ADVERTISEMENTREMOVE AD

भूख से बेहाल प्रवासी मजदूर,कोई पैदल तो कोई साइकिल से निकल पड़ा घर 

मजदूरों की घर वापसी के लिए केंद्र सरकार जो भी दावा करें, लेकिन प्रवासी मजदूर अब भी पैदल आने-जाने को मजबूर हैं.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

कोरोना वायरस से निपटने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन लगा हुआ है,भारी तादाद में प्रवासी मजदूर अभी भी शहरों में फंसे हुए है. मजदूरों की घर वापसी के लिए केंद्र और राज्य सरकारें जो भी दावा करें, लेकिन प्रवासी मजदूरों अब भी पैदल आने-जाने को मजबूर हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

रतलाम जिले के रहने वाले दशरथ, अपने घर वापस जाने के लिए लगातार 4 दिनों से साइकिल चला रहे हैं. लेकिन पंजाब बॉर्डर पर उन्हें रोक लिया गया और कहा गया कि परमिशन ले कर आओ तो जाने देंगे.

मैं 4 दिन से लगातार साइकिल चला कर आ रहा हूं. लखनपुर सीमा वालों ने निकाल दिया था, लेकिन पंजाब बॉर्डर वालों ने बोला कि पास,परमिशन लेकर आओ तो जाने देंगे.पास के लिए हमने SP और S.H.O.साहब से बात की पर कोई जवाब नहीं मिला, बोले 4 दिन में गाड़ी करवा देंगे. 
दशरथ,जिला रतलाम निवासी

बिहार के रहने वाले प्रवासी मजदूर, दिल्ली में वेल्डिंग का काम करते थे, लेकिन अब खाने-पीने की दिक्कत के चलते पैदल ही गांव जा रहे हैं.

मैं यहां वेल्डिंग का काम करता था. यहां खाने-पीने, नहाने-धोने सब चीजों की दिक्कत हो रही थी जिसकी वजह से हम लोग पैदल गांव जा रहे हैं. हमें सरकार द्वारा चलाई जा रही ट्रेनों के बारे में कोई सूचना नहीं है.
पूर्णिया बिहार से प्रवासी मजदूर

ये पूछे जाने पर की सरकार ने आपको घर पहुंचने के लिए ट्रैन चला रही है, आपको उसकी कोई जानकारी है, उन्होंने कहा हमारे पास न मोबाइल है न पैसा है, किसी तइन के बारे में कोई जानकारी नही है.

सारी मजदूरी घर भेज दी थी. हम 2दिन से भूखे हैं. कोई रोजगार नहीं है, पैदल घर जा रहे हैं. सोचा जब यहां भी मरना है भूखे प्यासे, तो रस्ते में मर जाएंगे भूखे प्यासे. हमारे पास न मोबाइल है न पैसे हैं, कुछ नहीं है. किसी ट्रेन के बारे में कोई जानकारी नहीं है.
पूर्णिया बिहार से प्रवासी मजदूर

श्रीनगर में फंसे प्रवासी मजदूरों को सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही है, वहां फंसे लोग स्थानीय लोगों की मदद पर आश्रित है.

“हम लोग भी कश्मीर में फंसे हुए हैं. सरकार से कोई मदद नहीं मिली है पर स्थानीय लोग मदद कर रहे हैं. दूसरों के घरों पर गए तो किसी ने चावल दिया तो किसी ने कुछ और फौजियों की मदद से एक बार पांच किलो चावल मिला था बस.”

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×