सुशांत सिंह राजपूत मौत मामले में 'मीडिया ट्रायल' के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा - मीडिया संयम रखे. ये याचिका मुंबई के पूर्व वरिष्ठ पुलिस अफसरों ने डाली थी. इस याचिका में जो बातें कहीं गई हैं वो काफी गंभीर और सोचने लायक हैं.
याचिकाकर्ता कौन-कौन हैं?
याचिकाकर्ताओं में पूर्व डीजीपी पी एस पसरीचा, के सुब्रमण्यम, डी शिवनंदन, संजीव दयाल, सतीश चंद्र माथुर, और मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर महेश एन सिंह, धनंजय एन जाधव और STF के पूर्व चीफ पी रघुवंशी शामिल हैं.
PIL कहा गया है कि टीवी चैनलों का एक वर्ग पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग और झूठे प्रचार के जरिए केंद्रीय एजेंसियों द्वारा की जा रही जांच को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है. इसने केस के फैक्ट्स और मुंबई पुलिस और राज्य की दूसरी सेवाओं को लेकर आम जनता के मन में संदेह पैदा कर दिया है.
याचिका में क्या कहा गया है?
- मुंबई पुलिस ने जांच के दौरान इकट्ठा की गई जानकारी और सामग्री को सील बंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट के सामने रख दिया था. कोर्ट ने प्राइमा फेसी जांच में कोई गड़बड़ी नहीं पाई.
- इस बीच मीडिया में मुंबई पुलिस के खिलाफ रिपोर्टिंग शुरू हो गई, जबकि मीडिया को सुप्रीम कोर्ट में दी गई सामग्री के बारे में जानकारी भी नहीं थी. मीडिया रिपोर्ट्स में मुंबई पुलिस की जांच को गलत तरह से पेश किया गया.
- 28 अगस्त को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर लिखा कि इस मामले में कई मीडिया चैनलों की कवरेज पत्रकारिता के मानदंडों का उल्लंघन करती हैं.
- मीडिया ने गैरजिम्मेदार और अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल कर मुंबई पुलिस की छवि बिगाड़ने की कोशिश की.
- टीवी चैनलों का एक धड़ा अपनी पक्षपाती रिपोर्टिंग से केंद्रीय एजेंसियों की जांच को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा.
- मीडिया ट्रायल की वजह से निजी व्यक्ति पैरेलल जांच कर रहे हैं, नजरिया रख रहे हैं.
और क्या-क्या आरोप हैं?
- मुंबई के पूर्व पुलिस अधिकारियों ने मीडिया में सुशांत सिंह केस की कवरेज को लेकर प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के उस ट्वीट का भी जिक्र किया है जिसमें कहा गया था कि कुछ मीडिया चैनलों पर जो कंटेंट दिखाया जा रहा है वो पत्रकारिता के मूल्यों के खिलाफ है. साथ ही पीसीआई ने कहा था कि मीडिया इस केस में एक समानांतर ट्रायल चला रहा है, जो नहीं होना चाहिए.
- पुलिस अधिकारियों की तरफ से कोर्ट में न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी (एनबीएसए) के नियमों की एक कॉपी भी दी गई है. जिसमें बताया गया है कि पत्रकारिता का कैसा रवैया होना चाहिए.
- पूर्व पुलिस अधिकारियों का कहना है कि मीडिया ने झूठी, अनैतिक और गलत रिपोर्ट लगातार नॉनस्टॉप दिखाई हैं. फिर चाहे प्रिंट मीडिया हो, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, रेडियो या फिर सोशल मीडिया, हर जगह ऐसी खबरें दिखाई गईं.
- ये मीडिया कैंपेन बिना किसी सबूत या आधार के लगातार चलता रहा. मुंबई पुलिस ने जिन बातों को सील कवर लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा उन बातों को भी अपने अंदाजे के मुताबिक झूठे तरीके से लोगों को बताया गया. इसके अलावा मुंबई पुलिस और अधिकारियों के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का लगातार इस्तेमाल हुआ.
सबूत के तौर पर क्या-क्या रखा गया है?
इस याचिका में टाइम्स नाउ, रिपब्लिक टीवी, इंडिया टीवी जैसे चैनलों और कुछ वेबसाइट्स के कई सारे ट्वीट्स (जिसमें न्यूज क्लिप्स हैं) सबूत के तौर पर पेश किए गए हैं, जिनमें मुंबई पुलिस को कठघरे में खड़ा किया गया है. ज्यादातर ट्वीट प्राइम टाइम डिबेट्स और सुशांत केस की रिपोर्टिंग से जुड़े हैं. इसमें मीडिया की ऐसी रिपोर्टिंग के सबूत दिए गए हैं जो एकतरफा लग रहे हैं और एक 'निष्कर्ष तक ले जा रहे हैं. कई भद्दी टाइप की घटनाओं से जुड़े लिंक भी दिए गए हैं.सबूत के तौर पर टाइम्स नाउ, रिपब्लिक टीवी पर प्ले की गईं प्राइम टाइम्स डिबेट्स की क्लिपिंग्स भी दी गई हैं.
- रिपब्लिक भारत न्यूज चैनल की एक क्लिप दी गई जिसमें स्क्रीन पर लिखा हुआ है- 'मुंबई पुलिस सच क्यों छिपा रही है? दिशा के शरीर पर कपड़े नहीं थे'
- इंडिया टीवी के जो ट्वीट सबूत के तौर पर पेश किए गए उसमें से एक ट्वीट में टीवी की स्क्रीन पर लिखा हुआ है- 'रिया चक्रवर्ती पर बड़ी खबर, सुशांत के पैसे से गांजा और CBD खरीदा गया'
- रिपब्लिक भारत न्यूज चैनल की एक दूसरी क्लिप में दिया गया है- 'मुंबई पुलिस से रिया का कनेक्शन. रिया के संपर्क में थी मुंबई पुलिस'
- 28 अगस्त को टाइम्स नाउ ने एक खबर एक्सक्लूसिव बताकर चलाई- टीवी स्क्रीन पर सीधे लिख दिया- केस में खुलासे पुलिस के दावों से उलट
- न्यूज लैगून नाम की वेबसाइट पर लगी खबर का एक स्क्रीन शॉट लगाया गया. इसकी हेडलाइन थी- "क्या मुंबई पुलिस ने सुशांत सिंह राजपूत के गूगल पर 'पेनलेस डेथ' सर्च करने के बारे में झूठ बोला?"
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