भारत-चीन सीमा विवाद एक बार फिर गरम है. आखिर क्यों बार-बार भारत और चीन की सीमा पर सेनाओं के बीच झड़प होती है और भारत के पास क्या रास्ते हैं? पाकिस्तान पर शोर मचाने वाले मीडिया में इस पर कवरेज कम है, लिहाजा क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया ने दिग्गज सुरक्षा विशेषज्ञ और ऑबजर्वर रिसर्च फाउंडेशन के विशिष्ट फेलो मनोज जोशी से बातचीत की.
मनोज जोशी ने न सिर्फ इस तनाव की पृष्ठभूमि के बारे में बात की, बल्कि उन्होंने बताया कि भारत के लिए सबसे अच्छा रास्ता क्या है?
क्या है झगड़े की जड़?
मनोज जोशी ने बताया है कि भारत और चीन की सीमा करीब 4000 किलोमीटर है और इसका कोई नक्शा नहीं है. दोनों देश अपने-अपने हिसाब से सीमा की समझ रखते हैं. ऐसी कम से कम 15-16 जगह हैं, जहां असमंजस की स्थिति रहती है. हर साल जब गर्मी में बर्फ पिघलती है तो कन्फ्यूजन पैदा होता है और फिर विवाद.
मई में विवाद की वजह और बैकग्राउंड
मई के पहले हफ्ते में गलवान की घाटी में, पेंगगोंग और गलवान के बीच हॉटस्प्रिंग्स और सिक्किम के नाकुला में चीनी जवान आ गए. हालांकि घुसपैठ कहना सही नहीं है क्योंकि सीमा तय ही नहीं है.
नाकुला और हॉटस्प्रिंग्स में अब तनाव कम है लेकिन मसला फंसा हुआ है गलवान में. गलवान में चूंकि भारत सड़क बना रहा है. इसी से चीन घबराया है. यही वजह है कि उन्होंने वहां कैंप बनाए और हमारा काम रुका. जैसा हमने डोकलाम में चीन के सड़क निर्माण को रोका था, उसी तरह हमारा काम चीन ने रोका है.
गलवान में तनाव उतना नहीं है क्योंकि दोनों सेनाओं के बीच आधा किलोमीटर का फासला है. और अभी ये मसला लोकल कमांडर के लेवल पर है. आला अधिकारियों के लेवल पर अभी बातचीत शुरू नहीं हुई.
भारत के पास क्या रास्ते हैं
मनोज जोशी का कहना है कि चीन एक आर्थिक महाशक्ति है, ऐसे में हमें चीन का उसी तरह फायदा उठाना चाहिए जैसे चीन ने अमेरिका का उठाया. हमें ये नहीं सोचना चाहिए कि हम बहुत मजबूत हैं. हमें सिर्फ इस पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए कि हमारा आर्थिक हित क्या है.
चीन का फायदा हम कहां उठा सकते हैं, हमें ये देखना चाहिए. चीन को आज बड़ा बाजार चाहिए जो भारत में है. तो इसपर हम बातचीत कर सकते हैं. हमें अपनी कमजोरियों का भी ध्यान रखना चाहिए. आज हम ताइवान को मान्यता देंगे तो कल चीन कह सकता है कि कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा है. फिर हम क्या करेंगे? जैसे आज तिब्बत की निर्वासित सरकार भारत से चल रही है, वैसे ही कल चीन कश्मीर की किसी सरकार को अपनी जमीन पर जगह दे सकता है.मनोज जोशी
मनोज जोशी के मुताबिक एक बड़ा और मजबूत देश किसी एक तरफ नहीं जा सकता है. न अमेरिका के साथ और न चीन के साथ. आमतौर पर हमारी सरकारों ने चीन के मसले को अच्छे से हैंडल किया है. जहां तक चीन का मसला है उसे हम सुधार नहीं सकते, बस मैनेज कर सकते हैं. जब हम कहते हैं कि अमेरिका हमारा दोस्त है तो इससे थोड़ा फायदा होता है लेकिन बैलेंस बनाकर रखना चाहिए. अगर चीन को अलग-थलग करेंगे तो नुकसान हो सकता है.
'चीन पर भारतीय मीडिया-जैसे देहाती पहलवान'
इस सवाल पर कि पाकिस्तान के मसले पर तो भारतीय मीडिया में बहुत शोर शराबा होता है लेकिन चीन के मामले में ऐसा क्यों नहीं होता, मनोज जोशी ने कहा कि पाकिस्तान की आलोचना भारत में चुनावी जीत का फार्मूला है लेकिन चीन का मामला अलग है. पाकिस्तान के मामले में मीडिया देहाती पहलवानों की तरह लड़ाई कर सकता है लेकिन भारत में ये अहसास है कि चीन मजबूत है. यहां समझ-बूझ की जरूरत पड़ती है. क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था हमसे बड़ी है.
भारत-चीन पर ट्रंप क्यों बार-बार बोल रहे
मनोज जोशी का मानना है कि कोरोना महामारी से पहले अमेरिका की आर्थिक हालत अच्छी थी. ट्रंप को उम्मीद थी कि वो चुनाव जीत जाएंगे लेकिन कोरोना के बाद उनकी हालत पतली हो गई. अब वो अपनी चुनावी जंग का सारा दारोमदार चीन पर लगा रहे हैं. इसलिए वो चीन की आलोचना का कोई मौका नहीं छोड़ते.
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