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"मैंने कभी हिम्मत नहीं हारी": पैलेट्स से आंख गंवाई एक कश्मीरी लड़की की कहानी

इंशा अब अरबी भाषा के लिए ब्रेल प्रणाली सीखने की इच्छा रखती हैं, ताकि वह पवित्र कुरान को पढ़ और सीख सकें.

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11 जुलाई 2016 की शाम, करीब 8 बजे आतंकवादी कमांडर बुरहान वानी की हत्या के तीन दिन बाद इंशा मुश्ताक लोन, जो तब 14 साल की थीं. वह दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले के सेदो गांव में अपने घर के ग्राउंड फ्लोर पर एक खिड़की से झांक रही थीं.

उस दिन उनके गांव में ताजा विरोध शुरू हुआ था.

लेकिन, जैसे ही उन्होंने बाहर देखा, वह सड़क की ओर वाली खिड़की के पास सुरक्षाबलों की ओर से दागे गए पैलेट्स के एक गोले की चपेट में आ गईं. वह चीखीं और दर्द से कराहती हुई नीचे गिर पड़ीं. उनके आगे के तीन दांत टूट गए. उनके पूरे चेहरे पर खून लगा हुआ था.

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अस्पताल में जब वह उठीं तो उनकी आंखों पर पट्टी बंधी थी. उन्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी, उन्हें बाद में पता चला. चारों ओर केवल अंधेरा था - और उनकी आंखों में जलन थी.

इंशा का चेहरा और गोली से अंधी हुई आंखें जल्द ही कश्मीर में सैकड़ों पैलेट्स पीड़ितों की दुर्दशा का प्रतीक बन गईं.

लेकिन, पिछले हफ्ते, 22 वर्षीय इंशा के घर में जश्न की लहर दौड़ गई, जब उन्हें पता चला कि इंशा ने 12वीं की वार्षिक बोर्ड परीक्षा अच्छे अंकों से पास कर ली है.

वास्तव में, इंशा कश्मीर में पहली पूरी तरह से नेत्रहीन पैलेट्स पीड़ित हैं, जिन्होंने 9वीं कक्षा, फिर 11वीं कक्षा और अब 73 प्रतिशत अंकों के साथ इंटरमीडिएट 12वीं कक्षा पास की हैं.

"मैंने अपनी हिम्मत कभी नहीं खोई"

इंशा 2016 की अधिकांश गर्मियों में इलाज और सर्जरी के लिए कई बार अस्पताल आती-जाती रहीं. उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), नई दिल्ली ले जाया गया, जहां वे एक महीने से अधिक समय तक विशेष उपचार के लिए रहीं.

उनका मुंबई के एक अस्पताल में ऑपरेशन भी किया गया था, जहां वह एक महीने तक रहीं. वर्षों से कई जटिल नेत्र शल्य चिकित्सा कराने के बावजूद, डॉक्टर उनकी दोनों आंखों की रोशनी वापस नहीं ला सके.

लेकिन, इंशा ने ठान लिया था कि वह घर पर नहीं रुकेंगी. वह अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती थीं. वह लंबे समय तक किसी भी किताब को पढ़ने में सक्षम नहीं थीं, लेकिन उन्होंने कहा कि उनके जीवन पर अचानक आए अंधेरे को दूर करने के लिए उन्होंने अपनी इच्छाशक्ति कभी नहीं खोई. वह हार नहीं मानना चाहती थीं. वह नहीं चाहती थीं कि उन्हें सिर्फ एक पैलेट पीड़िता के रूप में जाना जाए.

इंशा ने धीरे-धीरे 2018 में ब्रेल भाषा सीखना शुरू किया और अब पूरी तरह से दो भाषाओं - अंग्रेजी और उर्दू में ब्रेल सीखने में ट्रेनड हैं. जब वह घर पर थीं तब उन्होंने अपनी 10वीं की बोर्ड परीक्षा की तैयारी की. इंशा ने द क्विंट को बताया,

"मैं जन्म से अंधी नहीं थी, इसलिए ब्रेल भाषा सीखना मेरे लिए आसान नहीं था. लेकिन, कड़ी मेहनत के साथ, मैं इसे सीखने में कामयाब रही."
इंशा

जैसा कि उन्होंने 2016 की घटना से पहले स्थानीय स्तर पर शोपियां में अपनी स्कूली शिक्षा की थीं, उन्होने इलाज के बाद उसी स्कूल के महीनों में अपनी शिक्षा फिर से शुरू कीं. उन्होंने इसी स्कूल से 12वीं की पढ़ाई की है.

2018 में, उन्होने कुछ विशेष कंप्यूटर कोर्स भी किए.

इंशा अब अरबी भाषा के लिए ब्रेल प्रणाली सीखने की इच्छा रखती हैं, ताकि वह पवित्र कुरान को पढ़ और सीख सकें.

वह कहती हैं, ''ऐसे कई मौके थे जब मुझे अपने अंधेपन की वजह से बहुत बुरा लगता था."

वह कहती हैं, "मैं खुद को प्रेरित करती थी और सोचती थी कि मेरे खुदा ने इस हालत में भी मेरे लिए कुछ अच्छा रखा होगा, मैं नकारात्मक विचारों से निराश नहीं होना चाहती थी."

कई बार ऐसा भी होता था जब वह सोचती थीं कि वह फिर कभी पढ़ाई नहीं कर पाएंगी, "लेकिन मेरे माता-पिता की मदद और समर्थन के कारण मैं यह कर पाई, मैं सर्वशक्तिमान अल्लाह की शुक्रगुजार हूं."

"हमें उस पर गर्व है"

जब द क्विंट की टीम इंशा के घर पहुंची तो वह अपने खुश और भावुक माता-पिता और रिश्तेदारों से घिरी थीं और उनके चेहरे पर मुस्कान थी.

इंशा के पिता मुश्ताक अहमद को अपनी बेटी पर गर्व है. क्योंकि उनकी बेटी ने अपनी कमजोर आंख और चेहरे की चोटों के बावजूद जो कुछ हासिल किया है, वह काबिले तारीफ है.

"मैं शब्दों में कैसे बता सकता हूं कि मैं उसके लिए कितना खुश हूं?" वह मुस्कुराते हुए कहते हैं इस दौरान वह मेहमानों और रिश्तेदारों का स्वागत करते हैं जो उन्हें उनके घर पर बधाई देने के लिए आते हैं.

उन्होंने आगे कहा, "2016 में छर्रों के कारण अपनी आखों की रोशनी खो देने के बाद, हमने सुनिश्चित किया कि पूरा परिवार उसके साथ खड़ा रहे. वह अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए भी दृढ़ थी."

कला विषय में 12वीं की बोर्ड परीक्षा पास करने के बाद, उसका अगला लक्ष्य एक कॉलेज में दाखिला लेना और अपनी स्नातक की डिग्री पूरी करना है. वह सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए कोचिंग भी जाना चाहती है. वह कहती हैं कि दिल्ली में एक दृष्टिहीन महिला अधिकारी से मुलाकात ने एक बार उन्हें सिविल सेवाओं में जाने के लिए प्रेरित किया.

वह द क्विंट से कहती हैं, "मैं एक अधिकारी बनना चाहती हूं और एक दिन लोगों की सेवा करना चाहती हूं."

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'मेरे जैसे और भी कई हैं'

इंशा कहती हैं कि "उनके जैसे कई पैलेट्स पीड़ित हैं जो एक या दोनों आंखों से नहीं देख सकते हैं लेकिन अपने सपनों को पूरा करना चाहते हैं - बिल्कुल उनकी तरह."

वह कहती हैं, "शैक्षणिक संस्थानों की तत्काल आवश्यकता है जो विशेष रूप से उन सभी दृष्टिबाधित लोगों को शिक्षा प्रदान करे, जो अपने शैक्षिक सपनों को पूरा करने की इच्छा रखते हैं."

"उन्हें अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए केवल कुछ समर्थन की आवश्यकता है, और वे भी, अपने अंधेरे को मिटा सकते हैं और दूर कर सकते हैं."

इंशा अपनी पढ़ाई में अच्छा करना चाहती हैं और अपने माता-पिता और परिवार को गौरवान्वित करना चाहती हैं. वह चाहती हैं कि उनके जैसे अन्य पैलेट्स पीड़ित हार न मानें और दृष्टि की हानि को अलग रखकर जीवन में जो कुछ भी वह पाना चाहते हैं, उसके लिए मेहनत करें.

"जहां मैं रहती हूं वहां एक दुनिया है, जो अंधेरे से भरी है, लेकिन यह मुझे मेरे लक्ष्यों तक पहुंचने से नहीं रोक रहा है. अगर किसी व्यक्ति में साहस और प्रतिबद्धता है, तो कुछ भी असंभव नहीं है और कोई भी चुनौती बाधा नहीं बन सकती है."
इंशा
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इंसान की कीमत

कश्मीर में 2016 की अशांति के दौरान सड़क पर विरोध को शांत करने के लिए पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली 'गैर-घातक' पैलेट्स शॉटगन से सैकड़ों युवाओं की आंखों में गंभीर चोटें आईं हैं.

ज्यादातर युवाओं को पैलेट्स गन से निशाना बनाया गया था, और यहां तक कि 13 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को भी पैलेट्स गन से निशाना बनाया गया था. अस्पतालों में पैलेट पीड़ितों का इलाज कर रहे डॉक्टरों और नेत्र रोग विशेषज्ञों ने छर्रों से होने वाली गंभीर आंखों की चोटों को "अंधेपन की महामारी" करार दिया था.

घायलों में से कुछ 4,500 पैलेट-फायरिंग पीड़ित थे, जैसा कि कश्मीर स्थित अधिकार निकाय, एसोसिएशन ऑफ पेरेंट्स ऑफ डिसएपियर्ड पर्सन्स द्वारा 2019 में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है.

उस साल 352 से ज्यादा नागरिक पैलेट-फायरिंग शॉटगन से आंशिक रूप से या पूरी तरह से अंधे हो गए थे, पिछले वर्षों में पैलेट पीड़ितों की संख्या को जोड़ते हुए.

रिपोर्ट में पाया गया कि छर्रों की चोटों ने "पीड़ितों के जीवन को पूरी तरह से बदल दिया है और उनके भविष्य को नष्ट कर दिया है, जिससे लोग बेरोजगार और गरीब हो गए हैं."

पैलेट के अधिकांश शिकार डिप्रेशन और चिंता विकारों जैसे पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) से भी पीड़ित थे. 5 अगस्त 2019 को सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार द्वारा जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति के निरसन के बाद लगातार लॉकडाउन के कारण पैलेट पीड़ितों का मानसिक स्वास्थ्य और भी खराब हो गया, जिसके बाद 2020-21 में कोरोनो वायरस के प्रसार को रोकने के लिए एक और लॉकडाउन किया गया.

बार-बार लॉकडाउन और संचार बंद होने का मतलब पैलेट पीड़ितों के इलाज और अस्पताल जाने में देरी होना भी था.

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