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जब पति को लेकर 80 किलोमीटर तक कार दौड़ाती रही थीं शीला दीक्षित

कॉलेज में प्यार, बस में इजहार....ऐसी थी शीला दीक्षित की लव स्टोरी

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दिल्ली कांग्रेस की अध्यक्ष और दिल्ली की तीन बार की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित का 20 जुलाई की शाम 3:55 मिनट पर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. वह 81 साल की थीं.

शीला दीक्षित की राजनीतिक यात्रा लंबी रही. दिलचस्प बात ये है कि जिस दिल्ली की वो लगातार 15 साल तक मुख्यमंत्री रहीं, वहीं उन्होंने पढ़ाई की. दिल्ली विश्विद्यालय में पढ़ाई के दौरान ही शीला की मुलाकात विनोद दीक्षित से हुई थी, जो उस दौर के बड़े कांग्रेस नेता उमाशंकर दीक्षित के इकलौते बेटे थे.

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शुरू में अच्छे नहीं लगे थे विनोद

शीला दीक्षित ने अपनी आत्मकथा ‘सिटिजन दिल्ली- माय टाइम-माय लाइफ’ में अपनी निजी जिंदगी को बड़ी ही बारीकी से पेश किया था. इसी बुक में शीला दीक्षित की जिंदगी का वो खूबसूरत हिस्सा भी शामिल है, जिसमें वह कांग्रेस के बड़े नेता उमाशंकर दीक्षित के बेटे विनोद दीक्षित के करीब आईं थी.

किताब में उन्होंने बताया था कि उनके पति विनोद दीक्षित ने उन्हें एक बस में प्रपोज किया था और दोनों को एक दूसरे का जीवनसाथी बनने के लिए 2 साल तक इंतजार करना पड़ा था.

कॉलेज में प्यार, बस में इजहार....ऐसी थी शीला दीक्षित की लव स्टोरी
पति विनोद दीक्षित के साथ शीला दीक्षित
(फाइल फोटोः CITIZEN DELHI: MY TIMES, MY LIFE )

दिल्ली विश्वविद्यालय में हुई थी मुलाकात

शीला कपूर दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज में प्राचीन इतिहास की पढ़ाई कर रहीं थीं. इसी दौरान उनकी मुलाकात विनोद दीक्षित से हुई, जो उस दौर में कांग्रेस के बड़े नेता उमाशंकर दीक्षित के इकलौते बेटे थे.

शीला दीक्षित ने अपनी आत्मकथा में लिखा है-

“हम इतिहास की ‘एमए’ क्लास में साथ-साथ थे. मुझे वो कुछ ज्यादा अच्छे नहीं लगे. मुझे लगा ये पता नहीं अपने आप को क्या समझते हैं. थोड़ा अक्खड़पन था उनके स्वभाव में.’’

उन्होंने बताया, "एक बार हमारे कॉमन दोस्तों में आपस में गलतफहमी हो गई और उनके मामले को सुलझाने के लिए हम एक-दूसरे के नजदीक आ गए.''

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DTC बस में किया था प्यार का इजहार

विनोद अक्सर शीला के साथ बस पर बैठकर फिरोजशाह रोड जाया करते थे, ताकि वो उनके साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिता सकें.

शीला ने लिखा है,

‘हम दोनों डीटीसी की 10 नंबर बस में बैठे हुए थे. अचानक चांदनी चौक के सामने विनोद ने मुझसे कहा, मैं अपनी मां से कहने जा रहा हूं कि मुझे वो लड़की मिल गई है, जिससे मुझे शादी करनी है. मैंने उनसे पूछा, क्या तुमने लड़की से इस बारे में बात की है? विनोद ने जवाब दिया, ‘नहीं, लेकिन वो लड़की इस समय मेरे बगल में बैठी हुई है.’

शीला ने लिखा है, 'मैं ये सुनकर अवाक रह गई. उस समय तो कुछ नहीं बोली, लेकिन घर आकर खुशी में खूब नाची. मैंने उस समय इस बारे में अपने मां-बाप को कुछ नहीं बताया, क्योंकि वो जरूर पूछते कि लड़का करता क्या है? मैं उनसे क्या बताती कि विनोद तो अभी पढ़ रहे हैं.'

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दो साल तक चला मान मनौव्वल का दौर

प्यार के इजहार के बाद शीला का परिवार तो इस रिश्ते के लिए तैयार था. लेकिन विनोद के परिवार में इसका खासा विरोध हुआ, क्योंकि शीला ब्राह्मण नहीं थीं. धीरे-धीरे वक्त बीतता रहा. इस बीच विनोद ने शीला की मुलाकात अपने पिता उमाशंकर दीक्षित से कराई. थोड़ी ना नुकुर के बाद वे तैयार तो हो गए, लेकिन उन्होंने कहा कि शादी तभी होगी जब विनोद की मां तैयार होंगी. उन्होंने कहा कि अब ये पता नहीं कि विनोद की मां मानने में कितना वक्त लेंगी.

खैर, दो साल के इंतजार के बाद विनोद की मां भी इस रिश्ते के लिए तैयार हो गईं और धूमधाम से दोनों की शादी हो गई.

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पति को ट्रेन पकड़ाने के लिए दौड़ाई 80 किलोमीटर कार

शीला ने अपनी बुक में लिखा है कि विनोद ने 'आईएएस' की परीक्षा दी और पूरे भारत में नौंवी रैंक हासिल की. उन्हें उत्तर प्रदेश काडर मिला. एक दिन लखनऊ से अलीगढ़ आते समय विनोद की ट्रेन छूट गई.

उन्होंने शीला से अनुरोध किया कि वो उन्हें ड्राइव कर कानपुर ले चलें ताकि वो वहां से अपनी ट्रेन पकड़ लें. शीला दीक्षित ने लिखा है-

‘मैं रात में ही भारी बरसात के बीच विनोद को अपनी कार में बैठा कर 80 किलोमीटर दूर कानपुर ले आई. वो अलीगढ़ वाली ट्रेन पर चढ़ गए. जब मैं स्टेशन के बाहर आई तो मुझे कानपुर की सड़कों का रास्ता नहीं पता था.’

एक लड़की भीगी भागी सी

उस वक्त रात के डेढ़ बजे थे. शीला ने कुछ लोगों से लखनऊ जाने का रास्ता पूछा, लेकिन कुछ पता नहीं चल पाया. सड़क पर खड़े कुछ मनचले उन्हें देखकर किशोर कुमार का वो मशहूर गाना गाने लगे, ' एक लड़की भीगी भागी सी.'

तभी वहां कॉन्स्टेबल आ गया. वो उन्हें थाने ले गया. वहां से शीला ने एसपी को फोन किया, जो उन्हें जानते थे. उन्होंने तुरंत दो पुलिस वालों को शीला के साथ कर दिया. शीला ने उन पुलिस वालों को कार की पिछली सीट पर बैठाया और खुद ड्राइव करती हुई सुबह 5 बजे वापस लखनऊ पहुंची.

शीला दीक्षित ने राजनीति के गुर अपने ससुर उमाशंकर दीक्षित से सीखे, जो इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में गृह मंत्री हुआ करते थे और बाद में कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल भी बने.

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