ये संगठन नहीं, आंदोलन है. हमने तय किया है कि हम खामोश नहीं रहेंगे. हम हर कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं.यशवंत सिन्हा, वरिष्ठ नेता, बीजेपी
दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब के स्पीकर हॉल में मेज पर मुक्का पटकते हुए बीजेपी के बागी नेता और पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने जब ये बात कही, तो एनडीए सरकार में कई लोगों के कान खड़े हो गए होंगे. ये ऐलान था ‘राष्ट्र मंच’ के निर्माण का, जिसमें पार्टी पॉलिटिक्स से ऊपर उठकर तमाम राजनीतिक दलों के लोग शामिल हैं.
अकोला आंदोलन में पड़ी ‘राष्ट्र मंच’ की नींव
नोटबंदी से लेकर जीएसटी और राष्ट्रभक्ति के नाम पर भीड़तंत्र जैसे मुद्दों पर एनडीए सरकार को लगातार घेरने वाले यशवंत सिन्हा की पिछली तस्वीरें दिसंबर 2017 की याद आती हैं, जब वो महाराष्ट्र के अकोला में किसानों के साथ धरने पर बैठ गए. सिन्हा के आंदोलन ने सूबे की बीजेपी सरकार को किसानों की सभी मांगें मानने पर मजबूर कर दिया. तमाम पार्टियों ने बीजेपी विरोध की बुलंद आवाज के तौर पर उन्हें देखा और उसी वक्त राष्ट्र मंच की बुनियाद पड़ी.
कौन-कौन हुए शामिल
30 जनवरी को मंच के गठन के वक्त यशवंत सिन्हा के अलावा बीजेपी के एक और बागी शत्रुघ्न सिन्हा, तृणमूल कांग्रेस के दिनेश त्रिवेदी, कांग्रेस की रेणुका चौधरी, एनसीपी के माजिद मेमन, आम आदमी पार्टी के आशुतोष और संजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री हरमोहन धवन और सोमपाल शास्त्री, समाजवादी पार्टी के घनश्याम तिवारी, आरएलडी के जयंत चौधरी, राज्यसभा सांसद रहे मोहम्मद अदीब, शाहिद सिद्दीकी और कई किसान संगठनों के नेता मौजूद थे.
मौके पर जेडीयू के पवन वर्मा की मौजूदगी थोड़ा हैरान कर रही थी, क्योंकि उनकी पार्टी आजकल बीजेपी से गलबहियां किये हुए है. लेफ्ट की गैरमौजूदगी खल रही थी, क्योंकि कोई भी गैर एनडीए धड़ा लेफ्ट पार्टियों के बिना अधूरा लगता है. लेफ्ट के शामिल न होने को लेकर यशवंत सिन्हा के पास कोई ठोस जवाब भी नहीं था. लेकिन ‘विरोधी’ दिनेश त्रिवेदी की सक्रियता को देखते हुए लेफ्ट की गैरमौजूदगी समझ में आ रही थी.
क्विंट से खास बात करते हुए ‘शॉटगन’ शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा:
इस मंच को सरकार में शामिल कई लोग गलत नजर से देखेंगे. इसकी प्रासंगिकता पर उंगली भी उठाएंगे. लेकिन हमारा मकसद रचनात्मक बदलाव करना है, जिसकी देश को सख्त जरूरत है.शत्रुघ्न सिन्हा, बीजेपी सांसद
यशवंत सिन्हा ने कहा कि मंच खासतौर पर किसानों के मुद्दों और दूसरे अहम मसलों पर सरकार की गलत नीतियों को उजागर करेंगे. उन्होंने ने जोर देकर साफ किया कि मंच में राजनीति दलों के लोग हैं, लेकिन ये कभी खुद राजनीतिक दल नहीं बनेगा.
कितना असरदार होगा ‘राष्ट्र मंच’?
कुछ लोग इसे तमाम पार्टियों के ‘फुंके हुए कारतूसों का जमावड़ा’ भी कह सकते हैं, लेकिन एक ही मंच पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसे विरोधियों, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और एनसीपी जैसे क्षेत्रीय दलों, जेडीयू जैसे सरकार के समर्थकों और किसान संगठनों का एक मंच पर होना सरकार के लिए चिंता का सबब तो बनेगा.
अगर 2019 में होने वाले लोकसभा के चुनाव वक्त से हुए, तो उनमें करीब 15 महीने का वक्त बाकी है. तमाम चुनावी सर्वे भले ही अब भी बीजेपी को सबसे मजबूत पार्टी दिखा रहे हों, लेकिन सबका ये भी मानना है कि सरकार की लोकप्रियता लगातार गिर रही है.
भविष्य के महागठबंधन का पुल?
वक्त की नजाकत या कहें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक असर ने कांग्रेस जैसे मुख्य विपक्षी दलों को ‘मुद्दा आधारित राजनीति’ के बजाए ‘व्यक्ति आधारित राजनीति’ तक सिमटा दिया है. ऐसे में यशवंत सिन्हा जैसे ‘पढ़े-लिखे’ नेता की अगुवाई में अगर कोई मंच राजनीति की तू तू-मैं मैं में खो जाने वाले आम आदमी के मुद्दों को उठाएगा, तो वो एक वैकल्पिक जनमत तो तैयार करेगा ही.
और कौन जानता है कि तमाम पार्टियों वाला ये ‘गैर-राजनीतिक’ मंच एसपी और बीएसपी या टीएमसी और लेफ्ट जैसे विरोधी पार्टियों के बीच पुल का काम करे और आने वाले लोकसभा चुनावों के लिए बीजेपी विरोधी महागठबंधन का सबब बन जाए?
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