चावल वैश्विक खाद्य आपूर्ति (global food supply) के लिए अगली चुनौती के रूप में उभर सकता है, क्योंकि भारत के कुछ हिस्सों में बारिश की कमी देखने को मिली है, साथ ही देश में पिछले तीन सालों में धान की खेती का बुआई क्षेत्र सबसे कम हो गया है.
भारत के चावल उत्पादन (rice production) के लिए खतरा ऐसे समय में आया है, जब देश खाने की चीजों के बढ़ते दाम और महंगाई से जूझ रहा है. पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश सहित कुछ क्षेत्रों में बारिश की कमी के कारण इस सीजन में अब तक धान की खेती वाले क्षेत्र में 13% की गिरावट आई है. सिर्फ ये दो राज्य ही मिलकर देश में लगभग एक चौथाई चावल का उत्पादन करते हैं. कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक इस साल सभी प्रमुख धान उत्पादन राज्यों में धान की खेती का रकबा कम हुआ है.
बता दें कि असमान्य मॉनसून की वजह से इस बार धान की खेती और इसके उत्पादन पर असर पड़ रहा है. बाजार में इसी बीच गेहूं के बाद अब चावल के दाम भी बढ़ गए हैं. जून महीने की शुरुआत से लेकर जुलाई के आखिर तक में चावल के दाम 30 फीसदी तक बढ़ गए हैं.
गेहूं के निर्यात पर लगा था रोक
इससे पहले इसी साल मई महीने में सरकार ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था. इस रोक पर सरकार की ओर से कहा गया था कि यह कदम देश में और पड़ोसी देशों में (जहां गेहूं की ज्यादा जरूरत है) खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है. यही नहीं 12 जुलाई 2022 से सरकार ने गेहूं के आटे और उससे जुड़े उत्पादों जैसे कि मैदा, सेमोलिना और आटे के निर्यात पर भी पाबंदी लगा दी है.
व्यापारियों में डर, चावल के निर्यात पर लग सकता है प्रतिबंध
अगर चावल की बात करें तो व्यापारी चिंतित हैं कि चावल के उत्पादन में गिरावट भारत की मुद्रास्फीति की लड़ाई को जटिल बना देगी और निर्यात पर प्रतिबंध लगा देगी. इस तरह के कदम का उन करोड़ों लोगों के लिए दूरगामी प्रभाव होगा जो इसपर निर्भर हैं.
दुनियाभर में चावल के कारोबार में भारत की हिस्सेदारी 40% है, और सरकार ने पहले ही खाद्य सुरक्षा की रक्षा और स्थानीय कीमतों को नियंत्रित करने के लिए गेहूं और चीनी के निर्यात पर रोक लगा दी है.
उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और बिहार के प्रमुख उत्पादक राज्यों में खराब बारिश के कारण धान की खेती प्रभावित हुई है.
भारत के चावल की कीमतों में उछाल उत्पादन को लेकर चिंता को दर्शाता है. स्पंज एंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक मुकेश जैन ने बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार को बताया कि कम बारिश और बांग्लादेश से बढ़ती मांग के कारण पश्चिम बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में पिछले दो हफ्तों में अलग-अलग तरह के चावलों की कीमतें 10% से अधिक बढ़ गई हैं. उन्होंने कहा कि निर्यात की कीमतें सितंबर तक बढ़कर 400 डॉलर प्रति टन हो सकती हैं, जो अभी फ्री-ऑन-बोर्ड आधार पर 365 डॉलर हैं.
दुनिया का अधिकांश चावल एशिया में उगाया और खाया जाता है, जिससे यह क्षेत्र राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है. भारत बांग्लादेश, चीन, नेपाल और कुछ मध्य पूर्वी देशों समेत करीब 100 से ज्यादा देशों को चावल की आपूर्ति करता है.
रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद गेहूं और मकई की कीमतों में उछाल आने से चावल पर निर्भरता बढ़ी है, इससे खाद्य संकट को दूर करने में तो मदद मिली है पर चावल का पर्याप्त भंडार भी कम हो गया.
भारत के कृषि मंत्रालय के पूर्व सचिव सिराज हुसैन के मुताबिक, भारत के धान उत्पादन में कई राज्यों में गिरावट को देखते हुए सरकार को इथेनॉल उत्पादन के लिए चावल आवंटित करने की अपनी नीति की समीक्षा करने पर विचार करना चाहिए.
मॉनसून पर निर्भर भारत में चावल उत्पादन
भारत में चावल की फसल का उत्पादन बहुत हद तक मॉनसून पर निर्भर करता है. कुछ कृषि वैज्ञानिक आशावादी हैं कि रोपनी के लिए अभी समय बचा है. अगस्त और सितंबर महीने में सामान्य बारिश का अनुमान है, ऐसे में अगर मॉनूसन का साथ मिलता है, तो फसल उत्पादन में सुधार हो सकता है.
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