वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने अपने खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के केस का जवाब दिया है. इसमें उन्होंने कहा है कि मौजूदा CJI की सुपरबाइक वाली तस्वीर पर जो उन्होंने ट्वीट किया और पिछले छह साल में सुप्रीम कोर्ट के कामकाज पर जो टिप्पणी की है वो सोच समझकर की है. भूषण में जवाब में लिखा है कि CJI की आलोचना कोर्ट की आलोचना नहीं है. और इससे रोका जाता है तो अभिव्यक्ति की आजादी का हनन है.
- 27 जून को भूषण ने ट्वीट किया था - जब इतिहासकार पीछे मुड़कर देखेंगे तो कहेंगे कि इन छह सालों में बिना घोषित इमरजेंसी के जरिए लोकतंत्र को बर्बाद कर दिया गया. और इसमें खासकर चार मुख्य न्यायधीशों की भूमिका नजर आएगी.
- 29 जून को भूषण ने CJI बोबड़े की सुपरबाइक पर तस्वीर शेयर करते हुए लिखा था कि वो एक बीजेपी नेता की बाइक पर बैठे हैं और हेलमेट भी नहीं लगाया है.
- इन ट्वीट के कारण सुप्रीम कोर्ट ने भूषण और ट्विटर इंडिया को अवमानना का नोटिस भेजा. 5 अगस्त को इसकी सुनवाई होनी है.
भूषण का जवाब
2 अगस्त को दायर किए गए हलफनामे में भूषण ने बताया है कि उन्होंने क्यों ये टिप्पणियां की थीं. उन्होंने कहा है कि बाइक की तस्वीर पर कमेंट कर वो इस बात पर नराजगी जताना चाहते थे कि जब तीन महीने से कोर्ट काम नहीं कर रहा और लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है तो बिना मास्क पब्लिक के बीच जाना कितना सही है. साथ ही ये बाइक बीजेपी के नेता की है, ये बात भी जगजाहिर है. ऐसे में ये अवमानना कैसे है और अगर है तो बोलने की आजादी छीनने जैसा है.
27 जून के ट्वीट पर अवमानना को लेकर भूषण ने कहा है कि किसी जज की आलोचना कोर्ट की आलोचना नहीं है. और ऐसी आलोचना कई पूर्व जज भी कर चुके हैं. भूषण ने कहा है कि कानून में आवमानना का प्रावधान बोलने की आजादी को दबाने नहीं, बल्कि इंसाफ देने के लिए किया गया है.
उन्होंने ये भी कहा है कि आलोचना करना उनकी आजादी ही नहीं, फर्ज भी है. खासकर जब कुछ जजों के बर्ताव के कारण न्यायपालिका की आजादी पर सवाल उठ रहे हैं तो उनका कर्तव्य है कि वो आवाज उठाएं.
इसके बाद भूषण ने एक-एक उन चार CJI के कुछ फैसलों का जिक्र किया है, जिसको लेकर उन्हें आपत्ति है.
- CJI चहर के कार्यकाल में सहारा-बिड़ला डायरी केस की जांच की याचिका को ठुकराना और कलिको पुल खुदकुशी मामले को जिस तरह से निपटाया गया
- मेडिकल रिश्वत कांड में CJI दीपक मिश्रा का खुद पार्टी होने के बावजूद जजों को तय करना. इसी कार्यकाल में चार जजों का प्रेस कॉन्फ्रेंस करना.
- CJI रंजन गोगोई के कार्यकाल में राफेल समेत कई मामलों की जानकारी बंद लिफाफे में लेना. इलेक्टोरल बॉन्ड से लेकर धारा 370 पर याचिकाओं पर सुनवाई न करना. अयोध्या पर फैसला. सेक्शुअल हैरेसमेंट केस की सुनवाई वाली बेंच में खुद मौजूद रहना.
- CJI बोबडे के कार्यकाल में CAA 2019 पर रोक न लगाना और प्रवासी मजदूरों की तकलीफों की अनदेखी.
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