ADVERTISEMENTREMOVE AD

प्रशांत भूषण के समर्थन में आए 1 हजार से ज्यादा वकील, जताई चिंता

प्रशांत भूषण को सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त को अवमानना केस में दोषी करार दिया था

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

सुप्रीम कोर्ट की अवमानना को लेकर वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण को दोषी करार दिया गया है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और सीजेआई बोबड़े को लेकर दो ट्वीट किए थे, इसी मामले में उन्हें दोषी बताया गया है. अब 20 अगस्त को उनकी सजा पर सुनवाई होनी है. लेकिन उससे पहले चारों तरफ से इस फैसले का विरोध शुरू हो चुका है. अब कई बड़े वकीलों ने इसका विरोध किया है. करीब एक हजार वकीलों ने अब तक प्रशांत भूषण को अवमानना केस में दोषी ठहराए जाने का विरोध किया है और इनकी संख्या लगाता बढ़ती जा रही है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कई बड़े वकीलों ने जताई चिंता

वकीलों के इतने बड़े समूह ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी असहमति जताते हुए कहा कि, एक स्वतंत्र न्यायपालिका का मतलब ये नहीं है कि जज स्क्रूटनी और कमेंट्स से बच सकते हैं.

प्रशांत भूषण से समर्थन में एक लेटर जारी किया गया है, जिसमें लगातार वकीलों के हस्ताक्षर लिए जा रहे हैं. जो वकील भूषण के खिलाफ आए फैसले से असहमत हैं वो इस पर हस्ताक्षर कर रहे हैं. जिनमें कामिनी जायसवाल, श्याम दीवान, नवरोज सीरवई, वृंदा ग्रोवर, दुष्यंत दवे, संजय हेगड़े, मेनका गुरुस्वामी और करुणा नंदी जैसे वकील शामिल हैं. इन सभी ने कहा कि इस वक्त वकीलों का ये कर्तव्य बनता है कि वो बार, बेंच और पब्लिक की कमियों को सामने लाएं.

हालांकि ऐसा नहीं है कि सभी वकील प्रशांत भूषण के ट्वीट से सहमत हैं. जिसमें उन्होंने सुपर बाइक में बैठे सीजेआई और सुप्रीम कोर्ट के काम को लेकर सवाल उठाए थे. लेकिन उनका कहना है कि ये कंटेंप्ट में नहीं आना चाहिए.

पहले भी उठते रहे हैं सवाल

सुप्रीम कोर्ट के प्रशांत भूषण पर फैसले को लेकर प्रैक्टिस कर रहे वकीलों के एक ग्रुप ने एक बयान जारी करते हुए कहा,

“जबकि प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट के एक अच्छे वकील होने के नाते एक साधारण व्यक्ति नहीं हो सकते हैं, लेकिन उनके ट्वीट्स में ऐसा कुछ नहीं कहा गया था जो साधारण न हो. पिछले कुछ सालों में सार्वजनिक तौर पर कई लोगों ने सोशल मीडिया और पब्लिकली कोर्ट के कामकाज को लेकर सवाल उठाए हैं. सिर्फ इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट के कुछ रिटायर्ड जजों ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए हैं.”

इन सभी वकीलों ने चेतावनी देते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से लोगों की नजरों में इस शीर्ष अदालत की गरिमा को बढ़ाने में मदद नहीं मिलेगी. साथ ही इसका सीनियर वकीलों पर भी काफी असर पड़ेगा.

वकीलों ने इंदिरा गांधी के दौर में जब जजों को दबाया जा रहा था उसका भी जिक्र किया. उन्होंने कहा, ये बार ही था जिसने सबसे पहले जुडिशरी की स्वतंत्रता को खत्म करने का विरोध किया. लेकिन अगर बार को अवमानना का खतरा बना रहेगा तो इससे कोर्ट की स्वतंत्रता और ताकत कम होगी. एक खामोश बार एक मजबूत कोर्ट का नेतृत्व नहीं कर सकता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

उम्मीद है उठ रही आवाजों को सुनेगा सुप्रीम कोर्ट

इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल की राय लेने से इनकार कर दिया, जबकि उन्हें केस के दौरान उपस्थित रहने को कहा गया था. वकीलों ने सुझाव दिया है कि कोर्ट को तब तक तुरंत फैसला नहीं देना चाहिए जब तक सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच कोविड महामारी के बाद खुलने वाली रेगुलर कोर्ट प्रोसीडिंग में आपराधिक अवमानना की समीक्षा नहीं कर लेती है. उन्होंने आगे कहा,

“हमें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 72 घंटे में उठने वाली सभी आवाजों को सुना होगा और न्याय को खत्म होने से रोकने के लिए सुधारात्मक कदम उठाए जाएंगे. जिससे आम जनता में एक बार फिर कोर्ट के लिए सम्मान और विश्वास पैदा हो सके.”

बता दें कि 14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के खिलाफ फैसला दिया था. कोर्ट के उन्हें दोषी ठहराए जाने के बाद तमाम वकीलों, शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों ने खुलकर कोर्ट के इस फैसले की आलोचना की थी.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×