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Kuldeep Bishnoi का ‘अग्निपथ’, BJP में जायें या JJP का न्योता स्वीकारें?

Kuldeep Bishnoi को BJP-JJP दोनों ने अपनी पार्टी में आने का न्योता दिया, लेकिन अभी तक वो फैसला नहीं कर पाए हैं.

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कुलदीप बिश्नोई (Kuldeep Bishnoi) का नाम राज्यसभा चुनाव (Haryana Rajya Sabha Election) के वक्त हरियाणा ही नहीं बल्कि पूरे देश में चर्चाओं में रहा और उसके बाद भी वो चर्चा में बने हुए हैं. क्योंकि कांग्रेस (Congress) में रहते हुए राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिग (Cross Voting) करने वाले कुलदीप बिश्नोई को कांग्रेस ने अभी तक निकाला नहीं है और उन्होंने कोई और पार्टी भी ज्वाइन नहीं की है. हालांकि बीजेपी (BJP) और जेजेपी (JJP) दोनों की तरफ से ही उनके पास ऑफर है. लेकिन ये रास्ता उनके लिए ‘अग्निपथ’ से कम नहीं है.

सवाल ये है कि आखिर कुलदीप बिश्नोई को फैसला लेने में इतना वक्त क्यों लग रहा है और वो कहां जाने वाले हैं. इससे भी बड़ा सवाल कुलदीप बिश्नोई के लिए ये हो सकता है कि दूसरी पार्टी में जाकर क्या उन्हें वो स्थान मिलेगा जिसके लिए वो कांग्रेस में बगावत का बिगुल फूंके हुए थे.
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कुलदीप बिश्नोई का राजनीतिक भविष्य क्या?

एक वक्त में कुलदीप बिश्नोई हरियाणा जनहित कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे और बीजेपी से बराबर का गठबंधन था. लेकिन आज उन्हें अपने राजनीतिक भविष्य के लिए उसी पार्टी के सहारे की जरूरत पड़ सकती है. बहरहाल बड़ी बात ये है कि कुलदीप बिश्नोई के पास क्या विकल्प हैं और उन्हें वहां क्या हासिल हो सकता है.

बीजेपी- पहला विकल्प

कार्तिकेय शर्मा की जीत के तुरंत बाद मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा था कि बीजेपी के दरवाजे कुलदीप बिश्नोई के लिए हमेशा खुले हैं वो जब चाहें आ सकते हैं. हाल की कुछ सोशल मीडिया हलचल देखें तो कुलदीप बिश्नोई के ट्वीट इस ओर इशारा करते हैं कि शायद वो बीजेपी में जाने का मन बना चुके हैं. दिल्ली में बीजेपी के कई नेताओं से उनकी मुलाकात हुई है लेकिन फाइनल फैसला अभी तक नहीं हो सका है और कुलदीप बिश्नोई अभी भी अपने पत्ते बंद किये बैठे हैं. 18 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की माता के जन्मदिन पर कुलदीप बिश्नोई का ट्वीट कुछ तो कह रहा है.

बीजेपी में क्या पा सकते हैं कुलदीप बिश्नोई?

भारतीय जनता पार्टी का काम करने का अपना तरीका है. लेकिन हरियाणा में राजनीति का एक पैटर्न है, यहां जाटों की संख्या काफी है और गैर जाट भी एक साथ आते हैं तो बड़ा असर डालते हैं. इसलिए पार्टियां जाट और गैर जाट में संतुलन बनाकर रखती हैं. जैसे कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष ज्यादातर दलित समुदाय से रहता है और विधानसभा में नेता या मुख्यमंत्री जाट समुदाय से, उसी तरह बीजेपी के मुख्यमंत्री मनोहर लाल पंजाबी समुदाय से आते हैं और उनके प्रदेश अध्यक्ष ओपी धनखड़ जाट समुदाय से आते हैं.

तो कुलदीप बिश्नोई फिलहाल अकेले विधायक हैं, पहले उनकी पत्नी भी हुआ करती थी लेकिन अभी नहीं हैं. और उनका असर आदमपुर के आसपास तक सीमित नजर आता है. हर चुनाव में उनकी कम होती सीटें तो यही बताती हैं. इसलिए मुख्यमंत्री पद के बारे में तो वो सोच भी नहीं रहे होंगे. अब बचा प्रदेश अध्यक्ष का पद, इसी पद को लेकर उन्होंने कांग्रेस में तलवार खींची थी. लेकिन यहां भी वो पद मिलेगा इस पर बड़ा सवाल है. क्योंकि वो पद जाट समुदाय के पास पहले सुभाष बराला थे, अब ओपी धनखड़ हैं और कुलदीप बिश्नोई जाट समाज से तो आते नहीं और उनके पास वोट बैंक भी दिखाने के लिए उतना नहीं है कि बातचीत की टेबल पर कोई दबाव बना सकें.

इसके अलावा पहले भी बीजेपी में कांग्रेस के कई कद्दावर नेता शामिल हुए हैं जिन्हें बीजेपी ने सेंटर में मंत्री भी बनाया लेकिन ड्राइविंग सीट नहीं दी. चौधरी बीरेंद्र सिंह और राव इंद्रजीत सिंह वो नेता हैं जो कांग्रेस को इसलिए छोड़कर चले गए थे कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सामने उन्हें लग रहा था कि वो मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे और बीजेपी ने भी उन्हें सीएम नहीं बनाया. जीतने के बाद बीजेपी ने सीएम पद के लिए चुना आरएसएस कार्यकर्ता मनोहर लाल खट्टर को.

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जेजेपी- दूसरा विकल्प

इंडियन नेशनल लोकदल से टूटकर बनी जन नायक जनता पार्टी पार्टी इस वक्त बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रही है. यहां अजय चौटाला और उनके बेटे दुष्यंत चौटाला, दिग्विजय चौटाला ही पार्टी में सर्वे-सर्वा हैं. उन्हें कुछ बड़े चेहरों की तलाश भी है. इसीलिए दुष्यंत ने लगे हाथों कुदीप बिश्नोई को अपनी पार्टी में आने की दावत दी थी. दुष्यंत चौटाला अभी बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार में डिप्टी सीएम हैं और निशा सिंह प्रदेश अध्यक्ष हैं जो पंजाबी समुदाय से आते हैं.

यहां कुलदीप बिश्नोई को प्रदेश अध्यक्ष का पद मिल सकता है, लेकिन जेजेपी में प्रदेश अध्यक्ष होने का मतलब और कांग्रेस-बीजेपी में प्रदेश अध्यक्ष होने का मतलब काफी अलग है. क्योंकि ये रीजनल पार्टी है और एक परिवार के इर्द गिर्द घूमती है.

AAP- तीसरा विकल्प

कुलदीप बिश्नोई के पास आम आदमी पार्टी भी एक विकल्प हो सकता है. क्योंकि वो भी हरियाणा में लंबे समय से पैर पसारने की कोशिश कर रही है और पंजाब में सरकार बनने के बाद अब और भी ज्यादा जोर लगा रही है. ऐसे में कुलदीप बिश्नोई वहां दांव खेल सकते हैं, पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर भी आम आदमी पार्टी में जा चुके हैं. लेकिन फिलहाल जो चर्चा दिल्ली में कुलदीप बिश्नोई की चल रही है, उसमें आम आदमी पार्टी नजर नहीं आ रही है. ना ही कुलदीप बिश्नोई का कोई इंटरेस्ट दिखा है और ना ही आम आदमी पार्टी ने कोई पहल की है.

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कुलदीप बिश्नोई अभी तक फैसला क्यों नहीं ले पाए?

16 जून को कुलदीप बिश्नोई ने एक न्यूज चैनल से बातचीत में कहा था कि 2 दिन के अंदर अपने समर्थकों से बात करके वो फैसला लेंगे. लेकिन अब 20 जून तक भी ये क्लियर नहीं है कि कुलदीप बिश्नोई कहां जा रहे हैं. हां दिल्ली में बातचीत जरूर चल रही है. दो दिन पहले नवनिर्वाचित राज्यसभा सांसद कार्तिकेय शर्मा ने भी कुलदीप शर्मा से आदमपुर जाकर मुलाकात की. लेकिन अभी भी कुलदीप बिश्नोई फैसला नहीं ले पाए हैं.

क्या कुलदीप बिश्नोई के पीछे पड़ा है अतीत?

भजनलाल के छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई अपने बड़े भाई चंद्रमोहन के राजनीतिक तौर पर हाशिये पर चले जाने के बाद से पिता की विरासत को ढोने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन उनका जनाधार लगातार कम हुआ है. एक वक्त में कांग्रेस के लिए प्रदेश में सर्वे सर्वा कहे जाने वाले भजनलाल ने जब 2007 में कांग्रेस छोड़कर हरियाणा जनहित कांग्रेस बनाई थी तो 2009 के चुनाव में पार्टी के 6 विधायक जीतकर आये, लेकिन उनमें से पांच कांग्रेस में चले गए. इसके बाद 2009 में भजनलाल का निधन हो गया. दोनों भाइयों में पिता की विरासत के लिए लड़ाई भी हुई लेकिन उसमें कुलदीप बिश्नोई ने आसानी से मात दे दी.

पार्टी की कमान हाथ में लेने के बाद कुलदीप बिशेनोई ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को बड़ी सफलता मिली और कुलदीप बिश्नोई अपने हिस्से में आई दोनों लोकसभी सीटें हार गए. जबकि बीजेपी ने 8 में से 7 सीटें जीती. लिहाजा विधानसभा चुनाव से पहले दोनों पार्टियों के बीच सीटों को लेकर मतभेद हो गए.

दरअसल कुलदीप बिश्नोई कहते रहे कि बीजेपी ने उन्हें आधी सीटें और सीएम पद देने का वादा किया था. लेकिन दोनों का गठबंधन टूट गया. इसके बाद उन्होंने विधानसभा चुनाव के लिए हरियाणा जनचेतना पार्टी से गठबंधन किया. जो उन्हीं कार्तिकेय शर्मा के पिता विनोद शर्मा की पार्टी थी जिनके लिए कुलदीप बिश्नोई ने कांग्रेस के खिलाफ क्रॉस वोटिंग की है. उनकी पार्टी की इस चुनाव में बुरी तरह हार हुई और दो ही सीटें जीत पाई. वो भी कुलदीप बिश्नोई खुद और उनकी पत्नी विधानसभा पहुंच सके.

लगातार गिरते जनाधार को देखते हुए कुलदीप बिश्नोई ने 6 साल पहले अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर लिया. 2019 में अपने बेटे भव्य बिश्नोई को लोकसभा चुनाव लड़ाया लेकिन हार गए. फिर कांग्रेस की तरफ से वो खुद आदमपुर से विधायक बने. क्योंकि भारतीय जनता पार्टी के साथ उनका पुराना रिश्ते की यादें कुछ अच्छी नहीं रही हैं. इसीलिए शायद उन्हें फैसला लेने में देरी हो रही है.
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भूपेंद्र हुड्डा से अदावत की वजह?

हरियाणा में 2005 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने कुलदीप बिश्नोई के पिता भजनलाल के नेतृत्व में लड़ा था और पार्टी ने जीत हासिल की. लेकिन उसके बाद कांग्रेस ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सीएम बना दिया. जिससे नाराज होकर भजनलाल ने कुछ दिन तो कांग्रेस में रहकर ही बगावत का झंडा बुलंद किया फिर 2007 में अलग पार्टी बना ली. यहीं से हुड्डा और लाल परिवार में अदावत की नींव पड़ी. और अब तक ये अदावत चल रही है, जिसका असर कुलदीप बिश्नोई के वर्तमान पर भी है.

कुलदीप बिश्नोई कांग्रेस से ज्यादा हुड्डा पर हमलावर?

राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग करने से लेकर अब तक कुलदीप बिश्नोई कांग्रेस से ज्यादा भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर हमलावर रहे हैं और हुड्डा के हाथ में कांग्रेस की फुल कमान से नाराजगी साफ जाहिर की है. यहां तक कि दोनों एक दूसरे को चुनाव लड़ने की चुनौती दे रहे हैं. जो इस सियासी अदावत की आग में घी का काम कर रही है.

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