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पिंजरा तोड़: कैंपस से निकलकर एंटी CAA आंदोलन से क्यों जुड़ा संगठन?

सुर्खियों में आने पर इस संस्था के बारे में जिज्ञासा बढ़ गयी कि यह समूह कौन है.

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उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगे के मामले में पिंजरा तोड़ समूह के दो सदस्यों को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया है. इस समूह के बारे में तरह-तरह की चर्चा है कि ये लोग कौन हैं और कैसे ये सीएए विरोधी प्रदर्शनों से आ जुड़े.

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23 मई को देवांगना कलिता और नताशा नरवाल को गिरफ्तार किया गया. दोनों को 24 मई को जमानत मिल गयी, लेकिन एक और एफआईआर के कारण उन्हें तुरंत दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया जिसमें आर्म्स एक्ट के उल्लंघन और हत्या के आरोप हैं. कलिता और नरवाल को दो दिन की पुलिस हिरासत में भेजा गया. 2 मई को इसे दो और दिन के लिए बढ़ा दिया गया.

इन दोनों के नाम पहली बार 24 फरवरी को जाफराबाद में जुड़े प्रदर्शन को लेकर दिल्ली पुलिस की ओर से दर्ज एफआईआर में आए थे. उन पर भारतीय पीनल कोड के तहत धारा 186 (लोकसवेक को सार्वजनिक काम करने देने से रोकना), 188 (लोकसेवक की ओर से लागू किए जा रहे आदेश की अवज्ञा), 353 (लोकसेवक को कर्त्तव्य से रोकते हुए हमले और आपराधिक ताकत का इस्तेमाल), 283 (सार्वजनिक रास्ते में अवरोध या खतरा पैदा करना), 341 (संयम बरतने वालों को गलत तरीके से दंडित करना), 109 (कानून तोड़ने के लिए उकसाना), 147 (दंगा फैलाना) और 34 (साझा उद्देश्य़) की धाराएं लगायी गयीं.

सुर्खियों में आने पर इस संस्था के बारे में जिज्ञासा बढ़ गयी कि यह समूह कौन है. पिंजरा तोड़ के लोग कम बोलने वाले रहे हैं. ऐसे में क्विंट इस समूह की पूरी प्रोफाइल आपके सामने रख रहा है.

शुरुआत छोटी और महत्वपूर्ण जीत के साथ

पिंजरा तोड़ 2015 में शुरू हुआ जब जामिया मिल्लिया इस्लामिया के एक पूर्व छात्र ने गुमनाम रहते हुए खुला पत्र लिखा और रात में महिला छात्रों के हॉस्टल से बाहर निकलने के अधिकार को रद्द करने का विरोध किया. इस पत्र में व्यक्त सोच पर देशभर के विश्वविद्यालयों में बहस और चर्चा हुई. तीन साल के संघर्ष के बाद पहली बड़ी जीत तब हासिल हुई जब जामिया की छात्राओं के लिए इस कर्फ्यू में रात 10.30 बजे तक की ढील दी गयी.

2015 में हॉस्टल और पेइंग गेस्ट की व्यवस्था से जुड़े नियमों के विरुद्ध पिंजरा तोड़ आंदोलन का एक रूप था. एक नोट में जहां वे खुद को पिंजरा तोड़ बताते हैं और जिसका वास्तव में मतलब होता है पिंजरे को तोड़ना, वे खुद के बारे में कहते हैं, ”महिला छात्रों का संगठित प्रयास ताकि हॉस्टल, पेइंग गेस्ट अथॉरिटी और यूनिवर्सिटी प्रशासन की मॉरल पॉलिसिंग और रोक लगाने वाले नियमों के खिलाफ चर्चा और डिबेट हो, वे शेयर हों और इकट्ठा होकर सामूहिक संघर्ष किया जा सके.”

यह महसूस करने पर कि संवाद शुरू हो चुका है उन्होंने दिल्ली के सभी विश्वविद्यालयों में मौजूद भेदभावपूर्ण नियमों की ओर ध्यान दिलाने के लिए दिल्ली महिला आयोग को अपनी मांगों से जुड़ा ज्ञापन दिया, जिसके बाद 23 विश्वविद्यालयों को नोटिस जारी किए गए. पिंजरा तोड़ के नोट में कहा गया है, “दशकों से उच्च शिक्षा ले रहीं हजारों महिला छात्रों के जीवन में जो भेदभाव और अपमान है उसे खत्म करने के संघर्ष में यह ऐतिहासिक समय था. उन्हें समान अवसरों, पहुंच और अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है. ”

क्विंट ने पिंजरा तोड़ से बात की, जिन्होंने कहा कि संगठन मूल रूप से दिल्ली से बाहर है मगर देश के कई कैंपस में संगठन ने विभिन्न प्रकार की ऑफ लाइन शूटिंग कर रखी है. बहरहाल उनके साथ जुड़ाव सीमित है. यह कहना अधिक सुरक्षित होगा कि चूंकि पिंजरा तोड़ एक विचारधारा के तौर पर शुरू हुआ, यह देशभर में महिलाओं को आकर्षित कर रहा है जिनमें पटियाला, भोपाल और चेन्नई शामिल हैं.

पिंजरा तोड़ और सीएए विरोधी प्रदर्शन

पिंजरा तोड़ के कार्यकर्ता जिनका नाम मुख्य रूप से इसलिए सामने है क्योंकि उन्हें 22 फरवरी को जाफराबाद में हुए तनाव से जुड़े एफआईआर में नामजद किया गया है. 24 फरवरी को जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे क्विंट यह जानने के लिए मौजूद था कि एक दिन पहले वहां हिंसा क्यों शुरू हुई. हालांकि हमें ऐसा कोई सुराग नहीं मिला जिस वजह से पांच दिनों तक भयानक हिंसा होती रही. 23 फरवरी को हुई हिंसा की वजह तलाशने के लिए हमने वहां समय बिताया.

चंद्रशेखर आजाद की ओर से भारत बंद के आह्वान के प्रति समर्थन दिखाने 22 फरवरी को हुए कैंडल मार्च में मौजूद पिंजरा तोड़ और सीएए विरोधी कार्यकर्ताओं ने हमें बताया कि जाफराबाद मेट्रो स्टेशन पर पुलिस से झड़प के बाद यह खत्म हुआ. महिलाओं ने हमें बताया कि उन्हें लगा कि पुलिस की गाड़ी उन पर चढ़ा दी जाएगी.

उस दिन के एक ट्वीट से भी इस दावे की पुष्टि होती है.

परिस्थिति लगातार तनावपूर्ण होती चली गयी. वास्तव में गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने सीएए के विरोध में एक और नया धरना शुरू कर दिया.यह जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे शुरू हुआ और मौजपुर जाने वाली जाफराबाद रोड को जाम कर दिया गया.

23 फरवरी तक बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने तनाव के माहौल को यह कहते हुए बढ़ा दिया, “हम तब तक चुप रहेंगे जब तक डोनाल्ड ट्रंप यहां हैं लेकिन उसके बाद हम पुलिस की भी नहीं सुनेंगे और रास्ता खोल देंगे.” कुछ घंटों बाद हिंसा शुरू हो गयी और हंगामा जारी रहा.

क्विंट को भेजे गये नोट में पिंजरा तोड़ ने कहा है कि सामाजिक चिंता और एकजुटता की भावना के तहत पिंजरा तोड़ दिल्ली और देशभर में सीएए-एनआरसी-एनपीए विरोधी मुस्लिम महिलाओं के विभिन्न धरनों के साथ खड़ा है.

बयान के एक हिस्से में कहा गया है :

देश में महिलाओं और छात्रों के आंदोलनों के लंबे ऐतिहासिक विरासत की ओर इस आंदोलन ने सबका ध्यान खींचा है और भारत में महिला शिक्षा की संस्थापक रहीं सावित्री बाई फूले और फातिमा शेख के काम और जीवन से प्रेरणा लेने की आवश्यकता बतायी है. सामाजिक जिम्मेदारी और विभिन्न प्रकार के सामाजिक कामों में महिलाओं के साथ एकजुटता की भावना ने उनके काम को परिभाषित किया है. और, महिला छात्रों और समाज के वंचित तबके की महिलाओं के बीच अंतर को पाटने की कोशिशों को आगे बढ़ाया है.

यह सामाजिक चिंता और एकजुटता दिखाने की वही समान भावना है कि पिंजरा तोड़ सीएए-एनआरसी-एनपीआर के विरोध में मुस्लिम महिलाओं के धरनों के साथ दिल्ली और पूरे देश में खड़ा है.

कैम्पस के मुद्दों से बाहर कैसे आया पिंजरा तोड़

मई 2017 में केरल हाईकोर्ट ने हादिया की शादी की घोषणा की और उसे उसके पिता को यह तर्क देते हुए सौंप दिया कि “भारतीय परंपरा के अनुसार अविवाहित लड़की शादी हो जाने तक अपने माता-पिता के संरक्षण में होती है.”

हालांकि 10 महीने बाद जनवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने उस शादी को बहाल कर दिया, पिंजरा तोड़ ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखा.

पत्र के एक हिस्से में कहा गया है :

केरल हाईकोर्ट का वर्तमान फैसला हमें उस मोड़ पर ले जाता है जहां देश/समुदाय में एक महिला अपने पुरुष रिश्तेदारों की संपत्ति हुआ करती थी और उसका शरीर ‘इज्जत’ का प्रतीक. वास्तव में यह अविश्वसनीय है कि कैसे एक अदालत इस तरह से ‘परिवार’ नामक संस्था में अंधविश्वास जता सकता है कि बेटी का “कल्याण ओर भलाई” ही “सबसे अधिक महत्वपूर्ण” है जबकि हर दिन घरेलू हिंसा और ऑनर किलिंग व दहेज हत्या समेत महिलाओं को अपमानित करने के सैकड़ों मामले सुनने को मिलते हैं.

यौन उत्पीड़न, सुरक्षित जगह और कई अन्य मुद्दों को उठाना

कैंपस तक महिलाओं की पहुंच संभव बनाने की आवाज उठाते हुए पिंजरा तोड़ ने यह मुद्दा भी उठाया कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के ज्यादातर कॉलेजों में आंतरिक शिकायत समिति तक नहीं है जहां यौन उत्पीड़न के मामले उठाए जा सकें. उसने आगे यह भी कहा कि इस तरह की संस्था का होना ही काफी नहीं है क्योंकि जब तक इस पर नजदीकी निगरानी नहीं रखी जाएगी ऐसी संस्थाएं जिम्मेदार नहीं होंगी और इनके होने का कोई मतलब नहीं है.

इस संगठन ने सड़कों पर अंधेरा दूर करने के लिए भी कई प्रदर्शन किए ताकि सड़कें पहले जैसी हो जाएं और महिलाओं के लिए वह असुरक्षित ना रहे.

होली उत्सव के दौरान पिंजरा तोड़ ने लड़कियों के घूमने-फिरने की आजादी का मुद्दा भी उठाया. उन्होंने छात्राओं को हॉस्टल और किराए के मकान से बाहर कदम रखने नहीं देने के रुख के खिलाफ भी आवाज उठायी. सड़क पर होने वाली समस्याओं को हल करने के जवाब के तौर पर ये कदम उठाए जाते हैं. वे यहां तक शिकायत करती हैं कि जब वे इन मुद्दों को पुलिस के पास ले जाती हैं या हल करने की कोशिश करती हैं तो बदले में अक्सर पुलिस उनसे पूछती है कि रात में निकलने की वजह क्या थी.

महिलाओं के विरुद्ध बढ़ती हिंसा के खिलाफ अभियान निर्भया रेप और मर्डर केस के साथ शुरू हुआ. गुजरात के ऊना में दलितों के साथ अत्याचार की घटना के बाद जातीय उत्पीड़न के मामले से भी वे जुड़े और, अधिक वेतन और काम की स्थिति में सुधार के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के आंदोलन से भी उनका जुड़ाव रहा. पिंजरा तोड़ एक सक्रिय सामाजिक संगठन भी रहा है जो महिला छात्रों को यूनिवर्सिटी से बाहर दूसरे सामाजिक मुद्दों से भी जोड़ता है.

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9 सदस्यों ने पिंजरा तोड़ से क्यों दिया था इस्तीफा?

पिंजरा तोड़ को अंदरूनी कामकाज के तरीकों के बारे में तीखी आलोचना का सामना करना पड़ा जब 9 महिलाओं ने फरवरी 2019 में एक खुला पत्र लिखा जिनमें संगठन को लेकर आपत्तियों का जिक्र था.

बयान का शीर्षक था, “क्यों हमने पिंजरा तोड़ छोड़ने का फैसला किया” और हस्ताक्षरयुक्त बयान में यह कहा गया, “वंचित जाति और धर्म से जुड़ी महिलाओं के तौर पर अपने अनुभवों को सामने लाते हुए हमें साफ शब्दों में कहना है कि पिंजरा तोड़ का अंतर्वगीय स्त्रीवाद क्या केवल दिखावे के लिए है और आंतरिक तौर पर किस तरह से किसी फैसले में वंचित महिलाओं का कोई लेना देना नहीं होता या उनकी राय नहीं ली जाती.”

हालांकि पूरा बयान यहां पढ़ा जा सकता है, कुछ उद्धरण नीचे पढ़े जा सकते हैं :

  • पिंजरा तोड़ ने सावित्री बाई फूले, फातिमा शेख, बाबा साहेब अंबेडकर का इस्तेमाल किया और उन्हें हड़प लिया ताकि सवर्ण और सवर्ण जाति की महिलाओं के लिए अपने जातीय पाखंडी राजनीति को ढंक सके.
  • चूंकि प्रशासन, निर्णय लेने वाली संस्था और कमेटी में बहुमत सवर्ण महिलाओं का था, इसलिए वंचित तबके की महिलाएं उस वक्त गिनाने भर को रह गयीं जब कभी भी संगठन की आलोचना हुई.
  • पिंजरा तोड़ पर कुछ सवर्ण महिलाओं का नियंत्रण जारी रहा, जिसके खिलाफ बोलना बहुत मुश्किल हो गया क्योंकि वह विशाल सामाजिक और सांस्कृतिक राजधानी से जुड़ा था और जिनका राजनीति से परे विभिन्न सर्कल में संबंध थे. हममें से कई लोगों को पिंजरा तोड़ छोड़ने के बाद सिविल सोसायटी की दूसरी संस्थाओं से जुड़ने में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा जिनके लिए न तो कोई संगठन है और न ही वह स्पेस जहां वे अपनी जगह बना सकें.
  • पिंजरा तोड़ की राजनीति एक ओर जहां हिन्दुत्व के खिलाफ संघर्ष तक सीमित है वहीं वह हिन्दुत्व के सम्पूर्ण विचार के विरुद्ध नहीं है जहां जाति और अल्पसंख्यक राजनीति के विरुद्ध कोई रुख नहीं लिया जाता और ऐसा करने की उन्हें पूरी सुविधा है.
  • हम यह जोरदार तरीके से और साफ-साफ कह रहे हैं भले ही हमें इसके लिए सामाजिक बहिष्कार का सामना क्यों न करना पड़े : पिंजरा तोड़ सवर्ण हिन्दुओं की संस्था है और दूसरे सवर्ण संगठनों की तरह इसने उन महिलाओं को सफल होने नहीं दिया है जो वंचित तबके और धर्म से आते हैं.

आरोपों पर पिंजरा तोड़ का जवाब

नौ महिलाओं द्वारा उठाए गये आरोपों का जवाब देते हुए पिंजरा तोड़ ने 20 मार्च 2019 को एक बयान जारी किया, जिसका शीर्षक था- वीमन ऑन द एज ऑफ टाइम - रिफ्लेक्शन्स फ्रॉम पिंजरा तोड़. पूरे बयान को यहां पढ़ा जा सकता है.

यह इस तरह शुरू होता है : यह बहुत निराशाजनक बात है कि हमने ऐसा बयान पढ़ा है जिसमें पिंजरा तोड़ के राजनीतिक स्वभाव और इसकी आंतरिक प्रक्रियाओं के बारे में गंभीर चिंता जतायी गयी है.  

यह किसी भी प्रगतिशील आंदोलन के लिए चिंता की बात है और आज देश के राजनीतिक परिदृश्य में चल रहे बहस का यह विषय बना हुआ है. बयान पर हस्ताक्षर करने वाले वो मित्र हैं जिन्हें हमने अपनी यात्रा में खो दिया है. उनमें से कुछ ने इस संस्था की शुरूआत से इसे आकार देने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

आंदोलन में उनकी अनुपस्थिति हमेशा महसूस होगी और उन्होंने जो आलोचनाएं रखी हैं वह पूरे आंदोलन के लिए नयी और पहले से अधिक व्यवस्थित सोच की वजह बनी रहेगी. जिन कुछेक निष्कर्षों पर वे पहुंचे हैं वे लंबे समय से आंतरिक राजनीतिक बहस के बिन्दु रहे हैं. अलग-अलग मुद्दों और आंदोलनों में शामिल रहने, उन्हें समझने और सीखने और ऐसी भागीदारी से अपने सामूहिक दायित्वों की समीक्षा के रूप में हुआ महत्वपूर्ण निवेश इन सवालों में खो गया है.

क्विंट को पिंजरा तोड़ की ओर से भेजा गया पूरा नोट :

पिंजरा तोड़ महिला छात्राओं की स्वायत्त संस्था है जो सामूहिक रूप से काम करती है ताकि महिलाओं के लिए भेदभाव रहित शिक्षा का अवसर उपलब्ध कराने; सामाजिक भेदभाव और लिंग, वर्ग, जाति, धर्म, पहचान, क्षमता और सामाजिक पृष्ठभूमि पर आधारित हिंसा को चुनौती देने ;यूनिवर्सिटी के भीतर और बाहर यौन हिंसा का विरोध; लोकतंत्र की रक्षा और यूनिवर्सिटी जैसी जगहों में सबकी भागीदारी की पैरवी और कैंपस में आक्रामक पुरुषवादी संस्कृति का विरोध; सार्वजनिक अभियानों, सांस्कृतिक गतिविधियों और सोशल मीडिया के जरिए समाज में महिलाओं के मुद्दों के प्रति जागरुकता बढ़ाने जैसे मुद्दे उठाकर उनका उद्धार किया जा सके.

2015 में महिला छात्राओं के एक अभियान के दौरान पिंजरा तोड़ नयी दिल्ली में अस्तित्व में आया जिनकी मांगों में महिलाओं को संवैधानिक अधिकार देने, विभिन्न होस्टलों में भेदभावपूर्ण कर्फ्यू हटाने, सार्वजनिक यूनिवर्सिटी में असमान होस्टल फीस खत्म करने और कॉलेजों में यौन उत्पीड़न शिकायत कमेटियां बनाना शामिल थे. लाइब्रेरी और दूसरे सार्वजनिक स्थानों में समान रूप से आने-जाने, महिलाओं की मौजूदगी से ऐसे स्थानों को सुरक्षित बनाने और महिलाओं की पहल पर सामूहिक कार्य के लिए बिल्डिंग बनाने, कैंपस में स्ट्रीट लाइटें लगाने, हॉस्टल की डेडलाइन बढ़ाने, सार्वजनिक परिवहन, शिक्षा और रहने की व्यवस्था को सस्ता करने, यौन उत्पीड़न को लेकर जागरुकता और स्कूलों में लड़कियों के मानसिक स्वास्थ्य, कॉलेज और हॉस्टलों में काम करने वाली महिलाओं के साथ एकजुटता दिखाना जैसे विविध आयामों पर यह संगठन कई सालों से काम करता रहा है.

ऐसे समय में जब महिलाओं की भागीदारी समाज में बढ़ रही है, पिंजरा तोड़ कई तरह की चिंताओं को सामने लाते हुए महत्वपूर्ण आवाज़ रहा है .यह युवा महिला छात्राओं के लिए प्रेरणा भी है. छात्रों के आंदोलन और दूसरे सामाजिक आंदोलनों में यह सामूहिक रूप से सक्रिय भागीदारी निभाता है. महिलाओँ के विरुद्ध बढ़ती हिंसा के खिलाफ अभियान, निर्भया रेप और मर्डर केस के साथ शुरू हुआ. गुजरात के ऊना में दलितों के साथ अत्याचार की घटना के बाद जातीय उत्पीड़न के मामले भी संगठन जुड़ाा. और, अधिक वेतन और काम की स्थिति में सुधार के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के आंदोलन से भी  जुड़ाव रहा. पिंजरा तोड़ एक सक्रिय सामाजिक संगठन भी रहा है जो महिला छात्रों को यूनिवर्सिटी से बाहर दूसरे सामाजिक मुद्दों से भी जोड़ता है.

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