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केरल के कुडलमाणिक्यम मंदिर में परफॉर्म की इजाजत नहीं मिलने पर क्या बोली मानसिया?

मानसिया का नृत्य अब उनके घर तक ही सीमित है, जहां वह दिन में कम से कम तीन घंटे भरतनाट्यम का अभ्यास करती हैं.

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भरतनाट्यम (Bharatnatyam) नृत्यांगना वीपी मानसिया बिल्कुल हैरान नहीं थीं जब कूडलमणिक्यम मंदिर के अधिकारियों ने उन्हें अपने उत्सव में परफॉर्म करने की अनुमति नहीं दी. केरल में एक मुस्लिम परिवार में पैदा हुई 27 साल की नर्तकी को पिछले पांच सालों में दो बार मंदिर स्थलों में एंट्री से वंचित किया जा चुका है.

त्रिशूर जिले के इरिंजालकुडा में स्थित कूडलमाणिक्यम तीसरा मंदिर है जिसने गैर-हिंदू होने के कारण मानसिया को परफॉर्म करने से इनकार किया था. जबकि मंदिर में मानसिया का प्रदर्शन 21 अप्रैल को होने वाला था, लेकिन 27 मार्च को उससे कहा गया कि उसे मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाएगी क्योंकि वह हिंदू नहीं है.

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मानसिया ने द क्विंट को बताया कि, “2017 में मलप्पुरम जिले के एक मंदिर में मुझे एक मंच पर प्रस्तुति देने के लिए कहा गया था, जो मंदिर परिसर के अंदर नहीं था. यह केवल मेरे लिए बनाया गया था क्योंकि वे मुझे उस जगह नृत्य की अनुमति नहीं दे सकते थे जहां हिंदू नर्तकियों को दी जाती है. 2019 में मेलपथुर में मुझे एंट्री करने से इनकार कर दिया गया था.”

मेलपाथुर केरल के गुरुवायुर में प्रसिद्ध श्रीकृष्ण मंदिर का आर्ट्स ऑडिटोरियम है. "मेलपाथुर मंदिर के अधिकारियों ने मुझसे कहा कि अगर मैं वहां प्रस्तुति देती हूं तो उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ सकता है."

विडंबना यह है कि मानसिया ने मेलपाथुर में अपना अरंगीत्तम या पहले चरण का प्रदर्शन किया था. नर्तकी को मुस्लिम धार्मिक नेताओं द्वारा धार्मिक आधार पर बहिष्कार का भी सामना करना पड़ रहा है.

बचपन से धार्मिक बहिष्कार झेलना पड़ रहा है

मानसिया के पिता और माता मुसलमान हैं. उनके पिता वीपी अलाविकुट्टी, दुनिया के मध्य पूर्व में काम करते हैं. मनसिया की किशोरावस्था में उनकी मां अमीना ने उन्हें नृत्य करने के लिए प्रेरित किया. वो कहताी हैं “मेरी मां को शास्त्रीय नृत्य प्रस्तुति पसंद है जो समय-समय पर टेलीविजन पर प्रसारित किया जाता था. उन्होंने छोटी उम्र में ही मेरी बड़ी बहन, रूबिया और मुझे डांस ट्यूटोरियल में भेज दिया था. जिसके कुछ समय बाद ही हमारी परेशानी बढ़ गई."

2007 में पूरे परिवार को उनकी स्थानीय मुस्लिम मण्डली या महल से निकाल दिया गया था, क्योंकि धार्मिक नेताओं ने महसूस किया कि शास्त्रीय नृत्य एक 'गैर-इस्लामिक' कला है.

मानसिया ने कहा, "उन्हें लगा कि हम एक हिंदू कला का प्रदर्शन कर रहे हैं." उस समय मानसिया की मां कैंसर से जूझ रही थीं. जब उनकी मृत्यु हुई, तो स्थानीय मस्जिद ने उनका अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया था.

मानसिया ने याद करते हुए बताया कि, अमीना, एक अच्छी मुसलमान थीं, जिसके लिए धर्म जीवन का एक अभिन्न अंग था, लेकिन उन्हें अपने मायके के पास एक मस्जिद के कब्रिस्तान में दफनाया गया. मेरे पिता, बहन और मुझे उन्हें दफनाते वक्त शामिल होने की अनुमति नहीं थी. मैंने उसी दिन इस्लाम को त्याग दिया था."

हालांकि, वह वास्तव में अपनी मुस्लिम पहचान से कभी नहीं हट सकती थी, खासकर जब वह सार्वजनिक मंच पर नृत्य करती हैं. वो कहती हैं "उन्हें हमेशा 'हिंदू कला' का प्रदर्शन करने वाली 'मुस्लिम लड़की' के रूप में जाना जाता है. मुझे यह कभी पसंद नहीं आया. कला धर्मनिरपेक्ष है. कला किसी भी धर्म की कैसे हो सकती है?”

इतनी बाधाओं के बावजूद मानसिया डांस करती रहीं, क्योंकि डांस ही उनका धर्म बन गया.

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यहां तक ​​कि मानसिया ने कुचिपुड़ी और कथकली भी सीखी, लेकिन उन्होंने भरतनाट्यम को इसलिए चुना क्योंकि यह उनकी शारीरिक भाषा के लिए सबसे उपयुक्त था. उन्होंने भरतनाट्यम में चेन्नई से मास्टर ऑफ आर्ट्स (MA) किया.

बाद में, मानसिया ने केरल के प्रसिद्ध प्रदर्शन स्कूल, कलामंडलम में भरतनाट्यम में एमफिल पूरा किया. वह उसी आर्ट्स स्कूल में पीएचडी कर रही है.

कलामंडलम बैनर जिसे आदर्श रूप से मानसिया का सपोर्ट करने में मदद करनी चाहिए थी लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हुआ. गैर-हिंदू पहचान ने मानसिया को कई बार पीछे रखा.

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"अगर मैं हिंदू धर्म अपनाती हूं तो वे मुझे डांस करने की अनुमति देंगे"

जब मानसिया ने कूडलमाणिक्यम उत्सव में परफॉर्म करने के बारे में सोचा तो उन्हें अपना बायोडाटा भेजने के लिए कहा गया. मानसिया ने कहा, “उन्होंने आश्वासन दिया कि वे केवल मेरे डांस का बैकग्राउंड देखना चाहते हैं. लेकिन कुछ ही देर में सब बदल गया."

वो कहती हैं कि “इस तरह से मेरी एंट्री रोकना वाकई आहत करने वाला था. उन्होंने मुझसे पूछा कि मैंने हिंदू से शादी करने के बाद भी हिंदू धर्म क्यों नहीं अपनाया." डांसर ने तीन महीने पहले वायलिन वादक श्याम कल्याण से शादी की थी.

क्या मंदिर के अधिकारियों ने पहले यह मान लिया था कि मानसिया ने शादी के बाद हिंदू धर्म अपनाया है? मानसिया ने कहा “उत्सव के समिति के सदस्यों ने मुझे यहां तक ​​​​कहा कि अगर मैं हिंदू धर्म में परिवर्तित हो गई तो वे मुझे डांस करने की अनुमति देंगे. मैंने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया."

मानसिया का नृत्य अब उनके घर तक ही सीमित है, जहां वह दिन में कम से कम तीन घंटे भरतनाट्यम का अभ्यास करती हैं. मुस्कुराते हुए वो बोली, "यहां तक ​​कि उन अभ्यास सत्रों से भी मुझे बहुत खुशी मिलती है. मैं संतुष्ट हूं."

लेकिन वह फिर भी लोगों के सामने डांस करने को याद करती हैं. वो कहती है, "हां मैं करती हूं. लेकिन मुझे मेरे अधिकार से वंचित करने के मंदिर के फैसले पर लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ क्योंकि मुझे लगा कि इससे मेरे बाद आने वाले अन्य लोगों को मदद मिलेगी."

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"शास्त्रीय नृत्य अभी भी मंदिरों तक सीमित हैं"

मानसिया की ज्यादातर परफॉर्मेंस मंदिरों से जुड़ी जगहों पर ही होती हैं. वो समझाते हुए बोली, “दिल्ली और चेन्नई जैसी जगहों पर शास्त्रीय नृत्य करने के लिए धर्मनिर्पेक्ष स्थान हैं. केरल में ऐसे सार्वजनिक मंच सीमित हैं.”

वो कहती हैं “जबकि मंदिर स्थलों पर परफॉर्मेंस जारी रह सकती है, वहां वैकल्पिक स्थान होने चाहिए जहां शास्त्रीय नृत्य किया जा सके. यह केवल राज्य सरकार ही सुनिश्चित कर सकती हैं."

उन्होंने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और केरल एक प्रगतिशील राज्य है, इसलिए कलाकारों को उनके धर्म के आधार पर उनके प्रदर्शन के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए. मानसिया भविष्य में मंचों पर प्रदर्शन करना चाहती हैं, यहां तक मंचों पर भी जो मंदिर से जुड़े हैं.

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