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प्रियंका की स्माइल पर न जाएं,गैर से ज्‍यादा कांग्रेसी होंगे परेशान

प्रियंका के सामने पहुंचते ही आखिर क्यों ज्यादातर नेताओं के आइडिया सिर्फ ‘हवा-हवाई’ बनकर रह गए

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तीन दशक बाद कांग्रेस का लखनऊ दफ्तर, प्रियंका गांधी के रोड शो के बाद से पूरी-पूरी रात जग रहा है. 12 फरवरी को दोपहर दो बजे प्रियंका गांधी ने लोकसभा वार नेताओं से मिलना शुरू किया तो ये सिलसिला दूसरे दिन सुबह पांच बजे तक चला. जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी. कम से कम यूपी कांग्रेस को तो नहीं.

वो कांग्रेस जो 1989 में एनडी तिवारी सरकार जाने के बाद लड़खड़ाई तो अब तक खड़ी नहीं हो पायी.11 फरवरी को राहुल- प्रियंका के रोड शो, निराश हो चुकी कांग्रेस को उत्साहित करने के लिए टॉनिक जैसा है, जिसे सक्सेस बनाने के लिए पूरे प्रदेश से कांग्रेसी लखनऊ पहुंचे थे.

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प्रियंका के सामने पहुंचते ही आखिर क्यों ज्यादातर नेताओं के आइडिया सिर्फ ‘हवा-हवाई’ बनकर रह गए
लखनऊ में प्रियंका गांधी का रोड शो
(फोटोः PTI)

प्रियंका का मुस्कुराता चेहरा और पब्लिक के बीच उनकी तारीफ सुन कांग्रेसियों में फिर से सरकार में आने की उम्मीदें कुलाचे भर रही हैं. चूकि रोड शो के बाद प्रियंका का पूर्वी यूपी की 39 लोकसभा सीटों के नेताओं से मिलने का भी कार्यक्रम था, इसलिए उनमें ज्यादा ही उत्साह बना था.

अपनी नई नेता को इम्प्रेस करने के लिए कांग्रेसी एक से एक आइडिया भी साथ लाए थे. लेकिन उनकी बारी आने के बाद जब प्रियंका के सामने सेशन शुरू हुआ तो ज्यादातर नेताओं की सोच सिर्फ खयाली बनकर रह गई. क्योंकि बड़े-बड़े आइडियाडज के साथ पहुंचे नेताओं से जब प्रियंका ने छोटे-छोटे सवाल पूछने शुरू किए, तो नेता एक दूसरे का चेहरा देखने लगे.

प्रियंका के सवाल-

  • आपके लोकसभा में विधानसभावार कितने बूथ हैं?
  • आपने आखिरी बार कौन सा आंदोलन किया ?
  • आखिरी बार कांग्रेस कब जीती थी ?
  • पिछले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों को कितने वोट मिले ?
  • संगठन का क्या हाल है ?
  • संगठन छोटा होना चाहिए या बड़ा ?

नेताओं ने सोचा भी नहीं था कि ये सिर्फ कांग्रेस का सितारा नहीं, बल्कि सालों से अमेठी और रायबरेली की चुनाव संचालक भी हैं, जो चुनाव की हर बारीकियों से वाकिफ है. फिलहाल, प्रियंका कम बोलकर ज्यादा सुनने वाले मूड में थी.

हालांकि, सवाल जवाब में उन्होंने यह तो एहसास करा ही दिया है कि नई कांग्रेस नये सिस्टम पर चलेगी. जहां सिर्फ जिम्मेदारी मिलेगी ही नहीं, बल्कि जिम्मेदारी तय भी होगी. और खुद प्रियंका यह करके भी दिखा रही हैं. 12 फरवरी को वो 16 घंटे, सुबह पांच बजे तक नेताओं के साथ बात करती रहीं. प्रियंका परिवार की बाजी लगाकर पार्टी को संभालने में लगी है.

प्रियंका के सामने पहुंचते ही आखिर क्यों ज्यादातर नेताओं के आइडिया सिर्फ ‘हवा-हवाई’ बनकर रह गए
लखनऊ में कांग्रेस दफ्तर पर बढ़ी चहल-पहल
(फोटोः PTI)

कांग्रेसियों के लिए प्रियंका खुद बनी मिसाल

11 फरवरी को सियासत का सबसे बड़ा शो लखनऊ में देखने को मिला. अपनी चेहते नेता के इस्तकबाल के लिए कांग्रेसी उमड़ पड़े. जोश इतना कि हर किसी के जुबान पर प्रियंका छाई थीं. ये लम्हा जितना कांग्रेस के लिए बड़ा था, प्रियंका के लिए उतना ही मुश्किल.

उम्मीदों के आसमान पर बैठीं प्रियंका लखनऊ में रोड शो के लिए उस वक्त उतरीं, जब उनके पति रॉबर्ट वाड्रा, ईडी के सवालों की बौछार झेल रहे हैं. बावजूद इसके प्रियंका के कदम डगमगाए नहीं. प्रियंका जानती हैं कि उनका एक-एक लम्हा, पार्टी के लिए कितना इंपॉर्टेंट है.

लिहाजा, पूर्वी उत्तर प्रदेश के सियासी मिजाज को समझने और विरोधियों को ध्वस्त करने के लिए प्रियंका कांग्रेस दफ्तर में मंथन कर रही हैं. तीन दिनों में 39 घंटे में पूर्वी उत्तर प्रदेश के 41 सीटों का चक्रव्यूह तैयार होना है.

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प्रियंका के सामने पहुंचते ही आखिर क्यों ज्यादातर नेताओं के आइडिया सिर्फ ‘हवा-हवाई’ बनकर रह गए
लखनऊ में कांग्रेस दफ्तर पर प्रियंका गांधी वाड्रा
(फोटोः PTI)

हर संसदीय क्षेत्र को एक घंटे का वक्त

पूर्वी उत्तर प्रदेश को बीजेपी का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है. इस रीजन के दो सबसे बड़े शहर वाराणसी और गोरखपुर से ही बीजेपी के दो कद्दावर नेता नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ आते हैं.

प्रियंका को इस बात का बखूबी इल्म है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के किले को भेदना कितना मुश्किल है. लिहाजा, सियासी बिसात पर प्रियंका अपने हर मोहरे को सोच समझकर चल रही हैं. एक मंझे राजनेता और बेहद सिस्टमेटिक तरीके से आगे बढ़ रही हैं.

तीन दिन के प्रवास के दौरान प्रियंका गांधी ने 39 घंटें 39 लोकसभाओं के लिए तय किये थे. पहले दिन उन्होंने उन्नाव सीट से इसकी शुरूआत की. लेकिन जिस तरह से वो नेताओं के साथ समय दे रही हैं, उसमें ये घंटे कम पड़ जाएंगे.

  • हर संसदीय क्षेत्र के लिए एक घंटे का वक्त रिजर्व है.
  • प्रियंका गांधी एक साथ पार्टी के 20 नेताओं के साथ मीटिंग करेंगी.
  • प्रियंका से मिलने वालों में जनप्रतिनिधियों के अलावा संगठन के कार्यकर्ता भी शामिल रहेंगे.
  • नेताओं से फीडबैक लेने के साथ प्रत्याशियों के नामों पर भी विचार होगा.

प्रियंका के आने के बाद पार्टी एक नए तेवर और कलेवर में दिख रही है. कांग्रेस दफ्तर का वर्किंग कल्चर भी बदला-बदला दिखने लगा है. देश की सबसे पुरानी पार्टी, अब मॉर्डन दिख रही है. सब कुछ कॉरपोरेट स्टाइल में दिख रहा है.

प्रियंका के आने के बाद उनकी टीम ने कांग्रेस दफ्तर की कमान संभाल ली है. दफ्तर की पहली मंजिल को प्रियंका ने कांग्रेस के वॉर में रूम तब्दील कर दिया है. खुद भी वो वहीं पहली मंजिल पर ही बैठ रही हैं. यहीं से वो विपक्षी पार्टियों के खिलाफ रणनीति तय करेंगी, तो पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर नकेल कसने का सिस्टम तैयार कर रही हैं.

कांग्रेस में वहीं बढ़ेगा जो कांग्रेस को बढ़ाएगा. इशारा साफ है कि अब सिर्फ कांग्रेसी होने के नाम पर काम नहीं चलने वाला है.

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नेताजी, Google के आंकड़ों से नहीं बनेगी बात

प्रियंका टीम के पास उत्तर प्रदेश की एक-एक सीट का पूरा ब्यौरा मौजूद है. इसमें जातिगत समीकरण के साथ ही पिछले पंद्रह सालों में हुए निकाय, विधानसभा और लोकसभा चुनावों के आंकड़े भी शामिल हैं. लखनऊ पहुंचने से पहले प्रियंका टीम ने काफी होमवर्क किया है, जिससे कोई उन्हें कन्फ्यून न कर सके.

वैसे मीटिंग में प्रियंका बोलने के बजाय नेताओं की बातों को ज्यादा सुन रही हैं. न सिर्फ समझ रही हैं बल्कि सुझाव और उनकी परेशानियों को नोट भी कर रही हैं. ऐसा लग रहा है कि सियासी पारी की शुरूआत में प्रियंका किसी हड़बड़ी में नहीं हैं. वो उत्तर प्रदेश में पार्टी की जमीनी हकीकत को समझना चाहती हैं. इसलिए वो बगैर कुछ कहे, नेताओं और कार्यकर्ताओं को भरपूर समय दे रही हैं.

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