को हटाने का हक है?

Published
भारत
7 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान (Kerala Governor Arif Mohammad Khan) और पिनाराई विजयन (Pinarayi Vijayan) के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के बीच तनातनी ने 23 अक्टूबर को एक नाटकीय मोड़ ले लिया. राज्यपाल ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के 21 अक्टूबर के फैसले का हवाला देते हुए केरल के नौ विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर्स (VC) को निर्देश दिया कि वे अपना इस्तीफा दे दें. राजभवन ने एक बयान में कहा, "केरल के नौ विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर्स को 24 अक्टूबर 2022 को सुबह 11.30 बजे तक अपना इस्तीफा देने का निर्देश पत्र जारी किया गया है."

ADVERTISEMENTREMOVE AD

हालांकि 24 अक्टूबर को वाइस चांसलर्स ने इस आदेश को चुनौती देने के लिए केरल हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और हाई कोर्ट ने अब यह फैसला दिया है कि वे अपने पदों पर बने रहेंगे. लेकिन ये विवाद कब और क्यों शुरू हुआ?

राज्यपाल का यह आदेश राज्य सरकार और उनके बीच के विवादों की हालिया कड़ी है, खासकर केरल विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर्स की नियुक्ति को लेकर. राज्य विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर्स की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं. इसके लिए राज्य सरकार कुछ नामों की सूची देती है, और उनमें से एक उम्मीदवार का चुनाव किया जाता है. लेकिन अगर राज्य सरकार और राज्यपाल एक जैसी सोच वाले नहीं तो यह प्रक्रिया बहुत लंबी होती है और विवादों की पूरी गुंजाइश रहती है. जैसा कि केरल के मामले में देखने को मिल रहा है.

वैसे वाइस चांसलर्स की नियुक्ति पर विवाद के अलावा लगभग एक सप्ताह पहले यानी 17 अक्टूबर को राज्यपाल ने कहा था कि कैबिनेट मंत्री जिनके बयान "राज्यपाल के पद की गरिमा को कम करते हैं, कार्रवाई को आमंत्रित कर सकते हैं जिसमें विदड्रॉअल ऑफ प्लेजर शामिल है. प्लेजर से मतलब यहां अनुकंपा, यानी प्रसाद से है. (संविधान का अनुच्छेद 164 कहता है कि मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर करेगा तथा मंत्री, राज्यपाल के प्रसादपर्यंत अपने पद धारण करेंगे)." कथित तौर पर यह धमकी केरल की उच्च शिक्षा मंत्री आर बिंदू की टिप्पणी के जवाब में थी. आर बिंदु ने कहा था कि राज्यपाल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के एजेंडा के अनुसार काम कर रहे हैं.

अक्टूबर में एक बार फिर राज्यपाल और वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (LDF) सरकार एक-दूसरे से गुत्थम गुत्था क्यों हो रहे हैं? क्या यह नया गतिरोध वैचारिक है? और राज्य सरकार ने क्या जवाब दिया है? क्विंट इनके बारे में बता रहा है.
0

'यूजीसी के नियमों का उल्लंघन': राज्यपाल ने वाइस चांसलर्स को इस्तीफा देने को कहा

राज्यपाल ने वाइस चांसलर्स के इस्तीफों का आदेश क्यों दिया?

राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान केरल के विश्वविद्यालयों के चांसलर हैं. 21 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने तिरुअनंतपुरम के एपीजे अब्दुल कलाम टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (KTU) की वीसी एमएस राजश्री की नियुक्ति को अमान्य करार दिया जिसके बाद राज्यपाल ने 23 अक्टूबर को केरल के नौ विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर्स के इस्तीफे का आदेश जारी कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि सर्च कमिटी जिसने एमएस राजश्री के नाम का सुझाव दिया था, वह "विधिवत गठित नहीं की गई थी " और इसीलिए उनकी नियुक्ति "गैरकानूनी थी."

अन्य विश्वविद्यालयों में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करते हुए राज्यपाल ने दावा किया कि कई वाइस चांसलर्स की नियुक्तियों में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के मानदंडों का उल्लंघन किया गया था. उन्होंने कहा कि वाइस चांसलर्स के नामों का सुझाव देने वाली सर्च कमिटीज़ ने उनके सामने तीन से पांच उम्मीदवारों के नामों का पैनल पेश नहीं किया. इसके बजाय मनमाने ढंग से एक ही नाम का प्रस्ताव रखा.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या वाइस चांसलर्स ने आदेश का पालन किया?

वाइस चांसलर्स को इस्तीफा देने के लिए 24 अक्टूबर को दोपहर 11.30 बजे तक का समय दिया गया था. इन वाइस चांसलर्स ने राज्यपाल के आदेश को चुनौती देने के लिए केरल हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. इनमें से किसी ने भी अब तक अपना इस्तीफा नहीं दिया है. अदालत ने 24 अक्टूबर को शाम चार बजे मामले की सुनवाई की और फैसला सुनाया कि वाइस चांसलर्स अपने पद पर बने रहेंगे.

इससे पहले 23 अक्टूबर को कन्नूर विश्वविद्यालय के वीसी गोपीनाथ रविंद्रन ने मीडिया से कहा था कि वह इस्तीफा नहीं देंगे. डॉ रवींद्रन ने कहा,

"मुझे शाम को चिट्ठी मिली. उन्होंने मुझे सोमवार को सुबह 11.30 बजे तक इस्तीफा देने के लिए कहा है. लेकिन अब मैं इस्तीफा नहीं दे रहा हूं. अगर मुझे हटाने का फैसला किया है तो मुझे निकाल दो. मैं इस्तीफा नहीं दूंगा,". उन्होंने आगे कहा कि किसी अन्य राज्य के राज्यपाल ने इस तरह से वाइस चांसलर्स के इस्तीफे की मांग नहीं की है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

एलडीएफ सरकार ने क्या जवाब दिया?

मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने 24 अक्टूबर को कहा कि राज्यपाल अपने चांसलर पद का दुरुपयोग उन शक्तियों के लिए कर रहे हैं जो उनके पास नहीं हैं. सीएम ने एक प्रेस बयान में कहा, "(आदेश) अलोकतांत्रिक है और वाइस चांसलर्स के अधिकारों का अतिक्रमण करता है. राज्यपाल का पद सरकार के खिलाफ नहीं बल्कि संविधान की गरिमा को बनाए रखने के लिए है. वह आरएसएस के हथियार के रूप में काम कर रहे हैं."

"राज्यपाल के पास सभी नौ विश्वविद्यालयों में वीसी नियुक्त करने की शक्ति है. अगर यह दावा किया जाता है कि वीसी की नियुक्ति यूजीसी के नियमों के खिलाफ है तो क्या इसके लिए राज्यपाल जिम्मेदार नहीं हैं?"
पिनाराई विजयन, केरल के मुख्यमंत्री

एलडीएफ सरकार ने भी वाइस चांसलर्स को निर्देश जारी किया और कहा कि वे इस्तीफा न दें और राज्यपाल के आदेश की अनदेखी करें. रिपोर्ट्स से संकेत मिलता है कि सरकार आदेश को रद्द करने के लिए कानूनी रास्ता अपना सकती है.

23 अक्टूबर के आदेश के कुछ ही दिन पहले एलडीएफ ने राज्यपाल के खिलाफ सामूहिक प्रदर्शनों की घोषणा की थी. उन पर आरोप लगाया था कि वह केरल के उच्च शिक्षा क्षेत्र में हिंदू बहुसंख्यक एजेंडा थोपने की कोशिश कर रहे हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सरकार राज्यपाल को आरएसएस से क्यों जोड़ रही है?

राज्यपालों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति का विशेषाधिकार है, लेकिन इनमें से ज्यादातर नियुक्तियों की सिफारिश सत्ताधारी दल किया करता है. चूंकि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) केंद्र में सत्ता में है, इसीलिए आरिफ मोहम्मद खान की नियुक्ति गौरतलब रही जहां सीपीआई (एम) और सीपीआई की अगुवाई वाला वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सत्ता में है.

चूंकि राज्यपाल शासन से संबंधित मामलों पर सरकार से सवाल कर रहे हैं- जो कि विधायिका का कार्य है- उन पर केरल में बीजेपी के राजनीतिक हितों के लिए काम करने का आरोप लगाया गया है. राज्य में बीजेपी एक उभरती हुई राजनीतिक शक्ति है, इसके बावजूद कि कांग्रेस और सीपीआई (एम)  अपनी जमीन संभाले हुए हैं.

इसीलिए राज्यपाल पर यह आरोप लगाया गया है कि वह आरएसएस की तरफ से खेल रहे हैं जोकि बीजेपी का पेरेंट आउटफिट है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

राज्यपाल ने मंत्रियों को धमकाया- अनुकंपा वापस ली जा सकती है

राज्यपाल ने मंत्रियों को बर्खास्त करने की धमकी क्यों दी?

17 अक्टूबर को राज्यपाल ने कहा, “मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद के पास राज्यपाल को सलाह देने का हर अधिकार होता है. लेकिन व्यक्तिगत मंत्रियों के बयान, जो ”राज्यपाल के पद की गरिमा को कम करते हैं, कार्रवाई को आमंत्रित कर सकते हैं जिसमें विदड्रॉअल ऑफ प्लेजर शामिल है.”

"संवैधानिक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए हर कोई कर्तव्यबद्ध है. अगर बिल में खामियां हैं तो राज्यपाल इसे वापस भेज सकते थे. लेकिन वह ऐसा भी नहीं कर रहे हैं. हम यहां राज्यपाल के साथ लड़ने के लिए नहीं हैं. हम सम्मानजनक तरीके से व्यवहार करना पसंद करते हैं."
आर बिंदु, उच्च शिक्षा मंत्री

उन्होंने यह धमकी तब दी, जब उच्च शिक्षा मंत्री आर बिंदु ने कहा कि “महत्वपूर्ण बिल्स में देरी हो रही है क्योंकि वे राज्यपाल के दफ्तर में बेकार पड़े हुए हैं.” वह मुख्य रूप से विश्वविद्यालय कानून संशोधन बिल की तरफ इशारा कर रही थीं जिस पर राज्यपाल ने दस्तखत करने से इनकार दिया है. इस बिल पर वह सार्वजनिक रूप से विरोध भी जता चुके हैं.  

उन्होंने आगे कहा कि राज्यपाल राज्य के उच्च शिक्षा क्षेत्र में रुकावटें पैदा करने के लिए आरएसएस के एजेंडा के अनुसार काम कर रहे हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

“विदड्रॉअल ऑफ प्लेजर” क्या है”

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164 के अनुसार, मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाएगी और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर करेंगे तथा मंत्री, राज्यपाल के प्रसादपर्यंत अपने पद धारण करेंगे. यही अनुकंपा, यानी प्रसाद, यानी ‘प्लेजर’ के बारे में राज्यपाल ने दावा किया था कि वह तकनीकी रूप से ‘वापस ले सकते हैं.’

दूसरे शब्दों में आरिफ मोहम्मद ने यह संकेत दिया था कि वह कैबिनेट मंत्रियों को उनके पदों से हटा सकते हैं, अगर वे ऐसा करना चाहें.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

लेकिन क्या राज्यपाल मंत्रियो को हटा सकते हैं?

लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचारी ने 17 अक्टूबर को कहा था कि राज्यपाल किसी एक मंत्री को राज्य कैबिनेट से नहीं हटा सकता, जब तक कि मुख्यमंत्री इसकी सिफारिश न करें.

उन्होंने कहा था, “प्लेजर का मतलब यह नहीं कि राज्यपाल अपने आप किसी मंत्री को हटा या नियुक्त कर सकते हैं. इसके लिए मुख्यमंत्री राज्यपाल को सलाह देंगे. प्लेजर सिर्फ एक तकनीकी शब्द है और इसका मतलब यह नहीं कि वह मुख्यमंत्री की अनुमति के बिना किसी मंत्री को हटा सकते हैं.”

इसके अतिरिक्त सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट मुकुंद पी उन्नी ने अपने ट्वीट में कहा था कि अनुच्छेद 164(1) में वर्णित "प्लेजर" (हिंदी में प्रसादपर्यंत) सदन का विश्वास है. उन्होंने लिखा, "राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियां बहुत संकीर्ण हैं और उसके पास किसी मंत्री को सिर्फ इसलिए बर्खास्त करने की शक्ति नहीं है क्योंकि उसे राज्यपाल का प्लेजर (यानी प्रसाद) नहीं मिला है."

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सीपीआई (एम) ने क्या जवाब दिया?

राज्यपाल के बयान को “असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक” कहते हुए कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) ने कहा कि वह राज्यपाल की धमकी के खिलाफ एक अभियान शुरू करेगी और यहां तक कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से दखल देने की भी अपील करेगी.

इस बीच सीपीआई (एम) के राज्यसभा सदस्य जॉन ब्रिटास ने एक ट्वीट में कहा कि राज्यपाल अपनी शक्तियों को लेकर भ्रम में हैं.

ब्रिटास ने ट्वीट किया है, "लॉर्ड माउंटबेटन भारत के अंतिम वायसराय थे! लेकिन ऐसा लगता है कि केरल के राज्यपाल अपनी स्थिति और शक्तियों को लेकर भ्रम में हैं. वह पूरी तरह से कोशिश कर रहे हैं कि संविधान और संघवाद के चिथड़े उड़ जाएं."

ADVERTISEMENTREMOVE AD

वीसी से लेकर विश्वविद्यालय कानून संशोधन बिल तक: विवाद की जड़ कहां है?

राज्यपाल आरिफ मोहम्मद और केरल सरकार महीनों से एक-दूसरे से भिड़ी हुई है. इन दोनों के बीच खटास की वजह है, राज्य में उच्च शिक्षण संस्थानों पर नियंत्रण का मामला.

यह विवाद दिसंबर 2021 में शुरू हुआ था, जब राज्यपाल को कन्नूर विश्वविद्यालय के वीसी के रूप में गोपीनाथ रविंद्रन की पुनर्नियुक्ति में खामियां नजर आईं. यूं इससे पहले भी राज्यपाल ढेरों मसलों पर राज्य सरकार से असहमति जता चुके हैं. नए मामले में राज्यपाल ने रविंद्रन पर आरोप लगाया कि उन्हें यह पद अपने ‘राजनैतिक संबंधों’ के कारण दिया गया. उन्होंने 2019 में कन्नूर विश्वविद्यालय के एक धरना प्रदर्शन की भी याद दिलाई जो राज्यपाल के खिलाफ किया गया था. इसके लिए भी उन्होंने रविंद्रन को दोषी ठहराया.

इसके बाद से राज्यपाल राज्य सरकार के कई कदमों का विरोध कर रहे हैं, खासकर राज्य के विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर्स की नियुक्ति के संबंध में. उन्होंने विश्वविद्यालय कानून संशोधन बिल का भी कड़ा विरोध किया है जिसे इस साल सितंबर में राज्य विधानसभा ने पारित किया गया था. राज्यपाल का कहना है कि यह मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों के "अयोग्य संबंधियों" की नियुक्ति सुनिश्चित करेगा.

बिल का उद्देश्य वीसी की नियुक्ति के लिए सर्च-कम-सिलेक्शन कमिटी की संरचना को बदलना है जिससे राज्य सरकार को इस प्रक्रिया में अधिक लाभ मिल सके.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×