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करतारपुर कॉरिडोर और बर्लिन वॉल का क्या है कनेक्शन? पूरी कहानी

हम आपको बता रहे हैं कि आखिर क्यों बर्लिन वॉल की तुलना करतारपुर से की जा रही है और कैसे गिरी थी बर्लिन की दीवार.

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पाकिस्तान ने करतारपुर साहिब के लिए जैसे ही रास्ता खोला तो बर्लिन की दीवार गिरने की घटना चर्चा में क्यों आ गई? किसी और ने कहा होता तो शायद इतनी तरजीह ना मिलती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी तुलना बर्लिन दीवार गिरने से कर दी तो लोगों को अचानक भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में गर्मजोशी की आहट दिखने लगी.

पीएम मोदी ने करतारपुर कॉरिडोर को लेकर कहा था-

1947 में जो हुआ सो हुआ, कुछ ऐसी बातें होती हैं जो सरकारों और सेनाओं के बीच होती हैं, उसके रास्ते कब निकलेंगे वो समय बताएगा. किसने सोचा था कि बर्लिन की दीवार गिर सकती है. तो क्या प्रधानमंत्री मोदी संकेत दे रहे थे कि बर्लिन दीवार गिरने की तरह करतारपुर साहिब कॉरिडोर के जरिए भारत और पाकिस्तान के रिश्ते ठीक हो सकते हैं.

आइए बताते हैं बर्लिन दीवार और करतारपुर कॉरिडोर के बीच क्यों की गई थी तुलना और कैसी गिरी थी बर्लिन की दीवार.

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करतारपुर साहिब

करतारपुर साहिब को भारत की बर्लिन दीवार क्यों कहा जाने लगा था? बात 1947 की है, जब देश का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान बना. इससे पंजाब के भी दो टुकड़े हो गए थे. जिससे सिखों की सबसे पवित्र जगह करतारपुर साहिब पाकिस्तान के हिस्से में चली गई. यहां पहले सिखगुरु गुरुनानक देव ने 18 साल बिताए थे. भारतीय सीमा के गुरुदासपुर से सिर्फ 3 किलोमीटर दूर होने के बाद भी पवित्र गुरुद्वारे के दर्शन के लिए सिख समुदाय के लोगों को काफी परेशानी होती है. बॉर्डर पर दूरबीन लगाकर दर्शन करवाए जाते थे.

जिसके बाद भारत और पाकिस्तान ने इसका रास्ता निकाला और करतारपुर पहुंचने के लिए एक अलग कॉरिडोर बनाने का फैसला लिया. भले ही सरकारों के बीच मतभेद हो लेकिन अब सिख समुदाय के लोग एक दूसरे से बिना किसी रोक-टोक के मिल सकते हैं. ठीक ऐसा ही जर्मनी में भी हुआ था. भले ही वहां की सरकारें अलग-अलग विचारों की थीं, लेकिन लोगों का एक दूसरे के लिए प्यार उनके मतभेदों पर भारी पड़ा और आखिरकार एक दिन वेस्ट बर्लिन और ईस्ट बर्लिन को अलग करने वाली यह दीवार तोड़ दी गई.

क्या हुआ था बर्लिन में

जब दूसरा वर्ल्ड वॉर 2 खत्म हुआ तो बाद फ्रांस, अमेरिका और इंग्लैंड और सोवियत संघ की सेनाओं ने बर्लिन पर कब्जा कर लिया. इसके बाद पूरे जर्मनी को चार हिस्सों में बांट दिया गया. इसमें बर्लिन के भी दो टुकड़े हुए. ईस्ट बर्लिन में सोवियत संघ का कब्जा था, दूसरी तरफ वेस्ट जर्मनी जो अमेरिका, इंग्लैंड और फ्रांस के कब्जे में था. ईस्ट बर्लिन को जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक कहा जाता था और वहीं वेस्ट बर्लिन को फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी की राजधानी बनाया गया.

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कैसे बनी बर्लिन वॉल

ईस्ट बर्लिन यानी जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (जीडीआर) में हालात कुछ ठीक नहीं थे. इसीलिए लोगों ने वेस्ट बर्लिन की तरफ भागना शुरू कर दिया. वहां डेमोक्रेसी थी और जीने के लिए काफी अच्छा माहौल था. अब सरकार ने ये देखते हुए ईस्ट और वेस्ट बर्लिन के बॉर्डर पर तारबंदी कर दी जो कुछ दिन में एक कंक्रीट की बड़ी दीवार में तब्दील कर दी गई. दो दीवारों के बीच कंटीली तारें लगा दीं गई. कई हजार जवान इस दीवार के दोनों तरफ पर स्नाइपर के साथ तैनात रहते थे. जैसे ही कोई आता दिखे तो उसे या तो गोली मार दी जाती थी या फिर गिरफ्तार कर लिया जाता था.

बर्लिन वॉल की लंबाई 155 किलोमीटर थी. जो ईस्ट और वेस्ट बर्लिन को एक दूसरे से अलग करती थी. जो वेस्ट बर्लिन को चारों तरफ से घेरती थी. इसीलिए इसे तोड़ने में 18 महीने का वक्त लगा था. 
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क्यों है बर्लिन वॉल खास

आखिर बार-बार बर्लिन वॉल का जिक्र क्यों होता है? उस दौर में दुनिया दो हिस्सों में बंट गई थी. एक तरफ अमेरिका था जिसके साथ पश्चिमी देश थे, दूसरी तरफ सोवियत संघ के साथ पूर्वी देश थे. इन दोनों के बीच एक दीवारनुमा बॉर्डर बनी थी. जिसे ब्रिटेन के पीएम विंस्टन चर्चिल ने आयरन कर्टेन यानी लोहे का पर्दा नाम दिया था. ये पर्दा ईस्ट यूरोप को वेस्ट यूरोप से अलग करता था और बर्लिन वॉल इसका सबसे बड़ा हिस्सा थी, जहां पूर्व और पश्चिम मिलते थे.

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..और तोड़ दी गई बर्लिन दीवार

1985 में मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ के नए लीडर बने तो उन्होंने उदारवादी सोच के साथ लोकतंत्र के लिए जमीन तैयार करनी शुरू की. लेकिन इससे कुछ ही दिनों में सोवियत संघ टूटकर कई अलग देश बन गए.

इससे पूर्वी यूरोप में लोगों का मनोबल बढ़ा और कई जगह बर्लिन दीवार के लेकर प्रदर्शन होने लगे. इसके बाद 1987 में अमेरिकी राष्ट्रपति बर्लिन आए और उन्होंने अपनी स्पीच में कहा कि 'मिस्टर गोर्बाोचेव एयर डाउन दिस वॉल' अगर आप यूरोप में शांति चाहते हैं तो इस दीवार को तोड़ दीजिए. इसके बाद यूरोप के हर देश में इसे लेकर क्रांति शुरू हो गई. ईस्ट जर्मनी में भी कई महीने तक प्रदर्शन हुए. उनकी मांग थी कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया जाए और इधर से उधर यानी ईस्ट से वेस्ट बर्लिन जाने की आजादी दी जाए.

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जब भी किसी देश में सरकार के खिलाफ प्रदर्शन होते हैं तो सत्ता पलट जाती है. यहां भी ऐसा ही हुआ नई पार्टी आई और सरकार ने अचानक एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की. ईस्ट जमर्नी की सरकार ने 9 नवंबर 1989 में जनता के गुस्से को शांत करने के लिए घोषणा कर दी कि अब लोग ईस्ट जर्मनी से वेस्ट जर्मनी जा सकते हैं. जो भी लोग इसे सुन रहे थे उनमें खुशी की लहर दौड़ पड़ी और उसी दिन लाखों लोगों ने बॉर्डर क्रॉस कर लिया. उसी दिन लोगों ने बर्लिन वॉल को थोड़ा बहुत नुकसान पहुंचा दिया. अगले तीन दिनों में चेक पॉइंट्स के जरिए 40 लाख लोगों ने बॉर्डर पार कर लिया था.

इसके लगभग 6 महीने बाद जून 1990 में जर्मनी की सरकार ने बर्लिन वॉल को गिराना शुरू कर दिया. इस दीवार को 18 महीनों में क्रेन और जेसीबी की मदद से आखिरकार तोड़ दिया गया. इसके बाद यूरोप को दो हिस्सों में बांटने वाले ‘आयरन कर्टेन’ को भी कई जगह से तोड़ दिया गया था.

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