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‘नापाक साठगांठ’ के सबूत से SC में बच पाएंगे गुजरात के BJP मंत्री?

गुजरात हाईकोर्ट ने 2017 विधानसभा चुनाव में राज्य मंत्री भूपेन्द्र सिंह चुडास्मा की जीत को अवैध घोषित कर दिया. 

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भारत
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गुजरात हाईकोर्ट ने 12 मई को एक असाधारण फैसला सुनाते हुए 2017 विधानसभा चुनाव में राज्य मंत्री भूपेन्द्र सिंह चुडास्मा की जीत को अवैध घोषित कर दिया. कोर्ट ने ये फैसला धोलका चुनाव क्षेत्र में चुडास्मा के कांग्रेस प्रतिद्वंदी की याचिका पर सुनवाई के बाद सुनाया.

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हाईकोर्ट के जस्टिस परेश उपाध्याय ने जहां लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तीन मापदंडों पर – जिसमें कि ‘भ्रष्टाचार’ भी शामिल था - चुडास्मा का चुनाव अवैध घोषित कर दिया. जज ने चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे कांग्रेस के उम्मीदवार की उस याचिका को भी खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने चुडास्मा की जगह विधायक बनाए जाने की मांग की थी. इसका मतलब ये हुआ कि इस विधानसभा क्षेत्र के लिए अब उपचुनाव के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता.

चुडास्मा ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. अब उन्हें इन तथ्यों का जवाब देना होगा.

ये 327 वोट का सवाल है

14 दिसंबर 2017 को गुजरात में विधानसभा के चुनाव कराए गए. 18 दिसंबर 2017 को वोटों की गिनती हुई, और उसी दिन नतीजे घोषित कर दिए गए. चुनाव में जीतने वाली बीजेपी को राज्य में सरकार बनाने का मौका मिला.

58-धोलका विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी उम्मीदवार चुडास्मा 327 वोटों से विजयी घोषित कर दिए गए.

चुडास्मा ने जिस व्यक्ति को हराया, कांग्रेस उम्मीदवार अश्विनीभाई कामसुभाई राठौड़, उन्होंने गुजरात हाईकोर्ट में एक चुनाव याचिका दायर कर दी, जिसमें उन्होंने दावा किया कि तत्कालीन राजस्व मंत्री चुडास्मा के इशारे पर स्थानीय रिटर्निंग ऑफिसर, धवल जानी, ने 429 पोस्टल बैलेट पेपर को गैरकानूनी तरीके से खारिज/अवैध ठहरा दिया था.

राठौड़ ने आरोप लगाया कि वोटों को खारिज किए जाने की इस जानकारी को छिपाने के लिए सुनियोजित तरीके से चुनाव रिकॉर्ड से छेड़छाड़ की गई, और रिटर्निंग ऑफिसर ने इस दौरान वोटों की गिनती, चुनाव रिकार्ड की तैयारी और नतीजों की घोषणा से जुड़ी चुनाव आयोग की सारी प्रक्रिया और निर्देशों की अवहेलना की.

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हाईकोर्ट में क्या दावे किए गए?

429 वोटों के अंतर की ये बात अंतिम परिणाम के फॉर्म 20 से जाहिर हुई, जो कि रिटर्निंग ऑफिसर चुनाव में शामिल हुए सभी उम्मीदवारों को देता है. राठौड़ को पहले तो 18 दिसंबर 2017 को बिना हस्ताक्षर वाला फॉर्म दे दिया गया, जिसमें 927 पोस्टल वोट मिलने की जानकारी दी गई थी, जिनमें से कोई वोट रद्द नहीं किया गया था.

रिटर्निंग अधिकारी ने बाद में जो दस्तखत वाला फॉर्म दिया, उसमें 1,356 पोस्टल बैलेट मिलने की बात लिखी थी – जो कि चुनाव/परिणाम की तारीख से पहले ही मिल जाते हैं, हमें ये नहीं भूलना चाहिए – जिसमें से 429 खारिज कर दिए गए थे.

अब चूंकि ये आंकड़ा चुडास्मा की जीत के अंतर से ज्यादा था, राठौड़ की दलील थी कि 429 वोटों के खारिज होने से उनके चुनाव नतीजे पर अच्छा खासा असर पड़ा.

राठौड़ ने रिटर्निंग ऑफिसर के बर्ताव को लेकर कई सारे दावे किए, जिससे साफ होता है कि वो कहीं ना कहीं चुडास्मा से ‘मिला’ हुआ था, और उनसे ‘भ्रष्टाचार’ को अंजाम दिया.

इनमें ये दावा भी शामिल है कि रिटर्निंग ऑफिसर ने उन्हें या उनके चुनाव एजेंट को वोटिंग की गिनती की पूरी वीडियो रिकॉर्डिंग मुहैया नहीं कराई, जो कि चुनाव आयोग के नियम के हिसाब से जरूरी है.

यह एक अहम बात थी क्योंकि राठौड़ का आरोप है कि चुडास्मा का अतिरिक्त निजी सचिव वोटों की गिनती के दौरान काउंटिंग हॉल में मौजूद था, जो कि बूथ कैप्चर करने जैसा अपराध है और चुनाव आयोग के निर्देशों के खिलाफ है.

राठौड़ ने दावा किया कि चुडास्मा ने चुनाव आचार संहिता के लागू होने के बाद भी धोलका में पहले से तैनात डिप्टी कलेक्टर की जगह जानी का तबादला करवाया – जो कि उसकी मदद के बदले की जाने वाली मदद थी, इसके अलावा जानी को एक प्रमोशन भी मिला जो कि चुनाव के समय विचाराधीन था.

‘नापाक साठगांठ’: हाईकोर्ट का निष्कर्ष

गुजरात हाईकोर्ट ने अपने निष्कर्ष से पहले कई तरह के साक्ष्यों पर गौर किया, जिसमें कि राठौड़ और चुडास्मा के अलावा रिटर्निंग ऑफिसर, पर्यवेक्षक और चुनाव आयोग के बयान भी शामिल थे.

पर्यवेक्षक ने कोर्ट को बताया कि रिटर्निंग ऑफिसर ने शुरुआत में 927 पोस्टल वोट होने की बात कही थी, जिनमें से किसी को भी खारिज नहीं किया गया था – चुनाव परिणाम के ऐलान के लिए उसने इस जानकारी पर दस्तख्त भी कर दिए थे. और यही जानकारी चुनाव क्षेत्र में सभी उम्मीदवारों को दी भी गई थी.

नतीजा ये हुआ कि खारिज किए गए 429 पोस्टल वोट का जिक्र करने में नाकाम रहने को कोर्ट ने चुनाव रिकॉर्ड से छेड़छाड़ का मामला माना.

कोर्ट ने ये भी पाया कि ईवीएम वोट के आखिरी दो राउंड की गिनती पोस्टल वोट की गिनती से पहले हुई थी – जो कि चुनाव आयोग के निर्देशों का उल्लंघन है. वोटों की गिनती से जुड़े दूसरे कई नियमों की अनदेखी की गई, जो कि चुनाव को रद्द करने के लिए काफी हैं.

कोर्ट ने कहा कि इन त्रुटियों और विसंगतियों की वजह कोई वाजिब भूल नहीं थी, बल्कि ये सरासर भ्रष्टाचार का मामला है.

भ्रष्टाचार की व्याख्या लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 123(7) में की गई है, जिसमें चुनाव के दौरान किसी उम्मीदवार का सरकारी अधिकारियों की मदद लेना भी शामिल है.

जाहिर है इस मामले में रिटर्निंग ऑफिसर ने पोस्टल बैलेट की गिनती से पहले ईवीएम की काउंटिंग में वोटों के अंतर का पता चलने का इंतजार किया.

चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक पोस्टल बैलेट की गिनती ईवीएम के आखिरी दो राउंड की काउंटिंग से पहले पूरी कर ली जाती है, ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि पोस्टल बैलेट की गिनती के साथ ‘हेरफेर’ कर किसी उम्मीदवार को फायदा पहुंचाने की कोशिश ना हो.

429 ‘खारिज’ किए गए पोस्टल वोट की जानकारी सबसे छिपाई गई, पर्यवेक्षकों से भी, क्योंकि उसकी गिनती से चुडास्मा की बढ़त खतरे में पड़ जाती. इसलिए चुनाव पर्यवेक्षक से 18 दिसंबर 2017 को चुनाव परिणाम घोषित किए जाने की इजाजत ‘धोखाधड़ी’ के जरिए हासिल की गई थी.

रिटर्निंग ऑफिसर ने इसके बाद अपनी नाकामी को छिपाने के लिए रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ की. जानी इन आरोपों का जवाब देने में नाकाम रहे.

इस दौरान एक चौंकाने वाली घटना ये हुई कि कोर्ट में जब रिटर्निंग ऑफिसर से काउंटिंग हॉल की पूरी वीडियो रिकॉर्डिंग दिखाने को कहा गया तो उसने ‘कांट-छांट की गई अधूरी’ रिकॉर्डिंग दिखा दी, जिसमें पोस्टल बैलेट को रिसीव किए जाने वाला हिस्सा गायब था.

सीसीटीवी फुटेज को देखने पर कोर्ट ने पाया कि चुडास्मा के अतिरिक्त निजी सचिव को अवैध तरीके से काउंटिंग हॉल में घुसने की इजाजत दिए जाने का जो आरोप राठौड़ ने लगाया था वो पूरी तरह सही था.

सबसे बड़ी बात ये कि कोर्ट की कार्यवाही के दौरान भी, जब कोर्ट इस बात पर विचार कर रहा था कि 429 ‘खारिज किए गए पोस्टल बैलेट’ की जांच की जाए या नहीं, ना सिर्फ चुडास्मा बल्कि रिटर्निंग ऑफिसर ने भी आपत्ति जताई थी.

जहां विधायक की आपत्ति समझ में आने वाले वाली बात थी, जानी के ऐसा करने की कोई वजह नहीं थी, इसलिए कोर्ट इस फैसले पर पहुंची:

‘इससे पता चलता है कि रिटर्निंग ऑफिसर कोर्ट में ट्रायल शुरू होने से पहले भी प्रतिवादी संख्या 2 के फायदे के लिए हर मुमकिन प्रयास कर रहे थे. ये रिटर्निंग ऑफिसर और प्रतिवादी संख्या 2 के बीच अपवित्र सांठ-गांठ से कम नहीं है, जिससे भ्रष्टाचार को लेकर कोर्ट का फैसला और मजबूत होता है.’

कोर्ट ने इस बात का भी संज्ञान लिया कि चुनाव के बाद, मार्च 2019 में चुनाव आयोग ने रिटर्निंग ऑफिसर के खिलाफ निर्देशों के उल्लंघन के लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई की थी.

हालांकि आगे ना सिर्फ उनके खिलाफ की गई कार्यवाही रोक दी गई, बल्कि गुजरात सरकार ने उन्हें अक्टूबर 2019 में प्रदोन्नति भी दे दी.

परिस्थिति से जुड़े साक्ष्यों के आधार पर, कोर्ट इस नतीजे पर पहुंचा कि चुडास्मा ने ‘चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित’ करने के लिए रिटर्निंग ऑफिसर की सहायता ली, और इस तरह से भ्रष्टचार को अंजाम दिया.

जजों ने राठौड़ को विजयी उम्मीदवार घोषित किए जाने की अपील ठुकरा दी, क्योंकि चुनाव आयोग के निर्देशों का उल्लंघन कर रिटर्निंग ऑफिसर ने वोटों की गिनती की पूरी प्रक्रिया को ही दागदार किया, इसलिए इसे रद्द किया जाना जरूरी था. नतीजतन, राठौड़ को मिले वोट भी वैध साबित नहीं हुए.

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सुप्रीम कोर्ट से चुडास्मा की अपील

भ्रष्टाचार के आधार पर चुनाव रद्द होने के बावजूद कोई विधायक अपने आप भविष्य में होने वाले चुनावों में शामिल होने के लिए अयोग्य साबित नहीं होता. चुनाव आयोग की राय लेने के बाद तीन महीने के अंदर राष्ट्रपति को ये तय करना होगा कि चुडास्मा को अयोग्य करार दिया जाए या नहीं, अगर हां तो कितने समय के लिए.

कोर्ट के फैसले को समझने के लिए चुनाव आयोग ने एक कमेटी बनाई है.

इस बीच, चुडास्मा ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है. हालांकि हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि इस मामले का संवैधानिक अहमियत से जुड़े मसलों से कोई लेना देना नहीं है, और कोर्ट ने अपील दायर करने से पहले आदेश पर रोक लगाने से मना कर दिया.

इसलिए चुडास्मा को ये साबित करना होगा कि कोर्ट ने तथ्यों से विपरीत कानून का गलत इस्तेमाल किया है.

जहां चुडास्मा के खिलाफ दिया गया कोर्ट का फैसला बेहद मजबूत नजर आता है, भ्रष्टचार को लेकर उनके खिलाफ मौजूद सबूतों के परिस्थिजन्य होने की वजह से उन्हें सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलील रखने का रास्ता मिल सकता है.

हालांकि साक्ष्यों के परिस्थिजन्य होने का तर्क देते हुए अपना बचाव करने का मौका चुडास्मा के पास हाईकोर्ट में भी था, लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाए, जिससे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट में भी वो अपने बचाव में कोई नई दलील नहीं रख पाएंगे.

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