ADVERTISEMENTREMOVE AD

लोकसभा चुनाव 2019: हरियाणा में बीजेपी की पकड़:  सर्वे 

हरियाणा उन राज्यों में है, जहां बीजेपी ने ना सिर्फ अपनी पकड़ बनाए रखी है, बल्कि लोकसभा चुनाव से पहले मजबूत भी है.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

पिछले पांच सालों में हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार को जितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, उतना शायद ही किसी बीजेपी शासित सरकार को करना पड़ा हो. साल 2016 में जाट आरक्षण के लिए आंदोलन, 2017 में डेरा सच्चा सौदा समर्थकों की हिंसा और 2014 में स्वयंभू धर्मगुरु रामपाल के साथ बल परीक्षण में सरकार को नाकों चने चबाने पड़े थे. इनके अलावा इस कार्यकाल में हरियाणा में बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामलों में काफी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई. यहां तक कि एक बीजेपी नेता के बेटे पर भी अपने रौब में लड़की का पीछा करने का आरोप लगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

शायद ही किसी ने सोचा होगा कि इतना सबकुछ होने के बाद हरियाणा उन चुनिन्दे राज्यों में एक है, जहां बीजेपी ने ना सिर्फ अपनी पकड़ बनाए रखी है, बल्कि 2019 लोकसभा चुनाव से पहले मजबूत भी की है.

हरियाणा के 10 लोकसभा क्षेत्रों में पड़नेवाले सभी 90 सीटों पर पॉलिटिकल एज के सर्वे के मुताबिक बीजेपी राज्य की 8 लोकसभा सीटों पर कब्जा जमा सकती है. खास बात है कि 2014 में जीते सीटों की तुलना में ये आंकड़ा एक ज्यादा है. सर्वे का अनुमान है कि कांग्रेस के खाते में दो सीट जा सकती हैं, जो पिछली बार की तुलना में एक अधिक है. भारी नुकसान हुआ है इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) को, जिसकी पकड़ चौटाला परिवार में विभाजन और जननायक जनता पार्टी (JPP) बनने के बाद काफी कमजोर हुई है.

सर्वे में अनुमान लगाया गया है कि बीजेपी का वोट शेयर 46 प्रतिशत हो सकता है, जो साल 2014 की तुलना में 13 फीसदी अधिक है. कांग्रेस के वोट शेयर में इससे भी अधिक बढ़ोत्तरी है. साल 2014 में 20.6 प्रतिशत की तुलना में इस बार उसे 37 फीसदी वोट मिल सकते हैं, यानी वोट शेयर में 16.4 फीसदी का उछाल. उधर INLD, पहले के 24.1 फीसदी से महज नौ प्रतिशत वोट शेयर पर सिमट सकता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का कार्यकाल बेशक ज्यादा असरदार नहीं रहा, फिर भी बीजेपी का ग्राफ ऊपर चढ़ने की वजह एक तो गैर-जाट वोटों का समर्थन और दूसरा जाट वोटों का कांग्रेस, INLD और अब JJP में बंट जाना है.

माना जाता है कि साल 2016 में जाट आन्दोलन के दौरान हिंसा ने कई गैर-जाट समुदाय को भयभीत कर दिया. उनकी नजर में बीजेपी इकलौती पार्टी है, जो उनके हितों की रक्षा कर सकती है, जबकि कांग्रेस, INLD और JJP जाट-बहुल पार्टियां हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सीट-वार विवेचना

हालांकि सर्वे के मुताबिक हरियाणा की अधिकतर सीटों पर चुनावी जंग में उन्नीस-बीस का ही फर्क रहेगा. यानी किसी के भी पक्ष या विपक्ष में रुझान में थोड़ा भी बदलाव, उस सीट के नतीजों पर असर डाल सकता है. फिर भी तीन सीटों पर बीजेपी को स्पष्ट बहुमत मिलने की संभावना है: भिवानी-महेन्द्रगढ़, गुड़गांव और सिरसा.

यह भी पढ़ें: लोकसभा चुनाव | ओडिशा में BJP के लिए कोई चांस नहीं: सर्वे

रोहतक में कांग्रेस को भारी बढ़त है, जो आश्चर्य की बात नहीं. 2014 के चुनाव में उत्तर भारत में कांग्रेस के खाते की चुनिन्दा सीटों में रोहतक एक था. रोहतक हुड्डा परिवार का मजबूत गढ़ है. साल 2014 में दीपेन्द्र सिंह हुड्डा चोट लगने के कारण ज्यादा चुनाव प्रचार नहीं कर पाए थे, फिर भी यहां से अपनी सीट निकाल ले गए.

इन चार सीटों को छोड़ दें, तो हरियाणा की बाकी छह सीटों पर अब भी उहापोह है और ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है. इनमें तीन सीट तो विशेषकर दिलचस्प हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

हिसार

फिलहाल इस सीट से JJP नेता दुष्यंत चौटाला सांसद हैं, जिन्होंने साल 2014 में INLD उम्मीदवार के रूप में ये सीट जीती थी. सर्वे के मुताबिक INLD वोटों का JJP के साथ बंट जाने से यहां बीजेपी को थोड़ी बढ़त मिल गई है. लेकिन इस साल के आरम्भ में जींद में हुए उपचुनाव पर गौर किया जाए तो JJP इस सीट पर छिपा रुस्तम साबित हो सकती है. हालांकि इस सीट से INLD के दिवंगत विधायक हरि चंद मिधा के बेटे अजय मिधा बीजेपी की टिकट पर विजयी रहे, लेकिन JJP के दिग्विजय चौटाला को कांग्रेस और INLD उम्मीदवारों से अधिक वोट मिले थे.

अगर दुष्यंत चौटाला फिलहाल तीन दलों में बंटे जाट वोटों को अपनी छतरी के नीचे लाने में कामयाब होते हैं, तो ये सीट उनके नाम बनी रह सकती है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

फरीदाबाद

सर्वे के मुताबिक इस सीट पर कांग्रेस को हल्की बढ़त है. गुज्जर नेता अवतार सिंह भड़ाना के दोबारा कांग्रेस में लौटने से इस सीट पर कांग्रेस की बढ़त मजबूत हो सकती है. भड़ाना इस सीट से 2004 और 2009 में सांसद रहे हैं.

2014 चुनाव में बीजेपी के किशन पाल गुज्जर के हाथों उनकी हार हुई थी और बाद में वो बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी के टिकट पर भड़ाना ने 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा

चुनाव में बिजनौर जिले के मीरापुर क्षेत्र से जीत हासिल की. लेकिन इस साल के शुरु में वो फिर कांग्रेस में शामिल हो गए, जिससे फरीदाबाद में पार्टी की उम्मीदें बढ़ गई हैं.

लोकसभा चुनाव के फौरन बाद फरीदाबाद में बीजेपी का जनाधार कम होना शुरु हो गया था. यहां आम चुनाव की तुलना में छह महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी के वोट शेयर में 20 फीसदी की गिरावट आई. ये वोट शेयर कांग्रेस, INLD और BSP के खातों में गए.

भड़ाना की वापसी से रोहतक के बाद फरीदाबाद में कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कुरुक्षेत्र

2014 तक बीजेपी को कुरुक्षेत्र सीट पर कभी जीत नहीं मिली थी, जो महाभारत की रणभूमि के रूप में मशहूर रहा है. पॉलिटिकल एज सर्वे के मुताबिक इस सीट पर बीजेपी को बेहद मामूली बढ़त मिली हुई है.

2014 लोकसभा चुनाव में राज कुमार सैनी बीजेपी के टिकट पर इस सीट से विजयी हुए थे, लेकिन 2018 में उन्होंने बीजेपी छोड़कर लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी का गठन कर लिया.

सैनी ओबीसी सैनी या माली समुदाय से आते हैं. लिहाजा हरियाणा में गैर-जाट वोटों के एकीकरण की बीजेपी की कोशिशों को झटका पहुंचा सकते हैं. अब सैनी ने बीएसपी के साथ गठजोड़ कर लिया है और काफी मुमकिन है कि हरियाणा और विशेषकर कुरुक्षेत्र में वो चुनावी गणित में उलटफेर करने में सक्षम हो जाएं.

हरियाणा में पुलवामा हमले और बालाकोट स्ट्राइक का भी गहरा असर पड़ सकता है. सी-वोटर के मुताबिक इस साल जनवरी से मार्च के बीच बीजेपी के संभावित वोट शेयर में 2.7 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है.

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं, क्योंकि करगिल युद्ध के बाद भी हरियाणा में बीजेपी को ऐसी ही बढ़त मिली थी. 1998 और 1999 लोकसभा चुनावों के बीच बीजेपी के वोट शेयर में 10 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई थी. हालांकि INLD के साथ बीजेपी का गठजोड़ भी इस बढ़त के लिए जिम्मेदार था.

गैर-जाट समुदाय के समर्थन के अलावा भारत-पाक मुद्दे से बीजेपी का पाला भारी पड़ सकता है, जो हरियाणा में उसकी सफलता का मुख्य कारण हो सकता है.

हालांकि राज्य में राजनीतिक जोड़-तोड़ के असर भी बखूबी दिख सकते हैं. JJP और LSP जैसी नवोदित पार्टियां, आम आदमी पार्टी की जोर-आजमाइश और अवतार सिंह भड़ाना जैसे नेताओं का बीजेपी छोड़कर कांग्रेस का हाथ थामना तथा अरविंद शर्मा जैसे नेताओं का कांग्रेस का साथ छोड़कर बीजेपी के कमल पर सवार होने का असर अंतिम नतीजों पर भी पड़ सकता है.

(सर्वे की कार्यपद्धति: ये सर्वेक्षण 10 राज्यों के सभी विधानसभा क्षेत्रों में फरवरी में किया गया था. हर विधानसभा क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर अनियमित तरीके से चुनकर 50 व्यक्तियों का इंटरव्यू किया गया.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×