कश्मीर में धारा 370 हटाने के प्रस्ताव पर बीएसपी प्रमुख मायावती का रवैया बड़ा ही खास रहा. तीन तलाक मुद्दे पर बीजेपी के खिलाफ खड़ी रहने वाली मायावती धारा 370 हटाने के मसले पर मोदी सरकार के साथ खड़ी नजर आईं. सियासत के धुरंधरों के लिए उनका यह पैंतरा चौंकाने वाला था.
सवालों का उठना भी लाजमी था और ऐसा हुआ भी. हर जेहन में यही बात उठी कि आखिर इस बदलाव का क्या कारण है? क्या मायावती भी राष्ट्रवादी हो गई हैं? या फिर इस हृदय परिवर्तन की वजह कुछ और ही है.
मायावती की राजनीतिक मजबूरी
दरअसल, बहुजन समाज पार्टी इन दिनों बहुत ही नाजुक दौर से गुजर रही है. मायावती ने अपनी पार्टी को जीरो से बढ़कर 10 सीट तक पहुंचने में जितनी मशक्कत की है, उसका अंदाजा उन्हें बखूबी है. मायावती को न सिर्फ अपना राजनीतिक भविष्य संवारना है, बल्कि वर्तमान राजनीति में भी बने रहना है. ऐसे में आर्टिकल 370 का समर्थन उनकी मजबूरी है. इस बात को हम मायावती के द्वारा खुद को आज की राजनीति में बनाये रखने की पहल के रूप में देख सकते हैं.
आर्टिकल 370 के मुद्दे पर बीजेपी सरकार समर्थन से मायावाती को कोई सियासी नुकसान होने की गुंजाइश नहीं थी, पर अगर वह इसका विरोध करतीं, तो इसका नुकसान होना तय था.
मायावती को कैसे होता नुकसान?
इस नुकसान की वजह को कुछ इस तरह से समझते हैं. बीजेपी सरकार के राष्ट्रवाद के ट्रंपकार्ड के आगे सारी पार्टियों के एजेंडे बौने साबित हुए. पिछले चुनावों में मायावती ने राष्ट्रवाद की उफनती लहर को बड़ी ही शिद्दत से महसूस भी किया था. इसी लहर का असर था कि जिस कोर वोट बैंक (दलित) के भरोसे मायावती ने अपनी सियासी जमीन तैयार की थी, वह दरकने लगी थी. दलितों ने पिछले हुए चुनावों में राष्ट्र के नाम पर बीजेपी को वोट दिया.
ऐसे में बेहतर था कि राष्ट्र के मसले पर राष्ट्रवादी पार्टी के साथ ही रहें और मायावती ने ऐसा ही किया. मायावती ने धारा 370 का समर्थन कर अपना राष्ट्रवादी चेहरा लोगों के सामने पेश किया और इसके साथ ही खुद के 'अतिवादी' न होने का भी संदेश दिया.
मुसलमानों को भी साधा
सिर्फ राष्ट्रवादी चेहरा ही नहीं, मायावती ने अल्पसंख्यक वोटरों को साधने की कोशिश भी कर डाली. अगर हम तीन तलाक और आर्टिकल 370 को देखें, तो दोनों ही मामले मुसलमानों से जुड़े हैं. तीन तलाक सीधे मजहब से जुड़ा मसला है और 370 मुस्लिम क्षेत्र से. जम्मू कश्मीर मुस्लिम बहुल राज्य है. इन दोनों ही मामलों में मुसलमान केन्द्र में है.
तीन तलाक मुददे पर मायावती ने बीजेपी का विरोध किया. यहां उनका मकसद अल्पसंख्यकों को अपने साथ लाने का था.
दूसरी ओर कश्मीर मसले की बात करें, तो कश्मीरी मुसलमान को छोड़कर दूसरे राज्यों का मुसलमान इस पक्ष में है कि कश्मीर भारत के साथ बना रहे. मायावती को कश्मीर के मुसलमानों से कोई खास लेना-देना नहीं है, पर यूपी सहित देश के दूसरे राज्यों के मुसलमानों पर उनकी नजर है.
अगर मायावती आर्टिकल 370 को हटाने का विरोध करतीं, तो देश के दूसरे राज्यों के बहुसंख्यकों के नाराज हो जाने का खतरा था. ऐसे में उन्हें आर्टिकल 370 को हटाने का समर्थन में नुकसान न के बराबर है.
लेकिन इन सबके बीच एक और थ्योरी पर रोशनी डालते हैं बीएचयू के प्रोफेसर और दलित चिंतक प्रोफेसर एमपी अहिरवार. वो कहते हैं:
‘’हम बहनजी के समर्थन को बीजेपी का समर्थन नहीं मान सकते हैं. बहुजन समाज पार्टी बाबा साहेब अंबेडकर के विचारों पर आधारित है. बाबा साहेब हमेशा से कश्मीर में धारा 370 को गैर-जरूरी मानते रहे. उनका मानना था कि अगर देश इस तरह के मसलों में फंसा रहा, तो मूल विकास की धारा से वह दूर हो जाएगा. ऐसे में मायावती का आर्टिकल 370 को हटाने का समर्थन बाबा साहेब के विचारों का समर्थन है. इसे मोदी सरकार से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए.’’
वक्त की जरूरत बन गया समर्थन
बहरहाल, मायावती के इस मास्टरस्ट्रोक से दलित, अल्पसंख्यक या फिर कोई और वर्ग खुश होता है या नहीं, इसका मीटर तो चुनाव में ही नापा जा सकेगा. लेकिन मायावती के हृदय परिवतन में उनकी व्यक्तिगत परेशानियां भी खासी अहम हैं. इन दिनों मायावती के हाथ थोड़े दबे हुए हैं. उन पर उत्तर प्रदेश में साल 2010-11 में 21 चीनी मिलों को गलत तरीके से बेचे जाने का आरोप है. इस मामले में अब प्रवर्तन निदेशालय मनी लॉन्ड्रिंग की जांच कर रहा है.
आरोप है कि सरकार ने एक कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए फर्जी बैलेंस शीट और निवेश के फर्जी कागजातों के आधार पर नीलामी में शामिल होने के लिए योग्य मान लिया. इस तरह ज्यादातर चीनी मिल इस कंपनी को औने-पौने दामों में बेच दी गई.
आरोप है कि चीनी मिलों की गलत बिक्री से करीब 1179 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. अभी यह मामला चल ही रहा था कि आयकर विभाग ने बीएसपी प्रमुख मायावती के भाई आनंद कुमार और भाभी विचित्रलता का नोएडा स्थित 400 करोड़ रुपए कीमत का ‘बेनामी’ प्लाट जब्त किया.
आरोप है कि इस प्लॉट की खरीद बोगस कंपनी बना कर की गयी थी. केन्द्र सरकार के इन दो बड़ी एजेंसियों की जांच झेल रही मायावती उसी सरकार के फैसले के खिलाफ जातीं भी तो कैसे? ऐसे में बीएसपी प्रमुख वैचारिक रूप से भले ही बीजेपी की मुखालफत करें, लेकिन व्यावहारिक रूप से बीजेपी साथ खड़े रहना वक्त की जरूरत भी है. मायावती विकल्पों को खुला रखकर राजनीति कर रही हैं.
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