कांग्रेस (Congress) का घोषणापत्र, 'न्याय पत्र', न्याय के पांच स्तंभों पर केंद्रित है:
युवा न्याय (Youth Justice)
नारी न्याय (Women Justice)
किसान न्याय (Farmer Justice)
श्रमिक न्याय (Worker Justice)
हिस्सेदारी न्याय (Participatory Justice)
हाल ही में लेखकों ने मोदी सरकार के 10 साल के दौरान गरीबों, युवाओं, किसानों और महिलाओं के संबंध में अर्थव्यवस्था की स्थिति पर चर्चा की थी ( बीजेपी के 2024 के चुनावी विजन में 'ज्ञान' फोकल बिन्दु के विशेष संदर्भ में चर्चा).
कागज पर तो ये न्याय पत्र कुछ ऐसे सामाजिक-आर्थिक मुद्दों को उठाने का काम करता है जो आज के दौर में बहुत प्रासंगिक है. न्याय पत्र कर्ज, बेरोजगारी और महंगाई जैसी तमाम ऐसी समस्याओं को सुधारने और उसमें बदलाव की बात करता है जिससे लोग बुरी तरह प्रभावित हैं. लेकिन इन वादों को कांग्रेस कैसे पूरा करेगी इसको लेकर कोई वित्तीय स्पष्टता नहीं है.
जैसे ही इन वादों को पार्टी की खराब चुनावी संचार रणनीतियों से जोड़कर देखते हैं तो लगता है कि कांग्रेस की ये सोच जमीनी स्तर पर सिर्फ 'कागज पर स्याही' बनकर रह जाती है.
यहां हम आपको, न्याय पत्र के पांच प्रमुख पहलू के बारे में बता रहे हैं.
नारी न्याय (Women Justice)
वर्तमान में भारत में राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 20 प्रतिशत से नीचे बना हुआ है.
सर्वाधिक महिला प्रतिनिधित्व वाले राज्यों में छत्तीसगढ़ सबसे आगे है, यहां 18 फीसदी विधायक महिलाएं हैं. वहीं हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में, महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है, यहां केवल एक महिला विधायक है, जबकि मिजोरम विधानसभा में वर्तमान में कोई महिला प्रतिनिधित्व नहीं है.
राजनीतिक प्रतिनिधित्व में लैंगिक भेदभाव को कम करने के लिए एक संविधान संशोधन किया गया है, जो 2025 में होने वाले विधानसभा और 2029 लोकसभा चुनाव में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण की वकालत करता है.
इस पहल का उद्देश्य भारतीय राजनीति में लैंगिक समावेशिता को बढ़ावा देना और महिलाओं को राज्य और राष्ट्रीय दोनों स्तर के निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में शामिल होने के लिए सशक्त बनाना है.
इसके अलावा महिलाओं की पढ़ाई-लिखाई की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार के बावजूद भारत की श्रम शक्ति में महिलाओं की समग्र भागीदारी बेहद कम बनी हुई है. इन्ही सब बातों को ध्यान में रखते हुए महिलाओं की श्रम में भागीदारी को बढ़ाने के लिए मैनिफेस्टो सेंट्रल गवर्नमेंट की नौकरियों में 50% महिला आरक्षण की बात करता है.
किसान न्याय (Farmer Justice)
मैनिफेस्टो में कांग्रेस पार्टी स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानूनी गारंटी देने का वादा करती है. जिससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि किसानों को हर साल उनकी फसल का उचित मूल्य मिल सके.
इस प्रस्ताव के तहत MSP सीधे-सीधे उन किसानों के खाते में ट्रांसफर की जाएगी जो खरीद केंद्रों और APMCs में अपनी फसल बेचते हैं. जिससे खरीद की व्यवस्था सुधरेगी और बिचौलियों का खात्मा हो जाएगा.
इसके अलावा न्याय-पत्र में कृषि कर्ज को बड़े पैमाने पर माफ करने की भी बात कही गई है.
कृषि वित्त किसानों के लिए महत्वपूर्ण है इस बात को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस पार्टी ने कृषि वित्त पर एक स्थायी आयोग की स्थापना का प्रस्ताव रखा है. इस आयोग को नियमित तौर पर आकलन करके कृषि कर्ज देने और उसे माफ करने की तमाम जरूरतों के मूल्यांकन का काम सौंपा जायेगा.
श्रमिक न्याय (Worker Justice
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) का विकास एक ऐसे तंत्र के रूप में किया जाएगा जो सस्ती दरों पर आवश्यक खाद्य पदार्थ उपलब्ध करा कर इसकी कमी को नियंत्रित करेगा. समय के साथ यह भारत में खाद्य अर्थव्यवस्था को विनियमित करने के लिए सरकार की रणनीति का एक महत्वपूर्ण घटक बन गया है.
वर्तमान में PDS के तहत गेहूं, चावल, चीनी और केरोसिन जैसी वस्तुएं दी जा रही हैं. कांग्रेस ने सार्वजनिक वितरण में दालों और खाना पकाने के तेल को भी शामिल करने का वादा किया है.
UN की फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (FAO) की दिसंबर 2023 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार 2021 में दुनिया भर में लगभग 3.1 बिलियन लोग पौष्टिक आहार अफोर्ड नहीं कर सकते हैं. इनमें से 45% लोग साउथ एशिया में रहते हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि लगभग तीन-चौथाई भारतीय आबादी को 2021 में स्वस्थ आहार का खर्च उठाने के लिए खासा संघर्ष करना पड़ा, जिस वजह से भारत, बांग्लादेश (66 प्रतिशत) और श्रीलंका (56 प्रतिशत) जैसे पड़ोसी देशों से भी पीछे रहा.
2020 में जीन ड्रेज, रीतिका खेड़ा और मेघना मुंगीकर द्वारा किए गए एक एनालिसिस से पता चला कि केंद्र सरकार PDS के लिए जिस 2011 के जनसंख्या डेटा का इस्तेमाल करती है वो काफी पुराना है जिस वजह से करीब 10 करोड़ लोग PDS से वंचित रह जाते हैं. जनगणना के ये आंकड़े 12 साल पुराने हो गए हैं अब नई जनगणना के बाद ही PDS के आंकड़ों में सुधार किया जा सकेगा और इसका विस्तार हो पाएगा.
इसके अतिरिक्त, वर्तमान में, पांच राज्यों ने अपना दैनिक न्यूनतम मजदूरी 375 रुपये या उससे अधिक निर्धारित की है, जिसमें हरियाणा सबसे अधिक मनरेगा मजदूरी (384 रुपये प्रतिदिन) की पेशकश करता है. मनरेगा की शुरुआत के बाद से इसकी मजदूरी में बहुत कम वृद्धि देखने को मिली है. इस योजना के तहत दी जाने वाली मजदूरी भारत के 35 में से 34 राज्यों में न्यूनतम मजदूरी दर से भी नीचे चली गई है.
मजदूरी की इस असमानता को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस पार्टी देशभर में MANREGA के तहत मिलने वाली मजदूरी को 400 रुपये प्रतिदिन तक बढ़ाने का वादा करती है.
हिस्सेदारी न्याय (Participatory Justice)
कांग्रेस ने अपने न्याय पत्र में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना कराने का भी वादा किया है. यानी सामाजिक आर्थिक स्थितियों का आकलन करते हुए जाति एवं उपजाति की सावधानीपूर्वक गणना की जाएगी.
साथ ही साथ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग के लिए एक संविधान संशोधन प्रस्तावित करने की बात की गई है जिससे आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के अनिवार्य 50% की सीमा को खत्म किया जा सके. इसके साथ ही धन वितरण का सटीक आकलन करने के लिए एक वित्तीय और संस्थागत सर्वे किया जाएगा.
इसके अलावा, घोषणापत्र में यह भी वादा किया गया है कि बिना किसी भेदभाव के सभी जातियों और समुदायों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए नौकरी और शैक्षणिक संस्थानों दोनों में 10 प्रतिशत आरक्षण लागू किया जाएगा.
युवा न्याय (Youth Justice)
2023 में 57 करोड़ वर्कफोर्स होने के बाद भी भारत को औपचारिक प्रशिक्षण की कमी की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि भारत में केवल 6 लाख प्रशिक्षण केंद्र ही हैं.
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2012 से लेकर 2023 के बीच में बेरोजगारी दर दोगुना हो चुकी है ऐसे में ये मुद्दा युवाओं के लिए आवश्यक है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट के अनुसार 2023 में 20-24 साल की आयु के युवाओं में बेरोजगारी दर 44% पहुंच गई है.
इस समस्या को दूर करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने अपने मैनिफेस्टो में प्रशिक्षुता (अप्रेंटिसशिप) का अधिकार अधिनियम लाने का वादा किया है. इस अधिनियम के तहत पात्र व्यक्तियों को 1 लाख रुपये की वार्षिक स्कॉलरशिप और देशभर की विभिन्न कंपनियों में 1 साल के लिए अप्रेंटिसशिप का मौका भी मिलेगा.
(दीपांशु मोहन ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के जिंदल स्कूल ऑफ लिबरल आर्ट्स एंड ह्यूमैनिटीज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक्स स्टडीज (CNES) के डायरेक्टर हैं. वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में विजिटिंग प्रोफेसर हैं. अदिति देसाई CNES के साथ एक सीनियर रिसर्च एनालिस्ट और इसकी इन्फोस्फियर टीम की टीम लीड हैं. यह एक ओपिनियन पीस है. यहां व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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